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सिंधीकेला में अहिंसा यात्रा संग शांतिदूत का मंगल पदार्पण


आचार्यश्री ने विनय का समुचित अभ्यास करने की दी पावन प्रेरणा

Aacharya mahashraman ji at Sindhikela, Odisha 


04.03.2018 सिंधीकेला, बलांगीर (ओड़िशा) :  छोटा नागपुर के पठारी भाग में बसी संपूर्ण उत्कल धरा अर्थात् ओड़िशा राज्य की धरती पर जन कल्याणकारी अहिंसा यात्रा संग जन-जन के मानस को परिवर्तन करने निकले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी बगोमुण्डा की धरती पर प्रथम समणी दीक्षा प्रदान कर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया। 
इस स्वर्णिम इतिहास के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ रविवार की प्रातः बगोमुण्डा से मंगल प्रस्थान किया। बगोमुण्डा के श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य को विदाई दी तो अपने आराध्य के स्वागतार्थ सिंधीकेला के श्रद्धालु और अनंत उत्साह और उल्लास के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे। उत्साही श्रद्धालु तो अपने आराध्य को लेने पहले ही उनकी सन्निधि में पहुंच चुके थे। आज के विहार पथ के दोनों ओर पथरीले खेतों में उगे वृक्षों और झाड़ियों के साथ पलाश के वृक्ष भी काफी संख्या में नजर आ रहे थे। जो अपने ऊपर लगे चटक लाल रंग के फूलों से अत्यधिक आकर्षित लग रहे थे क्योंकि जहां बसंत में सभी वृक्षों के पत्ते झड़ते और फूल नजर नहीं आते वहीं यह पलाश ऐसे समय में मानों अपने साहस का परिचय दे रहा था। दूसरी ओर सड़क मार्ग से गतिमान शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी भी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए निरंतर गतिमान थे। अभी शरीर से पसीने निकालने वाली गर्मी ने लोगों को बेहाल करना आरम्भ कर दिया है। इसके बावजूद समता के साधक और अदम्य साहस के पुंज आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर सिंधीकेला नगर की सीमा में प्रवेश किया तो अपने आराध्य के स्वागत में मानों पूरा सिंधीकेला बिछ गया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ सिंधीकेलावासी अपने आराध्य के संग नगर स्थित अग्रवाल जैन तेरापंथ भवन पधारे। 
भवन परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी से पावन प्रेरणा प्राप्त हुई। उसके उपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने श्रीमुख से अमृतवाणी प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में कई बार अहंकार हावी हो जाता है। अहंकार को बढ़ावा देने में गुस्सा सहयोग करता है। अहंकार और गुस्सा मानों एक दूसरे को सह देने वाले होते हैं। आदमी को अहंकार को छोड़कर विनीत बनने का प्रयास करना चाहिए। विनीत को प्रभुता और बड़प्पन की प्राप्ति हो सकती है तो वहीं अहंकारी को आदमी को लघुता की ओर ले जाती है। अविनीत मानव, पशु या देव दुःखी होते हैं और सुविनीत सुखी बनते हैं। आदमी को सुविनीत बनने का प्रयास करना चाहिए। अनुशासन से जुड़ा हुआ आदमी शोभायमान होता है। आदमी को विनय का समुचित अभ्यास करने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो उपस्थित श्रद्धालुओं ने सहर्ष तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। 
अपने आराध्य का अभिनन्दन करते हुए सर्वप्रथम सिंधीकेला से दीक्षित समणी आदर्शप्रज्ञा ने अपने आराध्य की अभिवन्दना की। तेरापंथी सभाध्यक्ष श्री सुनील जैन, पश्चिम ओड़िशा प्रान्तीय सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री छत्रपाल जैन व तेयुप के संगठन मंत्री श्री धीरज जैन ने हर्षाभिव्यक्ति दी। सिंधीकेला तेरापंथ महिला मंडल, युवक परिषद, व सभा के सदस्यों ने समूह रूप में स्वागत गीत का संगान किया। अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल ने गीत का संगान किया तो ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य का अभिनन्दन किया। कांटाबांजी विधायक हाजी मोहम्मद अयूब खान ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपने हृदयोद्गार व्यक्त किया तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 

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