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अहिंसा के द्वारा बने श्रेष्ठ मनुष्य: आचार्य महाश्रमण

भव्य जुलूस के साथ हासन बना महाश्रमणमय
धर्मस्थला के संस्थान में पधारे धर्मदूत श्री महाश्रमण

हासन प्रवेश पर श्रद्धालुओं को पावन मंगलपाठ प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी 

03-12-2019, मंगलवार, हासन, कर्नाटक, अहिंसा यात्रा द्वारा जन-जन में सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाते हुए शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज हासन में मंगल पदार्पण हुआ। इससे पूर्व प्रभात वेला में पूज्यप्रवर ने केन्चावल्ली से मंगल विहार किया। लगभग 10 किलोमीटर विहार में धीरे-धीरे हासन के श्रद्धालुओं की उपस्थिति बढ़ती जा रही थी। सभी में अपने आराध्य के नगर पदार्पण पर एक अपूर्व उत्साह नजर आ रहा था। जैसे ही नगर प्रवेश हुआ सकल जैन समाज ने जैन शासन प्रभावक आचार्य श्री महाश्रमण जी का भव्य जुलूस के साथ स्वागत किया। श्रद्धालुओं के गृहों एवं प्रतिष्ठानों में मंगलपाठ प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने तेरापंथ भवन को अपने चरण कमलों से पावन किया एवं उपस्थित जनसमूह को पावन आशीष प्रदान किया। वहां से शांतिदूत प्रवास हेतु श्री धर्मस्थला मंजूनाथेश्वर कॉलेज ऑफ़ आयुर्वेद एंड हॉस्पिटल पधारे। जहां कॉलेज के प्रिंसिपल श्री प्रसन्नराव के साथ शिक्षक एवं विद्यार्थियों ने पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। स्वागत कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में धर्मस्थला के धर्माधिकारी श्री वीरेंद्र हेगड़े एवं आदिचुनचुन गिरी मठ के श्री संभुनाथ स्वामी ने आचार्य श्री महाश्रमण जी का अभिनंदन किया।

परमपूज्य आचार्य प्रवर ने अपनी पावन प्रवचन में कहा दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य होता है। क्योंकि मनुष्य योनि से ही मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। देवताओं को भी मोक्ष जाना हो तो पहले इंसान बनना होता है। धर्म की जितनी उत्कृष्ट साधना मनुष्य कर सकता है उतनी उत्कृष्ट साधना अन्य प्राणी नहीं कर सकते। आदमी के भीतर श्रेष्ठता, अहिंसा, अच्छाई के संस्कार भी है तो उसमें क्रूरता, हिंसा और बुराई के संस्कार भी है।

आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि आदमी में श्रेष्ठता और अच्छाई के संस्कार पुष्ट बने तथा हिंसा और बुराई के संस्कार तिरोहित हो, इसके लिए आदमी को अहिंसा और संयम, तप की आराधना करनी चाहिए। सद्भावना, नैतिकता  व नशामुक्ति जीवन में आ जाते हैं तो मानना चाहिए कि और संयम का विकास हुआ है। शांतिदूत ने तत्पश्चात हासन की विशाल जनमेदनी को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प स्वीकार करवाएं।

धर्माधिकारी श्री वीरेंद्र हेगड़े ने स्वागत करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि 50 वर्ष पूर्व आचार्य तुलसी जब यहां आए थे तब भी मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ था और आज जब आचार्य श्री महाश्रमण जी यहां आए हैं तो भी मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हो रहा है। अहिंसा यात्रा के जो यह तीनों संकल्प है यह केवल एक जाति समूह के लिए ही नहीं अपितु पूरी मानव जाति के लिए कल्याणकारी हैं। आचार्यवर के वचनों को सिर्फ सुनना ही नहीं है अपितु हम सभी को अपने जीवन में उतारना है।


अभिवंदना के क्रम में तेरापंथ सभा अध्यक्ष जयंतीलाल कोठारी, मंत्री सोहन लाल तातेड़, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष इंदिरा तातेड़, मंत्री संगीता कोठारी, तेरापंथ युवक परिषद मंत्री विनीत तातेड़, बेंगलुरु सभा पूर्व अध्यक्ष अमृत भंसाली, महासभा कार्यकारिणी सदस्य महावीर भंसाली ने अपने विचार व्यक्त किए। महिला मंडल, कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों द्वारा सुंदर प्रस्तुति हुई। तेयुप एवं मूर्तिपूजक समाज द्वारा स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।

अपने आराध्य के आगमन पर स्वागत, अभिनंदन हेतु समर्पण भावों से ओत:प्रोत शानदार प्रस्तुति, ज्ञानशाला, कन्यामण्डल आदि द्वारा !



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