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मिथ्यात्व को त्याज्य बताया गया है - आचार्य श्री महाश्रमण जी

मिथ्यात्व दृष्टिकोण को छोड़ने को आचार्यश्री ने किया उत्प्रेरित  
दो मासखमण की तपस्याओं का हुआ प्रत्याख्यान
13.07.2019 कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): दक्षिण भारत में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की ज्योति जलाने के लिए अपनी अहिंसा यात्रा के यात्रायित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अब अपनी धवल सेना के साथ दक्षिण भारत के दूसरे चतुर्मास के लिए कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के कुम्बलगोडु स्थित आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ सेवा केन्द्र में विराजमान हो चुके हैं। आचार्यश्री के यहां विराजते ही मानों यहां एक आध्यात्मिक वातावरण छा गया है। अब चार महीने तक यहां से लोगों को आध्यात्म की गंगा में पावन होने का सुअवसर प्राप्त होगा। 
भव्य चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने विशाल महाश्रमण समवसरण में नित्य आयोजित होने वाले मंगल प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि नौ तत्त्वों में पांचवा तत्त्व है-आश्रव। यह कर्मों का बन्धन कराने वाला है। आश्रव पाप कर्म का बन्ध कराता है और यह पुण्य कर्म का भी बंध कराता है। इसके रहते मनुष्य कभी भी मोक्ष को प्राप्त नहीं हो सकता। आचार्यश्री ने गुणस्थानों का वर्णन करते हुए कहा कि चैदह गुणस्थान होते हैं। मानों चैदह गुणस्थान मोक्ष प्राप्ति की चैदह सीढ़ियां होती हैं। इनको पार करने के उपरान्त ही आदमी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मिथ्यात्व को त्याज्य बताया गया है। इसके रहते सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो नहीं है, उसे मानना मिथ्यात्व दृष्टिकोण होता है। जो भगवान नहीं है, उसे भगवान मान लेना, जो गुरु नहीं उसे गुरु मान लेना और जो धर्म नहीं, उसे धर्म मान लेना मिथ्यात्व दृष्टिकोण है। इसलिए आदमी को मिथ्यात्व दृष्टिकोण को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। 
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आश्रव एक ऐसा नाला है जिसके माध्यम से कर्म रूपी पानी शरीर रूपी कुण्ड में भर जाता है। इसलिए आश्रव को रोकने का प्रयास करना चाहिए। ज्यों-ज्यों आश्रव कम होता जाएगा आत्मा ऊंची उठती जाएगी और आदमी गुणस्थानों की सीढ़ी चढ़ता जाएगा। आश्रव के रोकने से ही आत्मा का उत्थान हो सकता है। इसलिए आदमी को आश्रवों को रोकने और आत्मा के उत्थान का प्रयास करना चाहिए। 
बेंगलुरु से संबंधित साध्वी कीर्तिलताजी तथा अन्य साध्वियों ने गीत का संगान कर आचार्यश्री के समक्ष अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। श्री नवरत्नमल गांधी ने 10 तेले (30 दिन) की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। नवरत्नी बाई देरासरिया ने भी आचार्यश्री से 32 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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