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तात्कालिक सुविधा को छोड़कर ही सत्य की राह पाई जा सकती है - आचार्य श्री महाश्रमण जी


दिनांक - 16 जुलाई 2019, सोमवार - कुम्बलगुडु, बेंगलुरु (कर्नाटक), ABTYP JTN, तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने अमृत वचनों से बैंगलुरूके मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया की - "त्वमेव सच्चम निमग्गा" आदमी के जीवन में सच्चाई की आराधना का महत्वपूर्ण स्थान होता है । काम कठिन है, आसान नही, सच्चाई की राह पर चलना, कंटकाकीर्ण पथ पर बढ़ना कितना मुश्किल है, साहस भी मुश्किल है, आदमी घबरा जाता है, तात्कालिक सुविधा को छोड़कर ही सत्य की राह पाई जा सकती है। आस्था नाम का तत्व है, वह आदमी में जग जाए, मज़बूत हो जाए तो वह क़ुर्बानी हेतु तैयार हो सकता है। आस्था का बल किसी-किसी को प्राप्त हो सकता है, वह फिर कष्टों की परवाह नही करता, चलना है तो रास्ता भी मिल जाता है, डरता नही । आचार्य भिक्षु सामान्य आदमी नही थे, विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। विशेष बल पूर्व भव की साधना के कारण भी हो सकता है, तभी इस जन्म में इतना बल ।
वे वैरागी बने, गृहत्यागी बने यह बहुत बड़ी बात है। जिस समुदाय में गृहत्यागी बने वहाँ भी उन्हें संतोष नही हुआ, तब कोई क्रांति या अभिनिष्क्रमण की अपेक्षा है, यह प्रेरणा उनके भीतर अग्नि के रूप में प्रज्ज्वलित हुई। वि. सं. 1817 चैत्र शुक्ला 8 को अभिनिष्क्रमण कर दिया। हर जगह शांति नही , कहीं तो क्रांति की आवश्यकता है। जब शांति का त्याग करते है तब क्रांति की लौ प्रज्वलित होती है, हमारे जीवन में भी क्रांति के विचारों का मनोभाव होना चाहिए।
पूज्यप्रवर ने आज तेरापंथ स्थापना दिवस पर गण के साधु-साध्वियों को प्रेरणा देते हुए आगे फ़रमाया की चित्त की समाधि रहनी चाहिए। अपेक्षा है मन में कषाय मंदता की साधना हो । जिस किसी के साथ भी रहना पड़े रहना चाहिए, अपने नातिले आदि के साथ नही, सबके साथ रहने का प्रयास करना चाहिए। निर्मल या प्रतिकूलता मिल जाए तो क्रांति की भावना जगाए, जटिलता के साथ रहना पड़ जाए या जो तेज़ प्रकृति ग्रस्त है, उनके साथ रहे तो शांति का वातावरण बना रहे, वहाँ चित्त समाधि में रहा जा सकता हैं।
ऐसी क्रांति जो दूसरों को शांति दे सके । हम कही भी गुरु द्वारा भेजे जाए हमें शांति की स्थापना करनी चाहिए, ऐसे मनोभाव मन में रहे । क्रांति मन में गठित हो और ऐसे ही भाव नवदीक्षित साधु-साध्वियों में विशेष क्रांति का भाव जगे। जहाँ भेजे वहाँ जाने का मन में भाव हो, जहाँ अपेक्षा है, वहाँ क़ुर्बानी है, जहाँ शांति है, वहाँ शांति रखे वहाँ चित्त समाधि रहे।
