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साधु रत्नों की बड़ी और मोटी तथा श्रावक रत्नों की छोटी माला : आचार्यश्री महाश्रमण

- महाश्रमण विहार हुआ गुलजार, बाह्य प्रवास के बाद लौटे महातपस्वी महाश्रमण
- पंच महाव्रत और अणुव्रत का आचार्यश्री ने किया सूक्ष्म विवेचन
- आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान का सरसशैली में किया वर्णन
- आचार्यश्री की सन्निधि में पहुंचे आरएसएस के पूर्व प्रचारक व विद्या भारती के राष्ट्रीय महासचिव
- आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रदान किए गए ‘प्रेक्षा गौरव’ व ‘जीवन-विज्ञान सेवी’ सहित अन्य सम्मान
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          07 अक्टूबर 2017 राजरहाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (JTN) : कोलकाता के राजरहाट स्थित ‘महाश्रमण विहार’ से छह अक्टूबर को एक दिवसीय कोलकाता शहर के सॉल्टलेक में एक दिवसीय प्रवास के उपरान्त शनिवार को जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वापस चतुर्मास प्रवास स्थल पधारे तो महाश्रमण विहार आचार्यश्री महाश्रमण के चरणरज को पाकर गुलजार हो उठा। एकबार फिर से चतुर्मास प्रवास स्थल में नव उत्साह, नवीन ऊर्जा, नवीन शक्ति का संचार हो गया। आचार्यश्री ने ‘अध्यात्म समवसरण से निर्धारित समय से आगमाधारित अपना मंगल प्रवचन प्रदान किया। वहीं आचार्यश्री के दर्शन को पहुंचे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व प्रचारक और विद्या भारती के राष्ट्रीय महासचिव श्री अवनीश भटनागर ने भी आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अपनी विचाराभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद भी प्राप्त किया। आचार्यश्री के पावन सन्निधि में जैन विश्वभारती द्वारा ‘प्रेक्षा गौरव’ व ‘जीवन-विज्ञान सेवी’ पुरस्कार सहित अन्य सम्मान भी लोगों को प्रदान किए गए। आचार्यश्री की कृति ‘सुखी बनो’ पुस्तक का बंगाली अनुवाद की पुस्तक भी श्रीचरणों में अर्पित की गई। 
          शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में पावन प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री जब एक दिवसीय प्रवास के चतुर्मास प्रवास स्थल से विहार किया तो अपने आराध्य की अनुपस्थिति पाकर मानों सुना-सुना सा हो गया था। कहा जाता है जैसे मंदिर में भगवान न तो मंदिर का कोई औचित्य नहीं होता और मंदिर वैभवविहीन लगता है उसी प्रकार आचार्यश्री के प्रस्थान से महाश्रमण विहार सबकुछ होते हुए भी वैभवविहीन नजर आ रहा था। शनिवार की सुबह जैसे ही महाश्रमण विहार में आचार्यश्री का पुनरागमन हुआ तो मंदिर में भगवान के लौटते ही इस नवीन तीर्थ स्थल मानों समस्त वैभव सम्पन्न हो गया और पूरा परिसर गुलजार हो उठा। 
          आचार्यश्री ने अध्यात्म समवसरण से अपना पावन प्रवचन प्रदान करते हुए ‘ठाणं’ आगम के पांचवें स्थान में वर्णित पंच महाव्रतों व अणुव्रत का सूक्ष्म विवेचन करते हुए कहा कि पांच महाव्रत सर्वप्रणातिपातविरमण, सर्वमृषावादविरमण, सर्वअदत्तादानविमरण, सर्वमैथुनविरमण तथा सर्वपरिग्रहविरमण की बात बताई गई है। मूल शब्द तो व्रत है, किन्तु उसके आगे महा विशेषण जुड़ जाने से महाव्रत हो गया। अणव्रत और महाव्रत में आचार्यश्री ने अंतर का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन भर के लिए तीन कर्ण तीन योग से व्रतों का अनुपालन महाव्रत और कुछ समय के लिए आंशिक रूप में उन व्रतों का अनुपालन अणुव्रत है। साधु पांच महाव्रत धारण करने वाले होते हैं। साधु अनगार धर्म का पालन करने वाले होते हैं तथा श्रावक अगार धर्म का पालन करने वाले और अणुव्रत को स्वीकार करने वाले होते हैं। साधु और श्रावक दोनों को रत्नों की माला बताया गया है। साधु रत्नों की बड़ी और मोटी माला तथा श्रावक रत्नों की छोटी माला के होता है। आचार्यश्री ने पंच महाव्रतों की का विस्तार से वर्णन किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री ‘तेरापंथ प्रबोध’ आख्यान शृंखला के अंतर्गत द्वितीय आचार्यश्री भारीमाल के शासनकाल का वर्णन किया। 
          आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे आरएसएस के पूर्व प्रचारक और विद्या भारती के राष्ट्रीय महासचिव श्री अवनीश भटनागर ने आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं परम सौभाग्यशाली हूं कि आज मुझे आज जैसे महातपस्वी की मंगल सन्निधि प्राप्त हुई। आचार्यश्री की कृति ‘सुखी बनो’ का बंगाली भाषा रूपांतरित पुस्तक ‘सुखी होउ’ को जैन विश्वभारती के अध्यक्ष श्री रमेशचंद बोहरा सहित अन्य ने आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। जैन विश्वभारती की ओर से प्रेक्षाध्यान में सराहनीय कार्य करने वाले स्व. धर्मानंदजी जैन लुणिया को प्रेक्षा गौरव तथा जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में योगदान देने हेतु श्री दवीलाल कोठारी को ‘जीवन-विज्ञान सेवी’ सम्मान जैविभा के अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों द्वारा प्रदान किया गया। 














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