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आदमी को राग-द्वेष से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए - आचार्य श्री महाश्रमण जी


02.04.2018 कोमारदा, विजयनगरम् (आंध्रप्रदेश), JTN, भारत के हृदय कहे जाने वाले दिल्ली से अपनी धवल सेना के साथ भारत के पूर्वाचंल में स्थित राज्यों की व दो विदेशी धरती को अपने ज्योतिचरण से ज्योतित करने वाले अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी, शांतिदूत व तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को अपनी श्वेत रश्मियों के साथ दक्षिणायन हुए तो एक साथ मानों पूरा दक्षिण आलोकित हो उठा। अपनी अहिंसा यात्रा के साथ भारत के पूर्वांचल के बारह राज्यों की यात्रा सुसम्पन्न कर आचार्यश्री ने तेरहवें राज्य के रूप में आंध्रप्रदेश की धरती पर अपने चरण टिकाए तो आंध्रप्रदेश की धरती मानों स्वर्णमय बन गई और पूरा दक्षिण महाश्रमणमय बन गया। इस मंगल सुअवसर को आंध्रप्रदेश ही नहीं, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक से आए सैंकड़ों लोगों के हजारों नेत्रों ने निहारा और संजोया। 


रविवार की रात को तेज हवा के साथ बरसात हुई तो ऐसा लगा मानों महातपस्वी को अपनी धरती से विदा करने से पूर्व ओड़िशा अपने अश्रुधारा से महातपस्वी के चरणरज धो रहा था तो वहीं यह बरसात आंध्रप्रदेश के उस हिस्से को स्वच्छ बना रही थी जहां महातपस्वी के ज्योतिचरण टिकने वाले थे। सोमवार की प्रातः सूर्य जब पहाड़ों की ओट से अपनी अरुणिमा के साथ गतिमान हो रहा था तो उसी समय तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी भी दक्षिणाभिमुख होने को जा रहे थे। दक्षिण के चार राज्य क्रमशः आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक के सैंकड़ों श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित थे। सबके मन में एक उत्साह, उमंग, उल्लास और अहोभाव का ज्वार था तो उनके नयनों में उस पल को देखने की बैचनी थी जब महातपस्वी के चरण दक्षिण की धरा पर पड़े। जन-जन का कल्याण करने वाले महातपस्वी अपनी श्वेत सेना के साथ विहार पथ पर अग्रसर हुए। 


लगभग एक किलोमीटर की दूरी तय कर दो राज्यों की सीमा पर आचार्यश्री पधारे। आचार्यश्री के वहां पधारते ही मानों लोगों की भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ा और यह जंगल का ऐरिया में महाश्रमण के जयघोषों से गूंज उठा। रात की बरसात के कारण जंगलों की बढ़ी हरितिमा और पहाड़ों बगल से बहती नदी के साथ दक्षिण की धरती भी आज मानों इस महासूर्य का अभिनन्दन कर रही थी। आचार्यश्री सीमा के निकट विराजे। साध्वीप्रमुखाजी से मंगलपाठ का श्रवण किया तथा स्वयं भी मंगल मंत्रों का उच्चारण करने के उपरान्त लगभग 7.21 बजे आचार्यश्री ने आंध्रप्रदेश के विजयनगरम जिले की सीमा में मंगल चरण टिकाए तो दक्षिण का कण-कण बोल उठा स्वागतम-सुस्वागतम। दक्षिण के सीमा में खड़े सैंकड़ों लोगों के हजारों जुड़े हुए हाथ अपने आराध्य का दक्षिण की धरा पर स्वागत कर रहे थे तो हजारों नेत्र भी इस मंगल सुअवसर को अपने निहारकर संजोने में जुटे। महातपस्वी के सामने जैसे-जैसे हजारों सर झुकते जा रहे थे आचार्यश्री अपने दोनों करकमलों से आशीष की वृष्टि करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। दक्षिण पारंपरिक वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि के बीच गूंजते जयघोष श्रद्धालुओं के अतिशय उल्लास का प्रतीक बने हुए थे। ऐसे मंगलमय माहौल और उल्लसित वातावरण में महातपस्वी ने दक्षिण धरा पर अपना प्रथम विहार प्रारम्भ कर दिया। ऐतिहासिक और स्वर्णाक्षरों अंकित होने वाली पूर्वांचल की यात्रा सुसम्पन्न कर अब दक्षिणाभिमुख हो चुके थे। ऐसे महासूर्य का दक्षिणायन होना मानों दक्षिणवासियों का भाग्योदय करने वाला था। कुल लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री कोमारदा स्थित ए.पी.टी.डब्ल्यू.आर. स्कूल के प्रांगण में पधारे। 


