- अहिंसा यात्रा प्रणेता ने ‘अहिंसा परमो धम्मो’ को किया व्याख्यायित
- साध्वीप्रमुखाजी ने अहिंसा को बताया शाश्वत, धु्रव और नित्य
- आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे बाल गंगाधर महास्वामी मठ के पीठाध्यक्ष निर्मलानंद महास्वामी
- आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उन्होंने भी जीवन-विज्ञान और अहिंसा पर विचार किए व्यक्त
- आचार्यश्री के बेंगलुरु चतुर्मास के दौरान अपने यहां पधारने का किया अनुरोध
03 अक्टूबर 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : मानवता के कल्याण के लिए अपनी श्वेत सेना के साथ अहिंसा यात्रा लेकर निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को ‘अहिंसा परमो धम्मो’ को व्याख्यायित कर जन-जन को अहिंसक बनकर अपनी आत्मा और अपने जीवन का कल्याण करने का पावन संबोध प्रदान किया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने अहिंसा को शाश्वत, नित्य और धु्रव बताया। वहीं बेंगलुरु से चलकर बाल गंगाधर महास्वामी मठ के पट्टधर पीठाध्यक्ष स्वामी निर्मलानंदजी महास्वामी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे। वे आचार्यश्री के साथ मंचासीन हुए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन का श्रवण किया तदुपरान्त अपने विचार व्यक्त किए और जीवन-विज्ञान के विषय में चर्चा करने के साथ ही आचार्यश्री के वर्ष 2019 में बेंगलुरु चतुर्मास के दौरान अपने मठ आदि स्थानों में भी पधारने का अनुरोध किया तो मानों पूरा प्रवचन पंडाल जयघोष से गूंज उठा।
मंगलवार को कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार परिसर में बने अध्यात्म समवसरण में आचार्यश्री के साथ महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी और बाल गंगाधर महास्वामी मठ के पीठाध्यक्ष निर्मलानंदजी महास्वामी भी विराजमान हुए। मंगल प्रवचन के मुख्य विषय ‘अहिंसा परमो धम्मो’ पर सर्वप्रथम असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने उद्बोध प्रदान करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में अहिंसा को परम धर्म माना गया है। क्योंकि अहिंसा ध्रुव है, नित्य है और शाश्वत है। भगवान महावीर ने कहा कि संसार का कोई भी प्राणी मारने योग्य नहीं है। इसलिए अहिंसा ही परम धर्म है।
इसके उपरान्त अहिंसा यात्रा के प्रणेता और स्वयं अहिंसा के पुजारी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘अहिंसा परमो धम्मो’ को व्याख्यायित करते हुए कहा कि नरक गति में जाने के चार कारण बताए गए हैं-अमर्यादादित हिंसा, अमर्यादित परिग्रह, पंचेन्द्रिय प्राणियों का वध और मांसाहार। इन चार कारणों में से प्रमुख दो हिंसा और परिग्रह नरक में ले जाने के मुख्य कारण है। हिंसा और परिग्रह का आधिक्य ही आदमी को नरक गति में ले जा सकता है। आदमी जब अपने जीवन में हिंसा और परिग्रह का आतिथ्य करता है तो वह स्वयं को नरक का भागी बना लेता है। इस कारण अपने लिए कितने दुःख उपार्जित कर लेता है। इसलिए अहिंसा ही परम धर्म है। नरक से बचने का साधन और आत्मोत्थान की ओर प्रगति कराने में अहिंसा की साधना ही साहयक बन सकती है। आदमी को ज्यादा गुस्सा नहीं, बल्कि प्रेम के भाव को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव, प्रेम रखने का प्रयास करे और अत्यधिक परिग्रह से बचने का प्रयास करे तो अहिंसा की साधना हो सकती है। आदमी के जीवनशैली में अहिंसा जुड़ जाए, व्यवहार में अहिंसा रहे तो आदमी की आत्मा का कल्याण हो सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि बहुत समय बाद आज निर्मलानंदजी महास्वामी का समागमन हुआ है, बहुत अच्छा है। जितना हो सके हम सभी संसार की आध्यात्मिक सेवा कर सकें और अहिंसा का प्रसार कर सके, अच्छा हो सकता है।
श्री निर्मलानंदजी महास्वामी ने इस दौरान अपने मंगल विचार अभिव्यक्त किए। जीवन-विज्ञान और अहिंसा की चर्चा की और आचार्यश्री को बेंगलुरु में पदार्पण के उपरान्त अपने स्थलों में पधारने का अनुरोध किया।
इसके उपरान्त बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, श्री दीपचंद नाहर, श्री ललित कुमार आच्छा ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री सुरेन्द्र बोरड़ ने भी अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने उपस्थित स्वामीजी को साहित्य प्रदान किया। महासभा के अध्यक्ष श्री किशनलाल डागलिया, अखिल भारतीय युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विमल कटारिया, बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर आदि ने स्वामी को स्मृति चिन्ह प्रदान किया।
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