- दृढ़ संकल्पी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ब्रह्म मुहूर्त में किया मंगल प्रवचन
- मानवता का कल्याण को निकले महातपस्वी आचार्यश्री ने एक और नया इतिहास किया उद्घाटित
- ब्रह्म मुहूर्त में देवगति प्राप्ति के मार्ग को आचार्यश्री ने किया प्रशस्त
- आह्लादित थे श्रद्धालु, अपने गुरु की दृढ़ संकल्प के आगे थे प्रणत
- प्रवचन के उपरान्त निर्धारित समय पर आचार्यश्री ने किया चतुर्मास प्रवास स्थल से प्रस्थान
06 अक्टूबर 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : ब्रह्म मुहूर्त का निरव वातावरण। कोलकता के राजरहाट का महाश्रमण विहार परिसर। पूरा परिसर एक आध्यात्मिक ऊर्जा से संतृप्त था और जागृत था। क्योंकि कहा जाता है कि ब्रह्म मुहूर्त में जागरण प्रत्येक व्यक्ति के आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने में सहायक बनता है। शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में प्रत्यक्ष रूप में लोगों की आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर रहे थे अध्यात्म जगत के पुरोधा, संकल्पों के धनी, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को देवगति प्राप्ति के चार कारणों का ज्ञान प्रदान किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री अपने निर्धारित समयानुसार चतुर्मास प्रवास स्थल से सॉल्टलेक के लिए प्रावन प्रस्थान किया।
जन-जन के मानस को पावन बनाने, मानवता का कल्याण करने का महान संकल्प के साथ निकले आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी संकल्प शक्ति के साथ तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में इतने स्वर्णिम अध्याय और नवीन कीर्तिमान जोड़ें हैं। शायद इसीलिए इन्हें श्रद्धालु कीर्तिधर आचार्य भी कहते हैं। अहिंसा यात्रा के हिमालय की गोद में बसे चाहे नेपाल की यात्रा हो, चाहे उस यात्रा के दौरान भूकंप जैसे विकट प्राकृतिक आपदा में भी अडिगता के विहार करना हो, चाहे असम के भयानक जंगलों का रास्ता हो चाहे, मेघालय की सर्द हवाओं के साथ वहां के पहाड़ों की चढ़ाई हो। मानवता के कल्याण का संकल्प लेकर चले आचार्यश्री की संकल्पजा शक्ति के आगे सारी कठिनाइयां और प्राकृतिक घटनाएं नतमस्तक होती चलीं गई और महातपस्वी आचार्य नित नए नूतन कीर्तिमान रचते चले गए।
कीर्तिधर आचार्यश्री ने शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में प्रवचन करने का निर्णय लेकर भी मानों एक नया कीर्तिमान ही स्थापित किया हो। एक दिन के लिए आचार्यश्री ने जब चतुर्मास प्रवास स्थल से बाहर जाने का निर्णय किया तो शायद उन्हें लगा कि एक दिन नित्य होने वाले प्रवचन में बाधा आ सकती है। बस फिर क्या था, महातपस्वी आचार्यश्री की आंतरिक स्फुरणा ने ब्रह्म मुहूर्त में प्रवचन सुनाने का निर्णय सुना दिया और इस प्रकार संकल्प के धनी आचार्यश्री ने अपने दैनिक जनकल्याणकारी प्रवचन को ब्रह्म मुहूर्त में ही करने का निर्णय लिया।
उसी निर्णयानुसार शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में लगभग साढ़े चार बजे आचार्यश्री चतुर्मास प्रवास स्थल में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए देवगति प्राप्ति के चार कारणों का वर्णन करते हुए देवगति प्राप्ति का पहला कारण सरागसंयम, दूसरा सयंमासंयम, तीसरा बाल तपस्या और चौथा अकाम निर्जरा। इन चार कारणों से आदमी देवगति के आयुष्य का बंध कर सकता है और देवगति को प्राप्त कर सकता है। आचार्यश्री के ब्रह्म मुहूर्त के प्रवचन को सुनकर श्रद्धालु मानों आह्लादित थे। अपने आचार्यश्री दृढ़ संकल्पजा शक्ति ने भी मानों उनकी संकल्प शक्ति को चेतनावस्था में ला दी थी। सबके चेहरे पर अपने गुरु के प्रति अगाध निष्ठा, श्रद्धा भाव, और ऐसे आचार्य का सान्निध्य प्राप्त होने का गौरव भी देखने को मिल रहा था। आचार्यश्री की प्रेरणा ने ब्रह्म मुहूर्त को अत्यधिक आध्यात्मिक बना दिया।
इस प्रकार आचार्यश्री ने ब्रह्म मुहूर्त में प्रवचन कर एक और नया कीर्तिमान लिख दिया। लोगों की मानें तो उनकी जानकारी में अभी तक तो किसी भी आचार्य द्वारा इस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त में प्रवचन नहीं हुआ। आचार्यश्री मंगल प्रवचन के उपरान्त निर्धारित समयानुसार चतुर्मास प्रवास स्थल से साल्टलेक के मंगल प्रस्थान किया।
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