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तेरापंथ सरताज ने बैंगलुरु की धरा में प्रदान की 23 दीक्षा, कराई अतीत की आलोचना

तेरापंथ सरताज आचार्य श्री महाश्रमण जी ने बैंगलुरु की धरा में प्रदान की 23 दीक्षा, कराई अतीत की आलोचना 

भव्य दीक्षा समारोह ने बेंगलुरु को आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी बना दिया अग्रणी 
03.07.2019 रहुतनहल्ली, बेंगलुरु (कर्नाटक), JTN, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी प्रथम कर्नाटक की यात्रा के दौरान बुधवार को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु स्थित भिक्षुधाम में 23 दीक्षाएं प्रदान कर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में नया स्वर्णिम अध्याय अंकित कर दिया। एक साथ दो मुनि और इक्कीस साध्वी दीक्षा ने प्राद्यौगिकी क्षेत्र में पूरी दुनिया में नाम रखने वाले बेंगलुरु की धरती को आध्यात्मिक चेतना के क्षेत्र में भी मानों अग्रणी बना दिया। 
बुधवार को बेंगलुरु में स्थित भिक्षुधाम में आज प्रातः से मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा पूर्व घोषित कार्यक्रमानुसार दीक्षा समारोह का समायोजन होना था। निर्धारित समय से पूर्व ही परिसर में बने ‘भिक्षु महाप्रज्ञ समवसरण’ प्रवचन पंडाल पूरी तरह जनाकीर्ण बन गया था। देशभर से जुटे श्रद्धालुओं की संख्या के कारण यह विशाल पंडाल भी बौना साबित हुआ। हजारों श्रद्धालुओं के मध्य जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे ही प्रवचन पंडाल में पधारे पूरा पंडाल ही नहीं समूचा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से शुभारम्भ हुआ। साध्वीवर्याजी ने ‘जीवन में त्याग का महत्त्व’ विषय पर उद्बोधन दिया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने श्रद्धालुओं को ‘तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली’ पर मंगल संबोध प्रदान किया। मुख्यमुनिश्री ने ‘सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र’ विषय को विश्लेषित किया। 
श्रेणी आरोहण कर रही समणियों का परिचय समणी कमलप्रज्ञाजी द्वारा तथा मुमुक्षु भाई-बहनों का परिचय मुमुक्षु अंकिता और मुमुक्षु संजना ने प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री के निर्देश पर मुमुक्षुओं में माता-पिता ने समुपस्थित होकर आचार्यश्री को आज्ञा पत्र प्रदान किया। संयम की दिशा में अग्रसर हो रहे मुमुक्षु धीरज दक, मुमुक्षु ऋषभ बुरड़ व श्रेणी आरोहण कर रही समणी कंचनप्रज्ञाजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति श्रीचरणों समर्पित की। दीक्षार्थिनी बहनों ने समूह रूप में गीत का संगान किया। श्रेणी आरोहण करने वाली समणियों ने भी समूह रूप में गीत का संगान किया। 
तत्पश्चात् आचार्यश्री ने जीवन में ज्ञान और फिर आचार के महत्त्व को व्याख्यायित करते हुए दीक्षा के क्रम को आरम्भ किया। आचार्यश्री ने सभी दीक्षार्थियों के परिजनों से मौखिक अनुमति ली तो उसके बाद आचार्यश्री ने सभी दीक्षार्थियों से भी उनके भावों को जाना और इस मार्ग पर गति करने के उनके दृढ़ संकल्पों को जाना। 
अभी तक तो 22 दीक्षाएं होनी ही निर्धारित थी, किन्तु आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित हुई समणी उन्नतप्रज्ञाजी ने अपने को भी इसी समय में दीक्षा देने की प्रार्थना की तो दयालुता के सागर ने तत्काल कृपा कराते हुए समणी उन्नतप्रज्ञा को उसी वक्त दीक्षा देने की आज्ञा प्रदान कर दीक्षा समारोह को ऐतिहासिक बना दिया। यह एक अनूठा दृश्य था। आचार्यश्री की इस करुणा की को देखकर पूरा प्रवचन पंडाल ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण’ के नारों से गूंज उठा। 
आचार्यश्री ने सर्वप्रथम समणी दीक्षा प्रदान करने के साथ आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए सभी को एक साथ साधु दीक्षा प्रदान की। सभी को तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य योगों का त्याग कराया। आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए अतीत की आलोचना करवाई। केश लुंचन का कार्यक्रम आरम्भ हुआ तो आचार्यश्री ने दो मुनियों तो साध्वीप्रमुखाजी ने 21 साध्वियों का केश लुंचन किया। आचार्यश्री ने मुनियों को रजोहरण तो साध्वीप्रमुखाजी ने नवदीक्षित साध्वियों को रोजहरण प्रदान किया। 
आचार्यश्री ने साधना पथ पर अग्रसर होने वाले नवदीक्षित साधु-साध्वियों को नामकरण किया। मुमुक्षु धीरज को मुनि धीरजकुमार, मुमुक्षु ऋषभ को मुनि ऋषिकुमार, समणी कंचनप्रज्ञा को साध्वी कृतार्थप्रभा, समणी विनयप्रज्ञा को साध्वी बीरप्रभा, समणी उन्नतप्रज्ञा को साध्वी उन्नतप्रभा, समणी अखिलप्रज्ञा को साध्वी आर्यप्रभा, समणी गंभीरप्रज्ञा को साध्वी गितार्थप्रभा, समणी आलोकप्रज्ञा को साध्वी आलोकप्रभा, समणी प्रगतिप्रज्ञा को साध्वी प्रणतिप्रभा, समणी धृतिप्रज्ञा को साध्वी धृतिप्रभा, समणी प्रशस्तप्रज्ञा को साध्वी प्रवीणप्रभा, समणी श्वेतप्रज्ञा को साध्वी सार्थकप्रभा, समणी यशस्वीप्रज्ञा को साध्वी यशस्वीप्रभा, समणी दिव्यप्रज्ञा को साध्वी दक्षप्रभा, मुमुक्षु खुशबू को साध्वी खुशीप्रभा, मुमुक्षु अजिता को साध्वी अन्नयप्रप्रभा, मुमुक्षु वंदना को साध्वी विज्ञप्रभा, मुमुक्षु दर्शिका को साध्वी दर्शितप्रभा, मुमुक्षु करिश्मा को साध्वी काम्यप्रभा, मुमुक्षु प्रतिभा को साध्वी परमार्थप्रभा, मुमुक्षु प्रेक्षा को साध्वी हर्षितप्रभा, मुमुक्षु प्रज्ञा को साध्वी प्राज्ञप्रभा व मुमुक्षु चेतना को साध्वी चेतनप्रभा के नाम से संबोधित किया। नवदीक्षित साधु-साध्वियों को श्रद्धालुओं ने वंदन किया। 
अंत में आचार्यश्री ने कुछ नवीन घोषणाएं भी कर दी। आचार्यश्री ने कहा कि अपने चतुर्मास काल के दौरान भी एक और दीक्षा समारोह की भावना व्यक्त करते हुए आचार्यश्री 20 अक्टूबर 2019 की तिथि घोषित कर दी। साथ ही आचार्यश्री ने इस दिन आयोजित होने वाले प्रोग्राम में मुमुक्षु आंचल बरड़िया को साध्वी दीक्षा देने की घोषणा की। 31 जनवरी 2020 को हुबली में ‘आचार्य महाप्रज्ञ अभ्यर्थना’ के रूप में जन्म शताब्दी वर्ष में एक और आयोजन की घोषणा की। आचार्यश्री की नवीन घोषणाओं से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। 

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