स्कूल परिसर में बने विशाल प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को सर्वप्रथम मुख्यनियोजिकाजी और साध्वीप्रमुखाजी से पावन प्रेरणा प्राप्त हुई। उसके उपरान्त दक्षिण की धरा पर अपने प्रथम मंगल प्रवचन को पधारे। आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को साधना में पराक्रम करने का प्रयास करना चाहिए। कहा गया है कि राग-द्वेष को जीत लिया है तो जंगल जाने से क्या होगा और राग-द्वेष पर विजय ही नहीं हो पा रही है तो जंगल जाने से कया फायदा होगा? इसलिए साधना के लिए पहले आदमी को राग-द्वेष को जीतने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष की प्राप्ति और एकांत सौख्य की प्राति के लिए आदमी को राग-द्वेष से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। जिसका सारा ज्ञान प्राकाशित हो जाता है वह सर्वज्ञ बन जाता है और वह मोक्ष को प्राप्त करने का आधिकारी हो जाता है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वज्ञता आवश्यक होती है। 

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान अपनी दक्षिण की यात्रा आरम्भ के संदर्भ में कहा कि अब लगभग तीन वर्षों के लिए दक्षिण की यात्रा के संदर्भ में आना हुआ है। हमारे नवमें आचार्य तुलसी का आना हुआ था। दक्षिण से हमारे कितने-कितने चारित्रात्माएं है। दक्षिण भारत में भी धार्मिक चेतना का जागरण हो, यह अभिष्ट है। आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान की तो स्थानीय भाषा में उसे उच्चरित कर बच्चों को संकल्पत्रयी स्वीकार करवाई गई। 

आचार्यश्री के मंगल प्रेरणा और संकल्प के बाद अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमणजी ने आचार्यश्री के दक्षिण यात्रा के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी आदित्यप्रभाजी व साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। दक्षिण भारत से जुड़ी हुई साध्वियों ने आचार्यश्री के स्वागत में गीत का संगान किया। मुनि योगेशकुमारजी तथा मुनि वर्धमानकुमारजी ने अपनी धरती पर अपने आराध्य का अभिनन्दन किया। उसके उपरान्त चेन्नई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धर्मचंद लूंकड़, बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर, हैदराबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री प्रकाश बरड़िया, विशाखापट्टनम् व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष श्री कमल बैद, विजयवाड़ा तेरापंथी सभाध्यक्ष श्री दिनेश श्यामसुखा, विजयनगरम तेरापंथी सभा के मंत्री श्री पदम सुरणा, श्री नरेन्द्र नाहटा, विशाखापट्टनम के अध्यक्ष श्री सिद्धकरण आंचलिया, श्री देवकरण आच्छा, श्री करणीसिंह बरड़िया, राममुदरी सभा के अध्यक्ष श्री सम्पतमल सुराणा ने भी अपनी हर्षाभिव्यक्ति श्रीचरणों में अर्पित की। दक्षिण तेरापंथी महिलाएं व विशाखापट्टनम् महिला मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। अमरावती कैपिटल के विधायक श्री टी. श्रवण कुमार, श्री जे.वी.एस. रेड्डी, श्री जे.एस.एल. राव व श्री कुट्टम राव गारू ने भी अपने आचार्यश्री क स्वागत में अपनी स्थानीय भाषा में भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। बेंगलुरु सभा के अध्यक्ष ने अपनी टीम के साथ गीत का संगान अपने आराध्य की अभिवन्दना की। 

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