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सच्चा मित्र बनाओ : आचार्य महाश्रमण

भिक्षु पट्टधर का इक्षुनगरी में हुआ भव्य स्वागत


15-12-2019, रविवार, भद्रावती, कर्नाटक।
कहते हैं ऊपर जब वाला देता है, तब छप्पर फाड़ कर देता है। यही हुआ कर्नाटक के भद्रावती में बसे श्रद्धालुओं के साथ। एक समय था, जब शांतिदूत महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा के निर्धारित कार्यक्रम में भद्रावती में पदार्पण का कार्यक्रम नहीं था, किन्तु कुछ दिनों पूर्व ही आचार्यश्री ने अस्सी किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा स्वीकार कर शिवमोगा, तरिकेरे, भद्रावती आदि क्षेत्रों में पधारने की घोषणा की तो मानों मलनाड़ के इन क्षेत्रों के निवासी भक्तों के भाग्य ही जग गए। इस घोषणा और भद्रावती पदार्पण के बीच भले पांच से भी कम दिनों का अन्तराल रहा हो, किन्तु आचार्यश्री के स्वागत में की गई भव्य तैयारियों को देखकर इसका जरा-सा भी अहसास नहीं हो रहा था। 
गुड़ निर्माण के लिए विख्यात इक्षुनगरी भद्रावती में भिक्षु पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने चरण रखे तो मानों चारों ओर हर्ष का पारावार छा गया। भद्रावती के तेरापंथ समाज के साथ अन्य जैन एवं जैनेतर समाज का उल्लास आज अपने चरम पर था। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री के स्वागत में लोग पलक पांवड़े बिछाए खडे थे। भव्य स्वागत जुलूस में विभिन्न समुदायों के लोगों की उपस्थिति से अहिंसा यात्रा का प्रथम आयाम ‘सद्भावना’ सहज ही साकार हो उठा। आचार्यश्री ने तेरापंथ भवन, मूर्तिपूजक समाज के उपाश्रय और स्थानक के निकट पधारकर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद प्रदान किया। भद्रावती के बाजार में अहिंसा यात्रा के दूसरे आयाम ‘नैतिकता’ का मानों संदेश देते हुए आचार्यश्री कुल 13.5 कि.मी. की पदयात्रा कर भद्रावती के विश्वेश्वरैया स्कूल में पधारे।
यहां आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि दुनिया में मित्र बनाए जाते हैं या परस्पर कोई मित्र बन जाते हैं, लेकिन कभी-कभी आदमी जिसे मित्र माना जाता है, उससे धोखा भी मिल सकता है। प्रश्न हो सकता है कि दुनिया में सच्चा मित्र कौन होता है? आदमी भी एक सीमा तक सच्चा मित्र हो सकता है, जो कि विपत्ति में काम आए। कोई-कोई व्यक्ति कल्याणमित्र भी हो सकता है। जो उत्पथ में जाने से बचा ले, सत्पथ में बढने में सहयोग दे तो वह कल्याण मित्र होता है। 

उन्होंने कहा कि आत्मा सच्चा मित्र हो सकती है। आत्मा से बढ़कर कोई सच्चा मित्र बनना कठिन है। आत्मा शत्रु भी हो सकती है। सत्प्रवृत्ति में संलग्न आत्मा स्वयं की मित्र और दुष्प्रवृत्ति में संलग्न आत्मा स्वयं की शत्रु होती है। गुस्सा करने वाला व्यक्ति स्वयं का शत्रु और क्षमा करने वाला, शांति रखने वाला व्यक्ति स्वयं का मित्र होता है। अहंकार करने वाला व्यक्ति स्वयं का शत्रु और मृदुता रखने वाला व्यक्ति अपना मित्र होता है। धोखाधडी़ करने वाला, बेईमानी करने वाला व्यक्ति स्वयं का शत्रु और ईमानदार व्यक्ति अपना मित्र होता है। लोभी व्यक्ति स्वयं का शत्रु और संतोषी व्यक्ति अपना मित्र होता है। दूसरों को कष्ट देने वाला व्यक्ति स्वयं का शत्रु और दूसरों की सेवा करने वाला व्यक्ति स्वयं का मित्र होता है। 
आचार्यप्रवर ने आगे कहा कि संसार में मित्रों की उपयोगिता हो सकती है, किन्तु यह विवेच्य है कि उसमें गुण कितने हैं। अपने समान गुणों वाले व्यक्ति या अपने से ज्यादा गुणों वाले व्यक्ति को कल्याण के लिए मित्र बनाया जा सकता है। ऐसा मित्र नहीं बनाना चाहिए, जिसकी गलत बात भी स्वीकार करनी पड़े। अच्छे कार्यों में अपनी स्वतंत्रता को खोकर किसी को मित्र बनाना नासमझी होता है। उन्होंने कहा कि आदमी को सबके साथ मंगलमैत्री का भाव रखना चाहिए। किसी से शत्रुता नहीं रखनी चाहिए। जो अपने आपमें मस्त रहता है, वह स्वस्थ, प्रशस्त और आत्मस्थ रह सकता है। 
आदमी अपनी आत्मा को मित्र बनाए, उसके लिए ईमानदारी को अपना मित्र बनाना चाहिए। ईमानदारी परेशान तो हो सकती है, किन्तु वह परास्त नहीं होती। अहिंसा, ईमानदारी, संयम और तप का मार्ग अच्छी मंजिल पर पहुंचाने वाला होता है। जीवन में मार्ग से ज्यादा मंजिल का महत्व होता है। मंजिल अच्छी न हो तो राजमार्ग को भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। मंजिल अच्छी हो तो ऊबड़-खाबड़ पथ भी स्वीकार कर लेना चाहिए। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को अहिंसा यात्रा की सूत्रत्रयी की अवगति प्रदान कर सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति से संबंधित संकल्प करवाए। 

तेरापंथी सभा-भद्रावती के अध्यक्ष श्री घीसूलाल मेहता, श्री सुशील सालेचा, स्थानावासी समाज के अध्यक्ष रामकुमार मेहता, मूर्तिपूजक समाज के श्री रतन पोरवाल, श्रीमती ट्विंकल सालेचा ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। स्थानीय विधायक श्री संगमेश ने कहा--‘ आज आचार्यश्री महाश्रमणजी भगवान के रूप में हमारे भद्रावती में आए हैं। यह हमारे कई जन्मों के पुण्योदय का फल है। भद्रावती के नागरिक आपका आशीर्वाद पाकर धन्य हो गए। मैं मेरे क्षेत्र की समस्त जनता की ओर से आपको भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूं, आपका स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं।

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