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'शासन गौरव' एवं साधक संत मुनिश्री ताराचंदजी स्वामी का संक्षिप्त जीवन परिचय


ऐसे संत जिन्होंने तीन तीन आचार्यों के दिल में अमिट छाप छोड़ी ।
शासन गौरव मुनिश्री ताराचंदजी स्वामी के लिए आचार्यों द्वारा विशेष रुप से फरमाये गए शब्द 👇🏻

मुनि ताराचंदजी हमारे संघ के विशिष्ट साधक साधुओं में से एक है - आचार्य तुलसी
मुनि ताराचंदजी विनम्रता, आध्यात्मिक भावना, सहजता, सरलता और समर्पण के प्रतीक हैं - आचार्य महाप्रज्ञ
शासन गौरव मुनि श्री ताराचंद जी स्वामी हमारे धर्म संघ के असाधारण साधु है। मेरे लिए तो वे विशेष सम्मानीय हैं - आचार्य महाश्रमण

जन्म, दीक्षा, सानिध्य -  आपका जन्म राजस्थान के बीकानेर जिले के अंतर्गत "रासीसर" नाम के छोटे कस्बे में 19 जनवरी 1931 को हुआ। पिताश्री रुघलालजी चोरड़िया के आकस्मिक निधन को देखकर मातुश्री मोतीदेवी व साध्वी श्री वृंदाजी (बोरज) की प्रेरणा पाकर आपने मात्र 13 वर्ष की उम्र में सन 1943 में गंगाशहर में आचार्य श्री तुलसी के कर कमलों से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षित होते ही आपने मुनि श्री चम्पालाल जी स्वामी ( भाईजी महाराज ) के संरक्षण में अपने आत्मगुणों का विकास किया। आपकी सहज अंतर्मुखी वृति से प्रभावित होकर आचार्य श्री तुलसी ने आपको मुनि श्री मीठालाल के साथ वंदना करवाई। उनके साथ आपका लगभग 17 वर्षों तक सुखद शांत सहवास रहा। आपको मुनि श्री नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञजी) के सांझ में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

अग्रगण्य शासन गौरव - ई. सन 1977 में कालू जन्म शताब्दी के अवसर पर छापर में आचार्य श्री तुलसी ने आपको अग्रगण्य की वंदना करवाई। आपका अग्रगण्य काल प्रायः यात्रामय रहा। आपने भारत के प्रायः प्रान्तों ( 2-3 प्रान्तों को छोड़कर) की यात्राएं की है। आपने लगभग 46 हज़ार 700 किलोमीटर की यात्रा की है। आपकी यात्राओं पर आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने टिप्पणी की है - " तुम्हारी यात्रा बहुत प्रभावी व उपयोगी हो रही है। वस्तुतः आप एक शासन प्रभावक संत रहे हैं। गणाधिपति गुरुदेव के इंगित के अनुरूप आपकी सहज साधना , आंतरिक समर्पण वृत्ति व संघनिष्ठा का मूल्यांकन करते हुए आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने 132वें मर्यादा महोत्सव पर आपको "शासन गौरव" अलंकरण से अलंकृत किया।

वैराग्य उद्बोधक दीक्षा प्रदाता - मुनि भरत, मुनि धन्य, साध्वी सिद्धार्थप्रभा, साध्वी रश्मिप्रभा, समणी यशस्वीप्रज्ञा आपसे प्रेरित होकर ही संयम के पथ पर अग्रसर हुए। आपकी शासन सेवा को अधिमान देते हुए श्रद्धेय आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की आपको दीक्षाएं प्रदान करने की आज्ञा दी। तद्नुरूप आपने जैन विश्व भारती में मुनि आदित्यकुमार जी को मुनि दीक्षा व समण हँसप्रज्ञ को समण दीक्षा प्रदान की।

अंतर्यात्रा - ऐसे तो प्रारंभ से ही साधना के प्रति आपकी नैसर्गिक रुचि रही है जिसमें मुनि श्री मिठालालजी व आचार्य श्री महाप्रज्ञजी का सानिध्य पाकर और निखार आता गया। समय-समय पर आपने अनेकों प्रेक्षा प्रयोग किए। सन 1995 से आपने प्रतिवर्ष एक माह मौन के साथ एकांतवास का प्रयोग प्रारंभ किया। यह प्रयोग अनुकूल समय का योग पाकर वृद्धिंगत होता गया। जीवन के 71वें वर्ष ( सन 2001 से ) में आप अपने जीवन को मोड़ देते हुए क्रमशः प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर अग्रसर हुए। सन 2014 में मौन -ध्यान साधना का यह क्रम तब शिखरों चढ़ा जब आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आपकी भावना के अनुरूप ही आपको एकांतवास की साधना की अनुज्ञा प्रदान की। तभी से ( लगभग 5 वर्षों तक) सरदारशहर में प्रवासित होकर आपने पूर्ण मौनपूर्वक सर्वेन्द्रिय संयम की साधना की।

समाधि मरण - प्रारंभ से ही मुनि श्री का जीवन व्यवस्थित रहा है। आपका यही व्यवस्था कौशल आपके समाधि मरण की तैयारी में झलक रहा था। मुनि पर्याय के 76वें वर्ष को आपने 'समाधि वर्ष' के रूप में निर्धारित कर रखा था। तदनुसार वि. सं. 2076 के कार्तिक माह में आपने उपवास के एकान्तर, मार्गशीर्ष में बेले-बेले व पौष में तेले-तेले की तपस्या कर अपने शरीर के साथ साथ कषाय को भी कृश किया। माघ माह में अन्न का वर्जन कर पानी सहित तीन द्रव्यों का सेवन किया। फाल्गुन माह में पानी सहित दो द्रव्यों का सेवन किया। आपने अपने जीवन के 85वें वर्ष से लेकर 89वें वर्ष तक की आयु में उपवास से लेकर नौ तक की तपस्या कर अनुपम मनोबल का परिचय दिया है।

अपश्चिम मरणान्तिक संलेखना - आचार्य श्री महाश्रमण जी के आदेशानुसार 22 मार्च 2019 को संलेखना प्रारंभ की।
विशेषताएं -
1. आपकी आत्मनिष्ठा,
2. आपकी स्वस्थ जीवन शैली, जो न केवल आचार्यों की प्रशंसा का विषय बनी अपितु चतुर्विध धर्मसंघ के लिए भी प्रेरणा का माध्यम बनी रही। इस जीवन शैली के कारण ही जीवन के 89वें वर्ष में भी आप  (तुलनात्मक दृष्टि से) स्वस्थ हैं व ऊर्जा से परिपूर्ण हैं।
3. शासननिष्ठा,
4. प्रेक्षाप्रयोक्ता आदि।

सृजन- आपने अपनी ही आत्मकथा लिखी है, जिसका नाम है "मेरी यात्रा" ( वीतरागता की ओर) प्रकाशक- जैन विश्व भारती।
सहयोगी- मुनि श्री सुमतिकुमार जी (41 वर्षों से) , मुनि श्री देवार्य कुमारजी ( 22 वर्षों से) , मुनि श्री आदित्यकुमार जी (12 वर्षों से ) आपके साथ हैं।



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