मिंजुर (चेन्नई), JTN, मूल तत्व है चेतना मन, वाणी, शरीर, इंद्रिया चेतना का परिवार हैं। मन के द्वारा चिंतन, स्मृति और कल्पना होती है। मन का होना एक विकसित प्राणी का होना होता है। मन विहीन प्राणी अविकसित प्राणी है। मन एक ऐसा घोड़ा है जो उत्पथ की ओर ले जा सकता है, अतः उस पर लगाम लगानी चाहिए। मन को स्थिर रखने के लिए अशुभ विचार नहीं आए, अगर आ जाए तो किसी मंत्र का ध्यान करना, पवित्र आत्माओं का स्मरण से उसको स्थिर बनाना चाहिए उपरोक्त विचार तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मिंजूर में आयोजित चेन्नई नगर प्रवेश समारोह में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहें।
आचार्यश्री ने आगे फरमाया कि जैसे जीवन में मन का महत्व है, वैसे ही वाणी की बड़ी उपयोगिता है विचारों को आदान प्रदान करने के लिए भाषा बहुत जरूरी होती है। आपने कहा की बात को लंबा करना एवं साररहित बोलना वाणी के दोष हैं। व्यक्ति को अपनी बात सारभूत करनी चाहिए, सत्य बात कहनी चाहिए, कठोरता का वाणी में उपयोग नहीं करना चाहिए, बोलने से पहले सोचना चाहिए वाणी में काटव नहीं अपितु पाटव होना चाहिए।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि शरीर से असद् और सद् दोनों प्रवृत्तियां हो सकती हैं। हमारा शरीर किसी प्राणी को पीड़ा देने वाला नहीं, अपितु पीड़ा हरने वाला होना चाहिए, दीन दुखियों को चित्त समाधि पहुंचाने वाला होना चाहिए। शरीर की साधना के लिए भोजन का संयम भी होना चाहिए। क्या खाना, कब खाना, क्या खाना उसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। अंडा, मांस धूम्रपान, मद्यपान इत्यादि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। आपने कहा शरीर को स्थिर एवं स्वस्थ रखने के लिए पद्मासन, सुखासन का प्रयोग करना चाहिए। आचार्य श्री ने आगे कहा कि इंद्रियां बहुत महत्वपूर्ण है। हम पंचेंद्रिय प्राणी हैं कान, आंख, नाक, जीभ, त्वचा इन पांचों इंद्रियों का दुरुपयोग नहीं अपितु सदुपयोग करना चाहिए। ये पाँचों इन्द्रिया भोगेन्द्रिय नहीं अपितु ज्ञानेन्द्रिय बने ऐसा प्रयास करें।
मुख्यमुनि श्री महावीरकुमार जी ने कहा कि गुरु परोपकारी, कल्याणकारी, करुणा से ओत: प्रोत होते हैं। उनका हृदय सजग,सरल होता है। उनकी वाणी से निरंतर अमृत झरता रहता है। चेन्नई की जनता सौभाग्यशाली है कि उन्हें आचार्य महाश्रमण का चतुर्मास मिला है। अब आप सब का दायित्व है कि हर समय जागरूकता के साथ अपने जीवन को पवित्र बनाने के लिए गुरु के सान्निध्य को प्राप्त करना चाहिए। मातृ ह्रदया साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने कहा कि गुरु कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न, कामधेनु के समान होते हैं, परमाराध्य आचार्य प्रवर उनके सामान हैं। व्यक्ति को जीवन में उच्च बनने के लिए सज्जन व्यक्तियों का साथ करना चाहिए, उनकी वाणी को सुनना चाहिए, उनके विचारों पर आचरण करना चाहिए।
मुख्यनियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभाजी, मुनिश्री अनेकांत कुमार, साध्वी श्री काव्यलता, साध्वी श्री तन्मयप्रभा, समणी निर्देशिका चारित्रप्रज्ञा, मुमुक्षु नम्रता ने अपने विचार रखे।
आरकाट क्षेत्र के MLA ईश्वर अप्पन ने आचार्य प्रवर का स्वागत करते हुए, अंहिसा यात्रा के अन्तर्गत नैतिकता, सदाचार, नशामुक्ति, के द्वारा जन कल्याण के कार्यों की सराहना करते हुए हर सम्भव सहयोग का आश्वासन दिया।
आचार्य महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री रमेश बोहरा, विहार सेवा प्रभारी श्री गणपत डागा, इरोड से श्री रमेश पटवारी, तिरुपुर से श्री शांतिलाल झावक, श्री जैन महासंघ महिला संयोजिका श्रीमती कमला मेहता, तेरापंथ सभा मंत्री श्री विमल चिप्पड़, तेरापंथ युवक परिषद् के अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा, महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती कमला गेलड़ा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति के द्वारा परमाराध्य आचार्य प्रवर का भावभिना स्वागत अभिनंदन किया। तेरापंथ युवक परिषद्, तेरापंथ महिला मंडल ने सामूहिक गितिका एवं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थीयों ने बहुत ही सुंदर भाव दृश्य के द्वारा सबका मन मोह लिया।
इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लुकड़, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विमल कटारिया के साथ हजारों की संख्या में जन समुदाय उपस्थित था।
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