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गुस्से से बचने का प्रयास जीवन के लिए लाभदायी हो सकता है : आचार्य श्री महाश्रमण जी

- प्रवर्धमान अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता संग पहुंची भापुर - भोलेश्वर ढाल हाइस्कूल में आचार्यश्री ने अवमोदरिका के सिद्धांत को जीवन में उतारने की दी प्रेरणा 

आचार्यश्री महाश्रमणजी
          30 जनवरी 2018 भापुर, ढेकानल (ओड़िशा) : ओड़िशा की धरा प्रवर्धमान अहिंसा यात्रा मंगलवार को अपने प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी व उनकी धवल सेना के साथ ढेकानल जिले भापुर गांव में पहुंची। जहां स्थित भोलेश्वर ढाल हाइस्कूल महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल पदार्पण से पावन हुआ। 
          मंगलवार की प्रातः के निर्धारित समयानुसार आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ शंकरपुर से पावन प्रस्थान किया। इससे पूर्व ही शंकरपुर के ग्रामीण आचार्यश्री के दर्शन को पहुंच रहे थे। सभी को यथासमय आशीर्वाद और मंगल संबोध प्रदान कर आचार्यश्री अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़े। रास्ते में आने विभिन्न गांवों के ग्रामीणजनों को अपने आशीष से आच्छादित करते आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर भापुर स्थित भोलेश्वर ढाल हाइस्कूल में पधारे। 
          स्कूल प्रांगण में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि एक शब्द अवमोदरिका है। इसका पर्यायवाची शब्द उनोदरी भी है। अवमोदरिका का अर्थ होता है पेट में कुछ कमी रखना। इसके व्यापक संदर्भों में जाएं तो अवमोदरिका के तीन भागों में बांटा जा सकता है। इनमें पहली है उपकरण अवमोदरिका। इसमें साधु या गृहस्थ को अपने उपभोग के पदार्थों यथा कपड़े और व्यवस्थाओं का अल्पीकरण करना। वस्तुओं का पूर्ण उपयोग और कम में भी उपयोग कर लेना उपकरणों की अवमोदरिका हो जाती है। साधु को विशेष रूप से वस्त्र और पात्र की अवमोदरिका रखने का प्रयास करना चाहिए। वस्तु का पूर्ण उपयोग भी रखने का प्रयास करना चाहिए। 
          दूसरी अवमोदरिका होती है भक्तपान अवमोदरिका। सामने खाने वाली चीज पड़ी हो तो भी खाने में अवमोदरिका रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु को भोजन में अल्पता रखने का प्रयास करना चाहिए। खान-पान की वस्तुएं उतनी ही लेने का प्रयास करना चाहिए जितना की उपयोग हो सके। साधु ही गृहस्थ भी खाने-पीने में संयम रखने का प्रयास करें। भोजन के समय नींद, हंसी व कलह आदि से बचने का प्रयास करना चाहिए। तीसरी अवमोदिरिका होती है भाव अवमोदरिका। साधु को गुस्सा तो शोभा नहीं देता है, किन्तु कभी आए भी तो उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ को भी गुस्से से यथासंभव बचने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, यथानुकूलता गुस्से से बचने का प्रयास जीवन के लिए लाभदायी हो सकता है। 
          आचार्यश्री ने बालमुनियों और बाल साध्वियों को अध्ययन में समय लगाने की पावन प्रेरणा प्रदान की। इसके उपरान्त चतुर्दशी होने के कारण समस्त साधु-साध्वियां और समणियां आदि भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित थीं। हाजरी वाचन के क्रम में आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को संघ-संघपति के प्रति उनके निष्ठा व समर्पण के सूत्रों को व्याख्यायित किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने बालमुनि प्रिंसकुमारजी, मुनि केशिकुमारजी, मुनि जयदीपकुमारजी तथा बाल साध्वी आदित्यप्रभाजी व साध्वी विशालयशाजी को अपने सम्मुख उपस्थित होकर लेखपत्र उच्चरित करवाया। इसके उपरान्त समस्त साधु-साध्वियों व समणियों ने खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। 
          तत्पश्चात गत दिनों दिवगंत शासनश्री साध्वी मंजूबालाजी की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। इसमें आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त परिचय दिया तथा उनके आत्मा के प्रति मध्यस्थ भाव प्रकट करते हुए चार लोगस्स का ध्यान करवाया। असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने शासनश्री साध्वी मंजूबालाजी के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए। शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी, शासनश्री साध्वी जिनप्रभाजी तथा साध्वी आरोग्यश्रीजी ने भी दिवंगत साध्वी के विषय मंे अपने स्मरण बताए और उनकी आत्मा के सुगति प्राप्त करने की कामना की। 







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