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सर्व ज्ञान के प्रकाश से ही आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है : आचार्यश्री महाश्रमणजी

- प्रवर्धमान अहिंसा यात्रा का ढेकानल जिले से अंगुल जिले में मंगल प्रवेश 
- ज्योतिचरण के रज से पावन होने वाला सातवां जिला बना अंगुल
- सातमाइल से लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर महातपस्वी पहुंचे महिधरपुर नोडल हाइस्कूल 
आचार्यश्री महाश्रमणजी

          02 फरवरी 2018 महिधपुर, अंगुल (ओड़िशा) : जन-जन को मानवता का संदेश देते मानवता के मसीहा, शांतिदूत, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ आध्यात्मिकता के प्रकाश से ओड़िशा राज्य को जयोतिर्मय बना रहे हैं। लोगों को सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति का संदेश देकर उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। आचार्यश्री की ओजस्वी और प्रेरणादायी वाणी का श्रवण कर लोग अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार भी कर रहे हैं तथा यथानुकूलता अपने जीवन में उसे उतारने का भी प्रयास कर रहे हैं। 
          अब तक ओड़िशा के छह जिलों को अपने चरणरज से पावन करने के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को अपनी धवल सेना के साथ सातमाइल से मंगल विहार किया तथा लगभग बारह किलोमीटर का विहार किया तो अपने विहार के दौरान ओड़िशा राज्य के ढेकानल जिले को अतिक्रांत कर ओड़िशा के सातवें जिले के रूप में अंगुल जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। अंगुल जिले में आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ महिधरपुर गांव स्थित नोडल हाइस्कूल में पधारे। 
          विद्यालय प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं, ग्रामीणों व विद्यार्थियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि भारतीय दार्शनिक और धार्मिक जगत में एक शब्द आता है मोक्ष। उसे निर्वाण भी कहा जाता है। मोक्ष आत्मा की परम गति होती है। मोक्ष में आत्मा शुद्ध, निरामय तथा ज्योतिर्मय होती है। वहां केवल एकांत सुख होता है। अर्थात वहां दुःख का नामोनिशान नहीं होता। एक के ही साथ अंत हो जाए तथा जहां दुःख होता ही नहीं। वह मोक्ष आदमी को तब प्राप्त हो सकता है जब उसे सर्वज्ञान की प्राप्ति हो जाए। सर्व ज्ञान के प्रकाश से ही आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। असर्वज्ञ आत्मा मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकती। आदमी को सर्व ज्ञान की प्राप्ति तेरहवें गुणस्थान में प्राप्त होती है। 
          इस काल में संपूर्ण ज्ञान हो जाना संभव नहीं लगता। इसलिए आदमी को जितना हो सके अच्छे ज्ञान का अर्जन करने का प्रयास करना चाहिए। स्वल्प ज्ञान भी आदमी आदमी प्राप्त करने का प्रयास करे। ज्ञान और शब्दों को कोई आर-पार नहीं है। इसलिए आदमी को जितना अच्छा हो सके, उतना ज्ञान ग्रहण कर अपने जीवन और अपनी आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करना चाहिए। स्वाध्याय के द्वारा ज्ञानार्जन का प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। चिताड़ना ने ज्ञान मजबूत होता है। आदमी को ज्ञानार्जन का प्रयास कर अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए। सर्वज्ञ ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान का समूल नाश हो सकेगा तो एकांत सुख की प्राप्ति हो सकती है। 
          मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने आज के प्रवचन से जुड़े तत्त्वज्ञान से संबंधित प्रश्न साधु-साध्वियों से पूछे और उन्हें उस विषय में विस्तार से समझाया। इसके पश्चात आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में गत दिनों कालधर्म को प्राप्त साध्वी कमलरेखाजी की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने साध्वी कमलरेखाजी के विषय में संक्षिप्त जानकारी दी तथा उनके प्रति मध्यस्थ व तटस्थ भाव से उनके आत्मा के विकास की कामना की। इसके उपरान्त चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने साध्वी कमलरेखाजी के जीवन के कुछ हिस्सों पर प्रकाश डाला और उनके आत्मा के उत्तरोत्तर विकास करने की कामना की। 
          अंत में आचार्यश्री के आह्वान पर उपस्थित ग्रामीणों, शिक्षकों व विद्यार्थियों ने अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।  





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