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आश्रवों को रोकने प्रयास है अध्यात्म की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

-आश्रवों को रोक आत्मा को निर्मल बना कर आत्मा का कल्याण करने का आचार्यश्री ने बताया मार्ग
-तृतीय न्यायाधीश व अधिवक्ता अधिवेशन आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में टीपीएफ द्वारा आयोजित 
-आचार्यश्री ने अधिवक्ताओं व न्यायाधीशों को दिया आशीष, कार्यों में सत्यता-निष्ठा को बनाए रखने की दी प्रेरणा
-अधिवेशन के मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पहुंचे पूज्य सन्निधि में
-आचार्यश्री के समक्ष दी भावाभिव्यक्ति, आचार्यश्री से प्राप्त किया मंगल आशीर्वाद 
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          14 अक्टूबर 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : जन-जन का कल्याण करने को निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में शनिवार को कोलकाता के राजरहाट स्थित महाश्रमण विहार में चतुर्मास काल परिसम्पन्न कर रहे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आयोजित तृतीय न्यायाधीश व अधिवक्ता अधिवेशन में भाग लेने के लिए अधिवक्ताओं और न्यायधीश उपस्थित हुए। इस अधिवेशन के मुख्य अतिथि के रूप में भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश व मानवाधिकार आयोग के सदस्य श्री पीसी घोष भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे। 
          आचार्यश्री ने उपस्थित न्यायाधीश और अधिवक्ताओं को प्रथम अपने मंगलवाणी का अभिसिंचन प्रदान करते हुए ‘ठाणं’ आगम में वर्णित आश्रवों के पांच द्वारों का वर्णन करते हुए कहा कि आश्रव वह हेतु है, जिसके कारण कर्म पुद्गल आत्मा से चिपकते हैं। वैसे आत्मा तो अपने आपमें शुद्ध तत्त्व है, किन्तु पाप और पुण्य के पुद्गल आत्मा से आश्रव के कारण चिपकते जाते हैं और आत्मा मलीन बन सकती है। आत्मा के पास तक कर्मों में लाने में सहायक आश्रव द्वार होते हैं। ‘ठाणं’ आगम में पांच प्रकार के आश्रव द्वार बताए गए हैं-पहला मिथ्यात्व, दूसरा अविरति, तीसरा प्रमाद, चौथा कषाय और पांचवा योग। आश्रवों को आत्मा तक पहुंचने से रोकने लिए आदमी को प्रयास करना चाहिए। आध्यात्म की साधना का मूल उद्देश्य आश्रव द्वारों को बंद करने या उन्हें रोकने का प्रयास किया जाता है। साधना के द्वारा ज्यों-ज्यों आश्रव कम होता है आत्मा का उर्ध्वारोहण होने लगता है। आदमी को आश्रवों को जानकर उन्हें रोकने का प्रयास करना चाहिए तथा अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। 
          आचार्यश्री ने उपस्थित न्यायाधीशों और वकीलों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सामान्य तौर पर राग-द्वेष या काम-क्रोध के कारण आदमी अपराध कर सकता है या करता है। गलतियों को हृदय परिवर्तन के द्वारा रोकने का प्रयास धर्मगुरु करते हैं, किन्तु पूर्णतया समाप्त होना संभव नहीं हो सकता। गलतियों को रोकने के लिए गलतियों पर दंडित करने के लिए न्यायपालिका होती है। न्यायाधीश और वकील पूर्ण सत्यता और निष्ठा के आधार पर दोषियों को दोष के आधार पर दंडित करने का प्रयास करें ताकि सज्जन की सज्जनता में विश्वास बना रहे और गलतियों पर रोक लगाई जा सके। न्यायाधीश का यह पहला धर्म होना चाहिए कि किसी के साथ अन्याय न होने पाए। न्याय और दंड के आधार पर वकील और न्यायाधीश समाज और देश को निरपराधता की ओर ले जाने में अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं। 
          वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अधिवेशन के मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश व मानव अधिकार आयोग के सदस्य श्री पीसी घोष ने आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी विचाराभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री से मंगल आशीष की आकांक्षा की। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रकाश मालू ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इसके अलावा श्री एसके सिंघी व श्री राज सिंघवी ने लीगल सेल की जानकारी दी। मुख्य अतिथि का स्वागत टीपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मालू व महामं़त्री श्री नवीन पारख द्वारा साहित्य प्रदान कर किया गया। 













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