- परकल्याण को समर्पित महातपस्वी आचार्यश्री ने सेवा का बताया महत्त्व
- आगम में वर्णित सेवा के महत्त्व को आचार्यश्री ने बताया विशेष महत्त्व
- अहो भाव से सेवा कर आदमी महानिर्जरा को कर सकता है प्राप्त
- आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को भी सेवा के प्रति सजग रहने की दी पावन प्रेरणा
- ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान में आचार्यश्री ने आचार्यश्री माणकगणी के काल का किया वर्णन
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आचार्यश्री महाश्रमणजी |
11 अक्तूबर 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जिनका जीवन ही परकल्याण को समर्पित हो। जो मानवता का कल्याण करने के लिए निरंतर गतिमान हैं। मार्ग में आने वाले हर बाधाओं को पार करते हुए, प्राकृतिक आपदाओं और बदलते मौसम के बावजूद मानवता के कल्याण के लिए केवल गतिमान ही नहीं, जन-जन में मानवता का संचार करने के लिए अपने अमृतवाणी से पावन प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। ऐसे महासंत की प्रेरणा से जन मानस प्रभावित भी होता है और लोग उनके समक्ष अपनी बुराइयों को छोड़ने का संकल्प लेते भी हैं। ऐसे महातपस्वी, मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में बने अध्यात्म समवसरण से सेवा का महत्त्व बताते हुए आमजन ही नहीं साधु-साध्वियों को सेवा के प्रति सजग रहने और अहोभाव से सेवा करने का प्रयास करने की पावन प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री वर्तमान में ‘ठाणं’ आगम के आधार पर अपना नित्य प्रति मंगल प्रवचन प्रदान करते हैं। आगमवाणी गुरुमुख से श्रवण कर प्रत्येक श्रद्धालु मानों अपना आध्यात्मिक विकास करता है तो वहीं यह मंगलवाणी जन-जन कल्याण का भी कार्य कर रही है। आचार्यश्री ने गुरुवार को ‘ठाणं’ आगम में वर्णित सेवा के द्वारा महानिर्जरा को प्राप्त करने की पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जो सेव्य हैं उनकी सेवा करना अच्छी बात होती है। आचार्य की, उपाध्याय की, साधर्मिक की, रुग्ण की या सेवा सापेक्ष लोगों की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य भले छोटे हों, किन्तु उनकी सेवा बहुत अच्छी बात हो सकती है। आचार्य की सेवा करने साधु महानिर्जरा का भागी बन सकता है।
आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अहो भाव से सेवा करने से महानिर्जरा का भागीदार बना जा सकता है। सेवा करना एक अच्छा और बड़ा धर्म है। कोई रोगी भी है तो उसकी सेवा करना, तपस्वी की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मुनि नंदीसेन के सेवा प्रसंग बताते हुए पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सभी साधुओं के मन में यथौचित्य सेवा का भाव रहना चाहिए। जो हमारे बड़े हैं, उनकी सेवा करना और धर्मसंघ की सेवा करने के लिए तत्पर रहने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने गुरुदेव तुलसी द्वारा लंबे समय तक धर्मसंघ की सेवा करने के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि अहोभाव से सेवा करने से मेवा प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि जो सेवा करता है उसे मेवा प्राप्त होता है। आदमी को सेवा की संस्कृति पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। सेवा लेने वाला भले कभी गुस्सा कर ले, किन्तु सेवा देने वाले को कभी गुस्सा नहीं, अहोभाव और प्रेम से सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। अपेक्षा पड़े तो एकबार माला को भी ताला लगा दिया जाए, किन्तु सेवा करने में तत्पर रहने का प्रयास करना चाहिए। सभी में सेवा की भावना पुष्ट रहे तो आदमी अपना कल्याण करने साथ ही महानिर्जरा को प्राप्त कर सकता है।
नित्य की भांति आचार्यश्री ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान शृंखला को भी अनवरत जारी रखते हुए आचार्यश्री माणकगणी के शासनकाल और उनके अस्वस्थ होने, साधुओं द्वारा भविष्य के निर्णय का अनुनय करने तथा उनके द्वारा उस अनुनय को ठुकरा देने और बाद में महाप्रयाण कर देने की घटना को भी सरसशैली में वर्णन कर श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ प्रदान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन विश्व भारती से जुड़े कोलकाता केन्द्र के क्षेत्रीय समन्वयक श्री तरुण सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आदर्श गु्रप ऑफ इंस्टीट्यूशन के संस्थापक श्री प्रेमराज भंसाली ने अपनी आत्मकथा ‘वृतांत’ आचार्यश्री के चरणों में लोकार्पित की।
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