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संकटों में आदमी डरे नहीं : आचार्य श्री महाश्रमण जी


29.05.2018 विजयवाड़ा, कृष्णा (आंध्रप्रदेश):, JTN, पौराणिक कृष्णा नदी के तट पर बसे विजयवाड़ा में द्विदिवसीय प्रवास के दूसरे दिन जब आचार्यश्री ने सिद्धार्थ काॅलेज परिसर में बने आॅडिटोरियम हाॅल से अपने श्रीमुख से ज्ञानगंगा बहाई तो ऐसा लगा मानों असंभव-सा लगने वाला कृष्णा और गंगा का मिलन आज संभव हो रहा था। हो भी क्यों न जब अध्यात्म जगत् देदीप्यमान धर्माचार्य, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग लोगों को जीवन की बुराइयों से मुक्त होकर सत्पथ पर चलने की पावन प्रेरणा प्रदान करने के लिए अपने श्रीमुख से कृष्णा नदी के तट पर बसे इस शहर में अपनी ज्ञानगंगा बहाई तो पूरा विजयवाड़ा नगर ही इस ज्ञानगंगा में गोते लगाकार तृप्ति का अनुभव कर रहा था। 


विजयवाड़ा प्रवास के दूसरे दिन अर्थात् मंगलवार की प्रातः विजयवाड़ावासियों के लिए मंगल ही मंगल लिए हुए थी। हो भी क्यों न आखिर उनके ग्यारहवें आराध्य आचार्यश्री महाश्रमणजी स्वयं उनकी संभाल करने उनके नगर में विराजित थे। विजयवाड़ावासियों की सुबह सूर्य के किरणों के पृथ्वी पर आने से पूर्व ही हो चुका था। वे पौ-फटने से पहले ही अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित हो चुके थे। वृहत् मंगलपाठ का श्रवण कर अपने वर्षों की प्यास को मिटाया तो वहीं साथ संतों की गोचरी सेवा में लगकर पुण्य का अर्जन करने में जुटे रहे। 


निर्धारित समयानुसार जब सिद्धार्थ काॅलेज परिसर में बने आॅडिटोरियम हाॅल में मुख्य मंगल प्रवचन का समय हुआ तो समस्त विजयवाड़ावासी ससमय प्रवचन श्रवण के लिए भी उपस्थित थे। सर्वप्रथम श्रद्धालुओं को मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने अपना उद्बोधन प्रदान किया। उसके उपरान्त मंच पर उदित हुए तेरापंथ के ग्यारहवें महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी। आचार्यश्री के मंचासीन होते ही पूरा हाॅल 'जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण' के जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री ने सभी पर आशीष वृष्टि की।

आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म की साधना का बहुत महत्त्व है। उसके अनुकूल स्थान मिल जाए। जहां शुद्ध हवा, शांत वातावरण, प्राकृतिक सुषमा हो तो ध्यान लगाने में सहायता प्राप्त हो सकती है। ध्यान के माध्यम से आदमी अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। आचार्यश्री ने अभयदान को सर्वश्रेष्ठ दान बताते हुए कहा कि छह काय के जीवों की हिंसा का संकल्प ले लिया जाए और प्राणियों को अभय का वरदान दे दिया जाए तो इससे बड़ा दान दुनिया में कोई नहीं है। अभय के भाव को पुष्ट करने के लिए आदमी को मैत्री की भावना को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। संकटों में आदमी डरे नहीं, बल्कि अभय की साधना का प्रयास करे, तो संकटों से मुक्त हो सकता है। 
मंगल प्रवचन के पश्चात् जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री रमेश बोहरा आदि ने आचार्यश्री के समक्ष एक आगम ग्रंथ 'सूयगडो' का अंग्रेजी अनुवाद की पुस्तक सहित दो अन्य पुस्तकों को भी श्रीचरणों में समर्पित किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के कार्यसमिति सदस्य श्री नरेन्द्र नाहटा, अणुव्रत कार्यसमिति सदस्य श्री विमल बैद, श्री जगदीश कोठारी, मूर्तिपूजक जैन समाज के पूर्व सचिव श्री जगदीश जैन व श्रीमती सीमा गोलछा ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल की कन्याओं ने गीत का संगान कर अपने आराध्य का अभिवादन किया।

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