08.03.2019 परक्कड, अलप्पुझा (केरल): जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले 'ईश्वर का अपना घर' कहे जाने वाले प्रकृति से सम्पन्न केरल में अपनी अहिंसा यात्रा के साथ गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अब धीरे-धीरे केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम की बढ़ते जा रहे हैं, वैसे अब अरब सागर भी महातपस्वी के श्रीचरणों का स्पर्श पाने को निकट से निकटतम होता चला जा रहा है। ऐसे दृश्य को देख लोग सहसा ही कहते नजर आ रहे हैं कि अब अरब सागर के किनारे पर अध्यात्म जगत के महासागर का आगमन हो चुका है।
शुक्रवार को आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना के साथ अलप्पुझा जिला मुख्यालय स्थित सनातन धर्म महाविद्यालय से आचार्यश्री ने मंगल प्रस्थान किया। आज आसमान में बादलों की उपस्थिति ने सूर्य को अदृश्य बना रखा था, इसलिए लोगों को थोड़ी राहत महसूस हो रही थी। आचार्यश्री के कुछ किलोमीटर के विहार के बाद हल्की बूंदाबांदी भी आरम्भ हो गई। ऐसा लगा मानों प्रत्येक राज्यों की तरह केरल प्रदेश ने बादलों को श्रीचरणों को पखारने के लिए बादलों को भेज दिया था। हल्की बूंदे श्रीचरणों को पखार मानों धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। हालांकि ये बूंदे कुछ समय बाद ही थम गई और बूंदों के थमने के साथ ही सूर्य भी बादलों को चीरता हुआ आसमान में आ गया। तब तक आचार्यश्री लगभग चौदह कीलोमीटर का विहार कर परक्कड स्थित श्री वेणुगोपाल देवाश्रम में पधार गए थे। इस देवाश्रम के व्यवस्थापक श्री आर. राजीव पाई आदि ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनन्दन किया।
इस देवाश्रम परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को जीवन में तपस्या का महत्त्व बताते हुए कहा कि तपस्या से शरीर की, वाणी की, मन की और आत्मा की शुद्धि भी होती है। तपस्या से कर्मों की निर्जरा से आत्मा की शुद्धि होती है। तपस्या करने से शरीर के तंत्र भी ठीक रह सकते हैं।
इसके उपरान्त आचार्यश्री ने आज तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी के जन्मदिवस पर उनका स्मरण करते हुए कहा कि आज फाल्गुन शुक्ला द्वितीया है जो परम पूज्य कालूगणी का जन्मदिवस है। वे तैंतीस वर्ष की अवस्था में तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता बने थे। उनके दो सुशिष्य आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञजी भी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य बने थे। आचार्यश्री ने परम पूज्य कालूगणी से अपना सम्बन्ध भी जोड़ते हुए कहा कि मुझे जब दीक्षा लेने या नहीं लेने का निर्णय करना था तो उस समय मैंने आचार्य कालूगणी के नाम की माला फेरी थी और मानों उनकी प्रेरणा ऐसा साधुपन का मार्ग प्रशस्त हो गया। मैं परम पूज्य कालूगणी को उनके जन्मदिवस पर श्रद्धा के साथ स्मरण कर रहे हैं।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात देवाश्रम के व्यवस्थापक आर. राजीव पाई ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी आस्थासिक्त भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने सान्ध्यकालीन परक्कड से विहार किया। अखण्ड परिव्राजक का आज का विहार पथ से अरब सागर दृष्टिगोचर हो रहा था। उसकी उठती लहरें मानों श्रीचरणों का स्पर्श करना चाहती थीं। एक ओर लहराता समुद्र, दूसरी ओर धरती पर छाई हरितिमा और बीच में राजमार्ग पर गुजरते अध्यात्म जगत के महासागर का गतिमान होना सुन्दर दृश्य उत्पन्न कर रहा था। आचार्यश्री लगभग चार किलोमीटर का विहार कर नलुचिरा स्थित गवर्नमेंट हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे। यहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।
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