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गुस्सा काम का नहीं, चित्त को बनाएं प्रसन्न : महातपस्वी महाश्रमण

30.03.2018 रायगढ़ा (ओड़िशा), JTN, दो दिवसीय प्रवास के दूसरे दिन शुक्रवार को सुबह से दर्शनार्थियों के आने का क्रम आरम्भ हो गया। आचार्यश्री के दर्शन के उपरान्त आचार्यश्री के मंगलवाणी का श्रवण करने की चाह रखने वाले श्रद्धालु प्रवचन पंडाल में उपस्थित हो रहे थे। उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखाजी से पावन प्रेरणा प्राप्त हुई। उसके उपरान्त प्रवचन पंडाल में पधारे आचार्यश्री चारों ओर आज साधु-साध्वियां और समणश्रेणी भी मंचासीन था। क्योंकि आज अवसर था चतुर्दशी को होने वाली हाजरी का। तेरापंथ धर्मसंघ के मर्यादा पालन का मजबूत आधार स्तंभ है यह हाजरी वाचन का क्रम। जो चारित्रात्माओं को अपने महाव्रतों के अनुपालन और चारित्र की सुरक्षा के प्रति सदैव सजग रहने के लिए उत्प्रेरित करता है। 
इस क्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित लोगों को साधु-साध्वियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु हो अथवा गृहस्थ चिड़-चिड़े स्वभाव का नहीं होना चाहिए। साधु को तो गुस्सा अच्छा भी नहीं लगता। गुस्से को यथासंभव असफल करने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से में आदमी के चेहरे की सुन्दरता भी कम हो जाती है। चेहरे की सुन्दरता से अधिक अच्छा चित्त की प्रसन्नता होती है। इसलिए आदमी को गुस्से को असफल बनाने का प्रयास करना चाहिए और अपने चित्त को प्रसन्न बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। 

गुस्सा न घर के लिए अच्छा होता है, न समाज के लिए अच्छा होता है, न व्यापार के लिए अच्छा होता है और न ही आत्मा के लिए अच्छा होता है। आदमी को कभी गुस्सा आ भी जाए तो उसे यथासंभव रोकने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को स्वयं को गुस्से से बचाने का प्रयास और चित्त को प्रसन्न बनाने का प्रयास करे तो उसकी सुन्दरता और अधिक निखार आ सकता है। 

आचार्यप्रवर ने अपने मंगल प्रवचन के उपरान्त रायगढ़ावासियों को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) रूपी प्रासाद भी प्रदान किया तो मानों अपने आराध्य की ऐसी कृपा पाकर रायगढ़ावासी निहाल हो गए। तत्पश्चात उपस्थित साधु-साध्वियों और समणश्रेणी ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। 

इसके उपरान्त श्रद्धालुओं को साध्वीवर्याजी ने जीवन को सार्थक बनाने की संबोध प्रदान किया। ओड़िशा प्रान्तीय तेरापंथी सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री छत्रपाल जैन, श्री विमल सेठिया ने अपने आस्थासिक्त उद्गार व्यक्त किए। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर अपने आराध्य के चरणों में अपने भावसुमन अर्पित किए तो आचार्यश्री ने भी उन्हें अपने स्नोहाशीष से अभिसिंचित किया।

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