ओड़िशा के घाटियों में महातपस्वी का प्रलंब विहार
लगभग सोलह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री महाश्रमणजी पहुंचे पोखरीबंध
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राष्ट्रपति भवन से लेकर ग्रामीण जन की कुटीर तक सद्भावना का सन्देश देते हुए गतिमान आचार्य श्री महाश्रमण |
23.03.2018 पोखरीबंध, कालाहांडी (ओड़िशा)ः मानवता के कल्याण के लिए मौसम, मार्ग, महत्त्वाकांक्षा को दरकिनार कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के गतिमान ज्योतिचरण ओड़िशा के जंगलों और घटियों से भरे रास्ते पर गतिमान हुए तो लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलंब विहार कर पठारी इलाके सुदूर क्षेत्र में बसे पोखरीबंध गांव में पहुंचे। गांव स्थित उन्नति उच्च विद्यालय में महातपस्वी आचार्यश्री का प्रवास हुआ तो विद्यालय परिसर से ही आचार्यश्री ने ग्रामीणों को पावन प्रेरणा प्रदान कर उन्हें संकल्पत्रयी स्वीकार कराई।
शुक्रवार को प्रातः कुचाईजोर स्थित प्राथमिक विद्यालय से मंगल विहार किया। आज का पूरा मार्ग घाटियों से भरा हुआ था। दोनों ओर स्थित पहाड़ों के बीच से बना मार्ग आरोह-अवरोह लिए हुए था, तथा मार्ग के दोनों ओर सघन वृक्षों की कतारे खड़ी थीं। बीच-बीच में छोटी नदियों के किनारे स्थित पेड़ों पर जहां हरियाली छाई हुई थी तो पहाड़ों पर स्थित पेड़ मानों सूखे-से थे। आज का मार्ग जितना आरोह-अवरोह लिए हुए था, उतना ही प्रलंब भी था, किन्तु मानवता के कल्याण का संकल्प लेकर निकले अखंड परिव्राजक के ज्योतिचरण गतिमान हो चुके थे। उन्हें न मौसम की परवाह थी और न ही मार्ग की। कैसा भी मार्ग हो और कैसा भी मौसम है मानवता के कल्याण कि लिए गतिमान हैं तो अबाध रूप से गतिमान हैं। इस पठारी भागों के अधिकांश पहाड़ विशाल-विशाल चट्टानों से भरे हुए हैं। आचार्यश्री कुछ किलोमीटर दूरी पर चले थे मार्गों के दोनों ओर बन्दरों का पूरा झुंड ही दिखाई देने लगा। मानों बंदरों का समूह भी महातपस्वी के अभिनन्दन के लिए राह देख रहे थे। आरोह-अवरोह युक्त मार्ग को पार करते हुए आचार्यश्री लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलंब विहार कालाहांडी जिले के पोखरीबंध गांव स्थित उन्नति उच्च विद्यालय में पधारे।
आचार्यश्री ने विद्यालय परिसर में ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित ग्रामीणों, विद्यार्थियों व शिक्षकों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मनुष्य का जीवन परस्पर सहयोग वाला होता है। एक-दूसरे के सहयोग से मानव जीवन आगे बढ़ता है। एक-दूसरे का सहयोग होता है तो जीवन में सहूलियत प्राप्त हो सकती है। जहां आदमी का पारस्परिक संबंध विसंबंध में बदल जाता है तो आदमी एक-दूसरों के प्रति जलन, इर्ष्या और द्वेष की भावना रखने लगता है और दूसरों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करने लगता है। आदमी को ऐसी प्रवृत्तियों से स्वयं को बचाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को दूसरों के प्रति इर्ष्या नहीं रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी दूसरों की उन्नति देख आखिर क्यों जले। आदमी को दूसरों की उन्नति के प्रति तो प्रमोद भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के छोटे गुणों को भी बढ़ाकर बताना चाहिए और देखना चाहिए। उसके गुणों का सम्मान करना चाहिए। आदमी को दूसरों को सुख में दुःखी नहीं होना चाहिए। दूसरों के सुख के प्रति मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। ईष्र्या पाप है। आदमी को इस पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को द्वेष भाव का छेदन कर प्रमोद भाव का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। इससे स्वयं का भी लाभ हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर संकल्पत्रयी स्वीकार करवाई। विद्यालय की शिक्षिका श्रीमती कल्पना साईं ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हर्षित भावों को अभिव्यक्त किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
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