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साधनों से सुविधा और साधना से शांति मिलती है : आचार्य महाश्रमण

अहिंसा यात्रा प्रणेता का उत्तर कर्नाटक में भव्य स्वागत



20-12-2019, शुक्रवार, होललकेरे, कर्नाटक
हिन्दुस्तान के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण हर छोर को ही नहीं, नेपाल और भूटान को भी पावन करने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कर्नाटक के दक्षिणी भाग और मलनाड़ क्षेत्र को पावन करने बाद आज उत्तर कर्नाटक में अपने चरण रखे तो ऐसा लगा कि सूर्य के उत्तरायण होने के कुछ दिनों पूर्व ही अध्यात्म जगत का महासूर्य उत्तराभिमुख बन गया है। इस महासूर्य के आगमन से उत्तर कर्नाटकवासी सूर्यमुखी फूल की भांति खिल उठे और बढ़ चले उसके स्वागत में। डुम्मी से प्रस्थान कर अहिंसा यात्रा प्रणेता ज्यों-ज्यों होललकेरे की ओर बढ़ते जा रहे थे, लोगों का हुजूम उमड़ता जा रहा था। पूरा मार्ग महाश्रमणमय बना हुआ था। भक्तों के हृदयों में हर्ष का दरिया लहरा रहा था। होललकेरेवासियों की तो प्रसन्नता का पार ही नहीं था, ऐसा हो भी क्यों नहीं, उनके आराध्य उनके शहर से उत्तर कर्नाटक में प्रवेश जो कर रहे थे। सबके श्रद्धाभावों स्वीकार कर आचार्यश्री 14 किलोमीटर की पदयात्रा सम्पन्न कर होललकेरे में स्थित ज्ञान विकास नेशनल स्कूल में पहुंचे।

यहां आयोजित कार्यक्रम में आचार्यश्री ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि हमारे जीवन में सुविधा का भी कुछ महत्त्व हो सकता है, परन्तु शांति का बहुत महत्त्व होता है। सुविधा संसाधनों से मिल सकती है और शांति का मुख्य आधार साधना होती है। सुविधा को पाना बहुत बड़ी बात नहीं होती, शांति की प्राप्ति एक उपलब्धि होती है। साधना का एक परिणाम है शांति की प्राप्ति। सर्दी के मौसम में हीटर की व्यवस्था हो जाए, गर्मी में ए.सी. की व्यवस्था हो जाए, कहीं जाना हो और कार मिल जाए तो सुविधा हो सकती है, किन्तु सुविधा के होने पर शांति हो ही, यह जरूरी नहीं। ए.सी. कमरे में बैठे हुए भी मन में अशांति हो सकती है। आदमी को सुविधावादी मनोवृत्ति नहीं पालनी चाहिए। उसे त्याग की ओर बढना चाहिए। त्याग से शांति मिलती है। कामना अशांति का कारण बन सकती है। कामना का अतिक्रमण हो जाए तो दुःख का अतिक्रमण अपने आप हो सकता है। दुःख कामना के साथ जुड़ा हुआ रहता है। शांति की प्राप्ति के लिए उसमें बाधक तत्त्वों से बचना चाहिए। गुस्सा, भय, चिंता और लोभ शांति की प्राप्ति में बाधा है। इन चारों से दूर रहकर व्यक्ति शांति को प्राप्त कर सकता है। 

आचार्यश्री ने उत्तर कर्नाटक आगमन के संदर्भ में कहा कि उत्तर कर्नाटक के लोग बार-बार हमारे पास आते रहे हैं और आज हम आपके पास आ गए। शिवमोगा का निर्णय होने से होललकेरे भी आना हो गया। अच्छा है। यहां के लोगों में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का प्रभाव रहे।आचार्यप्रवर की प्रेरणा से स्थानीय विधायक श्री एम.चन्द्रप्पा तथा बड़ी संख्या में होललकेरे के जैन एवं जैनेतर समाज के लोगों ने अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार किए। स्थानीय विधायक श्री एम.चन्द्रप्पा ने आचार्यश्री के स्वागत में भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। संसारपक्ष में उत्तर कर्नाटक से संबंधित साध्वी कार्तिकयशाजी और कभी उत्तर कर्नाटक में चतुर्मास कर चुके मुनि कमलकुमारजी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। होललकेरे तेरापंथ समाज की महिलाओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। श्री अंकित नाहर, सुश्री दीपू नाहर, श्री विकास, श्री चेतन मांडोत, राजस्थान निवासी होललकेरे प्रवासी लोगों की ओर से श्री संदीपसिंह ने आचार्यश्री के स्वागत में अपने भाव प्रस्तुत किए। उत्तर कर्नाटक तेरापंथ समाज की ओर से गीत का संगान किया गया। उत्तर कर्नाटक एरिया समिति के कार्याध्यक्ष श्री वेलचंद जीरावला और मंत्री श्री सुरेश कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महिला मंडल-चिकमंगलूर ने गीत का संगान किया। जैन विश्व भारती की ओर से चित्रकथा ‘महायोगी महाप्रज्ञ’ का अंग्रेजी अनुवाद लोकार्पित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।

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