03.12.2017 तोपचांची, धनबाद (झारखंड), JTN, जनमानस के मानस को पावन बनाने के लिए अपनी अमृतमयी वाणी से ज्ञानगंगा प्रवाहित करने जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, तीर्थंकरों के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी झारखंड की धरा पर विहरण करते हुए बीस जैन तीर्थंकरों के निर्वाण भूमि के रूप में प्रख्यात सम्मेद शिखरजी में पधारे। अखंड परिव्राजक आचार्यश्री केवल सम्मेद शिखर में पधारे ही नहीं, बल्कि झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी जिसकी ऊंचाई लगभग 1350 मीटर है। उसके ऊपर बने तीर्थंकरों के टोंक में पधारने हेतु लगभग 21 किलोमीटर की एक दिन में यात्रा कर एक नवकीर्तिमान स्थापित कर दिया। इसके साथ ही सम्मेद शिखरजी में तीन दिनों तक ज्ञानगंगा का प्रवाहित कर, झारखंड सरकार द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में झारखंड के विकास की नवीन पथ प्रशस्त कर रविवार को एकबार पुनः ज्योतिचरण मानवता के कल्याण के लिए बढ़ चले।
रविवार की प्रातः जब आचार्यश्री ने सम्मेद शिखरजी से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री का प्रस्थान का मार्ग भी वहीं था जो सम्मेद शिखरजी में पधारने के दौरान था। घने जंगलों के बीच से अभय के साधक अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गतिमान थे। जबकि यह जंगल नक्सली गतिविधियों के मामले में सबसे संवेदनशील माना जाता है। ऐसे जंगली पथ के बावजूद समता के साधक अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए गतिमान थे। आज अखंड परिव्राजक का मार्ग जितना जंगली, खतरों से भरा था, वह उतना प्रलम्ब भी था। जंगलों के रास्ते विहार कर आचार्यश्री सीधे लगभग 20 किलोमीटर की प्रलम्ब यात्रा कर आचार्यश्री विद्यालय पहुंचे।
विद्यालय में प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतमयी वाणी का रसपान कराते हुए कहा कि हमारे धर्म शास्त्रों में मोक्ष की चर्चा की गई है। जैन धर्म में वर्णित 9 पदार्थों में अंतिम पदार्थ मोक्ष ही है। मोक्ष का आधार होता है, मुक्त हो जाना। शरीर से आदमी को मुक्त हो जाने को मोक्ष कहते हैं। जब तक आदमी संसारी कार्यों में उलझा हुआ है, उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। संसारी जीव कर्मों से युक्त होते हैं। उनकी आत्मा कर्मबंधों से बंध जाती है। आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-इन चार गतियों में रहने वाला जीव संसारी होता है। संसारी जीव मोह वाला होता है।
आचार्यश्री ने दो संसारी जीवों का वर्णन करते हुए कहा कि त्रस और स्थावर दो प्रकार के संसारी जीव होते हैं। एक इन्द्रियवाला जीव स्थावर होता है और एक से अधिक इन्द्रिय वाला जीव त्रस होता है। सिद्ध जीव ही मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मोक्ष प्राप्त जीव को शरीर की अपेक्षा नहीं होती। यह कहा जा सकता है कि शरीर के बिना संसारी जीव नहीं हो सकते। जो सशरीरी है वह संसारी है। शरीरधारी प्रत्येक जीव संसारी होता है। एक अर्थ में कहा जाए तो जहां शरीर है वहीं संसार है। मोक्ष में आदमी को शरीर से मुक्ति मिल जाती है। मोह कर्मों से भावित आत्मा को निर्मल बनाकर आदमी को मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आदमी बार-बार जन्म-मरण और शरीर के चक्कर से मुक्ति पाना चाहता हो तो उसे मोक्ष की साधना का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष की साधना करने वाला जीव संसारी मोह बंधन से दूर और शरीर से मुक्त हो सकता है।
आचार्यश्री की पावन प्रेरणा का श्रवण करने के उपरान्त विद्यालय के क्लर्क श्री फटिकचन्द बोस ने अपनी हर्षित भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर संकल्पत्रयी स्वीकार कराई। स्थानीय थाने के आॅफिसर इंचार्ज श्री शीवपूजन बहेलिया ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :