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आत्मा शाश्वत है - आचार्य श्री महाश्रमण


त्रिदिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर बढ़ चले ज्योतिचरण  
टिटिलागढ़ से लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे बीजेपुर हाइस्कूल 

Aacharya Shri Mahashraman Ji Inspiring School Students During Vihar 


ABTYP JTN 12.03.2018 बीजेपुर, बलांगीर (ओड़िशा) :  तीन दिनों तक टिटिलागढ़ के श्रद्धालुओं को आध्यात्मिकता का खुराक देकर लोगों सुप्त हो चुकी मानवता को झंकृत अहिंसा यात्रा प्रणेता, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के ज्योतिचरण गतिमान हुए नए क्षेत्र में आध्यात्मिकता की प्रभावना को जन-जन के मानस को मानवता के संदेशों से जागृत करते, लोगों को सन्मार्ग बताते हुए अपनी धवल सेना के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में पश्चिम ओड़िशा क्षेत्र में गतिमान हैं। अपनी यात्रा के दौरान आचार्यश्री बलांगीर जिले के टिटिलागढ़ में त्रिदिवसीय प्रवास किया। यहां रहने वाले तेरापंथी श्रद्धालुओं को ही नहीं, अपितु समग्र मानव जाति को अपने आध्यात्मिक मंगल प्रवचनों के माध्यम से आध्यात्मिकता की खुराक प्रदान करने के उपरान्त सोमवार की प्रातः आचार्यश्री ने जब मंगल प्रस्थान किया तो एकबार अपने आराध्य को विदा करने के लिए मानों श्रद्धालुओं को हुजूम उमड़ पड़ा। सभी को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ चले। 

मार्ग के आसपास आने वाले ग्रामीणों को भी अपने मंगल आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री लगभग चैदह किलोमीटर का विहार कर बजेपुर गांव स्थित हाइस्कूल में पधारे। हाईस्कूल परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म जगत की साधना में ममत्व की भावना को छोड़ने की बात बताई गई है। सामान्य आदमी हमेशा ममत्व की भावना होता है। वह यह सोचता है यह घर मेरा है, यह मेरा शरीर है, किन्तु वास्तव में आदमी का कुछ भी अपना नहीं है। इसलिए आदमी को उसके प्रति ममत्व का भाव नहीं रखने का प्रयास करना चाहिए। 

साधु को इस ममत्व से दूर रहने की प्रेरणा प्रदान की गई है। साधु को किसी के प्रति भी ममत्व का भाव नहीं रखने का प्रयास करना चाहिए। एक कहानी के माध्यम से आचार्यश्री ने प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अपने शरीर, मकान आदि के प्रति ममत्व भाव आदमी आखिर कब तक रखत सकता है। इन सबसे एक दिन संबंध छूट सकता है। एक आत्मा शाश्वत है। आत्मा और शरीर भिन्न-भिन्न है। जिस प्रकार सोना मिट्टी में मिले होने के बाद भी अपना अलग अस्तित्व रखता है, उसी प्रकार शरीर और आत्मा एक होते हुए भी आत्मा का अपना अलग महत्त्व रखती है। आत्मा को अलग समझ कर आदमी को अपनी आत्मा का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए और अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त बिजेपुर के उपस्थित ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की और उन्हें अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री से सहर्ष दिनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 



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