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साधुओं की संगति श्रवण से सिद्धि तक का मार्ग प्रशस्त करने वाली हो सकती है - आचार्य श्री महाश्रमण जी

मनहारी प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पथ पर महातपस्वी का प्रलंब विहार
लगभग अठारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे जीमड़ीपेटा

HIS HOLINESS AACHARYA SHRI MAHASHRAMAN JI 


31.03.2018 जीमड़ीपेटा, रायगढ़ा (ओड़िशा) : रायगढ़ावासियों पर विशेष कृपा बरसाते, जन-जन के मन को हर्षाते और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत करते हुए महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रायगढ़ा में दो दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर शनिवार को रायगढ़ा से मंगल प्रस्थान किया और अपनी अखंड परिव्राजकता और अधिक व्यापक बनाते हुए आचार्यश्री प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण मार्ग से लगभग अठारह किलोमीटर का प्रलंब विहार कर रायगढ़ा जिले के जीमड़ीपेटा स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय में पधारे तो आचार्यश्री महाश्रमणजी के इस महाश्रम के आगे जैन-अजैन और यहां तक की स्थानीय ग्रामीण भी प्रणत थे। आज भले ही सूर्य बादलों की ओट में था, किन्तु उमस, आरोह-अवरोह युक्त घुमावदार विषम मार्ग के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी अखंड परिव्राजक आचार्यश्री ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करने के लिए प्रलंब विहार किया। 

रायगढ़ा में महावीर जयंती सहित दो दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर आचार्यश्री शनिवार की सुबह जब उत्कल गौरव मधुसूदन इंस्टिट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी मंगल प्रस्थान किया। कल शाम से ही देश के विभिन्न हिस्सों में हुए मौसम परिवर्तन का असर इधर भी देखने को मिल रहा था। आसमान में बादल छाए हुए थे, जिसके कारण सूर्य अदृश्य बना हुआ था। इस कारण सुबह का मौसम सुहावना बना हुआ था, किन्तु आज का विहार लगभग अठारह किलोमीटर का था। इस बढ़ती जा रही गर्मी के मौसम में भला साधारण आदमी को कौन इतनी लंबी पदयात्रा को सोचे। आदमी पैदल तो दूर गर्मी के दिनों में वाहनों से भी घर से बाहर नहीं निकलना चाहते हैं, किन्तु मानवता के मसीहा, महातपस्वी, राष्ट्रसंत, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण को अपनी धवल सेना के साथ प्रस्थित हो चुके थे। रास्ते में आचार्यश्री के दर्शन करने वाले नगरवासियों और रास्ते में आने वाले वाले ग्रामीणों को आचार्यश्री अपने दोनों करकमलों से पावन आशीष प्रदान करते अग्रसर थे। आचार्यश्री जैसे-जैसे शहर के कोलाहल से दूर होते जा रहे थे प्रकृति अपनी सुषमा के साथ महातपस्वी का स्वागत करने को आतुर नजर आ रही थी। चारों ओर से पहाड़ों से घिरा मार्ग, पहाड़ों और उनके आसपास उगे हजारों-हजारों वृक्ष इस विहार पथ को प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण बना रहे थे। मार्ग में एक जगह तो ऐसा भी था जहां राजमार्ग के दोनों से ट्रेनों के आवागमन के लिए लाइनें बिछी थी तो नीचे नदी भी प्रवाहित हो रही थी। इस कारण मार्ग अनायास ही लोगों को अपनी आकर्षित कर रहा था। ऐसे मार्ग पर आचार्यश्री लगभग अठारह किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर जीमड़ीपेटा स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय परिसर में पधारे। 

विद्यालय परिसर में बने प्रवचन पंडाल से आचार्यश्री ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु की पर्युपासना के दस लाभ बताए गए हैं। साधु के पास बैठने से कुछ सुनने को प्राप्त होता है। सुनने से आदमी को कितना ज्ञान प्राप्त हो जाता है। आदमी ज्ञान प्राप्त कर हेय और उपादेय को जान लेता है। हेय और उपादेय की जानकारी होने पर आदमी हेय अर्थात् बुरे कार्यों का त्याग-प्रत्याख्यान करता है तो वह संयम की दिशा में आगे बढ़ सकता है। साधुओं की संगति श्रवण से सिद्धि तक का मार्ग प्रशस्त करने वाली हो सकती है। इसलिए आदमी को निरंतर सत्संगति करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे लोगों के संगति में रहने और बुरी संगत से दूर रहकर आदमी अपने आपको पापों से बचा सकता है और अपने जीवन का कल्याण भी कर सकता है। आचार्यश्री ने तेरापंथी श्रद्धालुओं को तेरापंथी महासभा और सभा की देखरेख में संचालित की जाने वाली ज्ञानशाला के माध्यम से अपने बच्चों को संस्कारी बनाने की भी प्रेरणा प्रदान की। 

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त विद्यालय के शिक्षकों और ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प स्वीकार कराए। विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री नवीनदास जी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपने भावपूर्ण हृदयोद्गार व्यक्त कर आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त किया। 

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