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दूसरों के गुणों के प्रति प्रमोद भाव रखने का प्रयास करे : महातपस्वी महाश्रमण



आचार्यश्री ने मनुष्य आयुष्य बंध के चार कारणों का किया वर्णन 

15.06.2018 वीरपल्ली, प्रकाशम् (आंध्रप्रदेश), JTN, जन मानस को अपनी अमृतवाणी से परिवर्तित करने, लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाने को अपनी अहिंसा यात्रा व श्वेत सेना के साथ पहली बार दक्षिण भारत को पावन बनाने को गतिमान हैं। भारत की भौगोलिक स्थिति को देखा जाए तो उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत के प्रदेश ज्यादा गर्म होते हैं। इसका एक कारण यह भी होता है कि गर्मी के समय में सूर्य दक्षिणायन होता है, उसी प्रकार तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी भी इस दक्षिण भारत की यात्रा कर रहे हैं। एक सूर्य तो धरती को वर्तमान में तपा रहा है तो वहीं धरती के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अमृतवाणी की वर्षा से लोगों को मानसिक तपन को शांत करने का प्रयास कर रहे हैं। 

ऐसे महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश में गतिमान हैं। प्रकाशम् जिले को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करते हुए राष्ट्रसंत आचार्यश्री राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-16 पर चरैवेति-चरैवेति के सिद्धांत को सार्थक बना रहे हैं। 

शुक्रवार को आचार्यश्री उलवपाडु से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया और कुछ दूरी के बाद पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग पर पधारे। आचार्यश्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुछ किलोमीटर ही पधारे थे कि राजमार्ग के दोनों ओर पके हुए आमों का पूरा बाजार सा लगा हुआ था। लकड़ी के अस्थाई दुकानों पर सजे आम और उनके पीछे आम के बगीचों इस क्षेत्र में अपनी प्रचुरता को प्रदर्शित कर रहे थे। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ वीरपल्ली स्थित ए.पी. माॅडल स्कूल एण्ड जूनियर काॅलेज परिसर में पधारे। 

काॅलेज परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मुनि मेघकुमार और भगवान महावीर के बीच हुए संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि प्राणी चार कारणों से मनुष्य गति के आयुष्य का बंध कर सकता है। पहला है-प्रकृति भद्रता। जो प्राणी प्रकृति से भद्र हो, सरल हो, वह मनुष्य गति का आयुष्य बंध कर सकता है। दूसरा कारण है-प्रकृति विनीतता। जो प्राणी विनीत होता है वह भी मनुष्य गति का आयुष्य बंध कर सकता है। मनुष्य गति के आयुष्य बंध का तीसरा कारण है-सदयहृदयता। जो आदमी सरल हृदय वाला होता है, वह भी मनुष्य गति का बंध कर सकता है। चौथा कारण है परगुण सहिष्णुता। आदमी दूसरों के गुणों के प्रति प्रमोद भाव रखने का प्रयास करे तो मनुष्य गति का आयुष्य बंध कर सकता है। 

84 लाख जीव योनियों में मनुष्य जीवन दुर्लभ बताया गया है कि क्योंकि देवता भी सीधे मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकते और मनुष्य उच्च साधना के आधार पर मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। इसलिए आदमी को इस मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। 

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