भीखण जी स्वामी विशिष्ट व्यक्ति थे । बगड़ी में क्रांति की। आराम से रहने का नही सोचा और शांति का बलिदान कर कठिनाइयों को झेलने का पथ चुना। आचार्य भिक्षु तीन महीनों बाद केलवा पधारे । अंधेरी ओरी में स्थान मिल गया पर क्रांति के साथ कठिनाई जुड़ी रहती है। सांप का उपसर्ग, सांप ने दरवाज़े पर कुंडली मार ली, पर स्वामीजी ने निडरता के साथ उन्हें मंगल पाठ सुनाया और सांप की जाति चली गयी। स्वामीजी ने डरे-सहमे बालमुनि भारीमलजी को भय मुक्त किया, फिर भी स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ गया, तभी वहाँ एक सफ़ेद आकृति दिखायी दी,  स्वामीजी की निर्भीकता के आगे आकृति ने परिचय दिया कि वह इस मंदिर का यक्ष है, स्वामीजी अपने शिष्यों के साथ यहाँ रह सकते है। इस प्रकार आज के दिन 259 वर्ष पहले भीखण जी ने केलवा में प्रथम चातुर्मास किया । केलवा महत्वपूर्ण स्थान है, जहाँ आचार्य भिक्षु के तेरापंथ का जन्म-दीक्षा एवं स्थापना आदि हुए । अनेक सिद्धांतों के धनी स्वामीजी थे । इतिहास हमारा  यह है और आचार-विचार भी । हम कहते है... "हमारे भाग्य बड़े बलवान मिला यह तेरापंथ महान, करने जीवन कल्याण मिला यह तेरापंथ महान।"
आज का स्थापना दिवस आज के दिन उनकी दीक्षा और तेरापंथ का जन्म। संघ गतिमान-मतिमान-धृतिमान रहे। मतिमतता रहे, गतिमतता रहे धैर्य रहे। बाहुल्य रहे, शांति रहे, क्रांति रहे संघ ने श्रीवृद्धि रहे। शांति और क्रांति का जहाँ साहचर्य होता है वहाँ कुछ विशिष्टतायें घटित होती है, तभी इस तेरापंथ संगठन को जन्म प्राप्त हो सका , जिसके हम सब सदस्य है। कितनी कितनी संघीय संस्थाएँ है, दीक्षाओं की दृष्टि से भी गतिमान रहे, बढ़ोतरी होती रहे। आज गुरु पूर्णिमा के शुभ पावन अवसर पर तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु को प्रणाम करता हूँ। साध्वी प्रमुखा श्री जी के दीक्षा दिवस की ख़ूब ख़ूब मंगलकामना।
साध्वीवर्या जी ने अपने वक्तव्य में फरमाया - जीवन के आलोक में संयम की साधना से आचार्य भिक्षु मानव से महामानव बने। उनकी महामानवता के आयाम हैं— १-धैर्य की पराकाष्ठा, २-निर्भीकता, ३-कृतज्ञता, ४-प्रखर प्रतिभा ।
तेरापंथ स्थापना दिवस के दिन केलवा में दीक्षित होने वाली साध्वीप्रमुखा श्री जी के प्रति अभिवंदना-
आचार्य भिक्षु ने 259 वर्ष पहले अंधेरी ओरी के सघन अन्धेरे में सूर्यास्त के समय अध्यात्म प्रकाश का प्रस्फुटन हुआ । आज का दिवस भगवान महावीर के चरणों में समर्पण का दिवस, साधना में आनेवाले संकल्पों में झूझने वाला दिवस, ऐतिहासिक करवट लेने वाला दिवस है आज का तेरापंथ दिवस। तीसरी शताब्दि में तेरापंथ धर्मसंघ चल रहा हैं, पहला शताब्दी वर्ष संघर्षों की शताब्दी रही।दूसरी शताब्दी जयाचार्य के समय निर्माण कारी रहा,नवीनिकरण युग रहा। तीसरी शताब्दी का प्रारम्भ द्विशताब्दी के नाम से आरम्भ किया गया इस युग में नए नए आयामों का उदघाटन हुआ चौथी शताब्दी आचार्य महाश्रमण के नेतृत्व में करे, यही मंगलभावना ।
मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार जी ने कहा - आचार्य भिक्षु एक सत्य संधायक सिद्धांत दायक संत थे जिन्होंने न केवल सत्य को जाना अपितु उसे जिया। धर्म टिका हैं - प्राण आत्मा शरीर पर प्राण है आचार्य आत्मा है गण सम्यक़्तव, विनम्रता, सौहार्द, वात्सलता, परस्पर सम्प। शरीर है दूसरों का सम्मान, व्यवस्था, सारणा वारणा,सेवा,सहयोग है ।
संस्था शिरोमणी तेरापंथ महासभा के अध्यक्ष श्री हंसराज बेताला ने प्रासंगिक वक्तव्य दिया । तेरापंथ महिला मंडल KGF ने गीतिका का संगान किया ।

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