02.06.2018 चोवदावरम, गुन्टूर (आंध्रप्रदेश), JTN, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी आंध्रप्रदेश के विभिन्न नगरों, उपनगरों, कस्बों और गांवों की ओर गतिमान हैं। कई जिले, कस्बे, शहर, नगर, उपनगर, गांव पावन हो चुके हैं तो कई अभी महातपस्वी के चरणरज की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आचार्यश्री के मंगल चरण धीरे-धीरे वर्ष 2018 के चातुर्मासिक प्रवास स्थल की ओर बढ़ रहे हैं। वर्तमान में आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ गुन्टूर जिले में यात्रायित हैं।
शुक्रवार की सायं से ही बदले मौसम के मिजाज के कारण आसमान में बादल थे, जिसके कारण सूर्य अदृश्य बना हुआ था। सूर्य के किरणों की प्रखरता तो नहीं थी, किन्तु उमस के कारण आचार्यश्री के धवल वस्त्र गीले हो चुके थे। मानवता के कल्याण को समर्पित महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर चोवदावरम में स्थित कल्लाम हरनधा रेड्डी इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी परिसर में पधारे।
कालेज परिसर के आॅडोटोरियम हाॅल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि संसारी लोगों से संन्यासियों का पथ अलग होता है। संसारी लोग भोग के पथ पर आगे बढ़ते हैं तो संत व संन्यासी योग के मार्ग पर बढ़ते हैं। साधु-संन्यासी बनने का परम लक्ष्य होता है मोक्ष की प्राप्ति। मोक्ष जहां केवल सुख ही सुख होता है, दुःख का कहीं नाम नहीं होता। वहां न शरीर होता है, न मन होता है और न वाणी होती है। आदमी को मोक्ष की प्राप्ति जब होती है जब उसका सारा ज्ञान प्रकाशित हो जाए, अर्थात् वह सर्वज्ञ हो जाए। सर्वज्ञता प्राप्ति की अर्हता होती है कि आदमी वीतरागता को प्राप्त कर ले। मोह व अज्ञान दूर हो जाता है तो आदमी वीतरागता को प्राप्त हो जाता है। मोह व अज्ञान को दूर करने के लिए आदमी को राग-द्वेष से मुक्त होना चाहिए। राग व द्वेष के कारण आदमी पाप कर्मों का बंध कर सकता है। इसलिए आदमी राग-द्वेष से मुक्त होने के उपरान्त ही आदमी मोह और अज्ञान से दूर हो सकता है। इसलिए आदमी को धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। सत्संगति के माध्यम से आदमी को ज्ञान और विज्ञान की प्राप्ति हो सकती है और आदमी के मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है।
बेंगलुरु स्थित ए.एस.सी. सेण्टर एण्ड काॅलेज में भारतीय सेना के जवानों को ट्रेनिंग देने वाले मेजर जनरल श्री नरपत सिंह राजपुरोहित आज सुबह आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे। आचार्यश्री के साथ विहार किया, मंगल प्रवचन का भी श्रवण किया, उसके उपरान्त आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षाभिव्यक्ति व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरा परम सौभाग्य कि आप मुझे आपके दर्शन और मंगल प्रवचन सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। जन्म से ही मुझे साधु-संतों की सेवा को भी धर्म बताया गया। आज देश की रक्षा करने की प्रेरणा और जज्बा देव, आप जैसे संत और अपने धर्म से ही हमें प्राप्त होती है जो हमें हमारे देश की सुरक्षा कार्य के प्रति दृढ़ बनाए रखती है। आपसे इसी आशीर्वाद की कामना करता हूं कि देश सेवा के लिए मिली नई जिम्मेदारियों का भी निष्ठापूर्वक पालन कर सकूं और अपने देश की सेवा कर सकूं। वहीं राजस्थान पत्रिका के प्रभारी संपादक श्री राजेन्द्रशेखर व्यास ने भी आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
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