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विरोधी के प्रति भी द्वेषभाव न लाऐ : आचार्य महाश्रमण

जन्म जयंती पर भगवान पार्श्व के चरणों में श्रद्धार्पण

अहिंसा यात्रा के दौरान आज लगभग 21 किलोमीटर की पदयात्रा


21-12-2019, शनिवार, टी.नूलेनूर गेट, कर्नाटक

जिनशासन प्रभावक तीर्थंकर के प्रतिनिधि अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण ने जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्व की जन्म जयंती के प्रसंग में टी.नूलेनूर गेट में स्थित श्री वीरभद्रस्वामी हायर प्राइमरी स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में अपने मंगल प्रवचन में कहा कि प्रत्येक अवसर्पिणी और प्रत्येक उत्सर्पिणी काल में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में होते हैं, यह व्यवस्था है। सृष्टि का मानों कि सौभाग्य है कि इसे तीर्थंकरों की उपलब्धि हमेशा प्राप्त होती है। हमारे इस भरत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी काल में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्व हुए। उनकी आज जन्म जयंती है। भगवान पार्श्व का व्यक्तित्व और कर्तृत्व ऐसा था कि वे एक महापुरुष के रुप में उभर कर सामने आ गए। भगवान पार्श्व के प्रति विशेष आकर्षण देखने को मिलता है। उन्हें पुरुषादानीय विशेषण से विशेषित किया जाता है। उनका लोकप्रिय व्यक्तित्व हमारे सामने है। कितने लोग उनकी स्तुति में ‘उवसग्गहर स्तोत्र’ का पाठ करते होंगे।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि भगवान पार्श्व के साथ नागराज भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने नाग-नागिन का उद्धार किया। धरणेन्द्र-पद्मावती भगवान पार्श्व के भक्त देव-देवी रहे हैं। भगवान पार्श्व के सामने भी कठिनाई आई। कुछ-कुछ लोग बडे़ लोगों को कष्ट देने वाले भी हो सकते हैं। चाहे भगवान राम हों या भगवान पार्श्व, चाहे आचार्य भिक्षु हों या आचार्य तुलसी, ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे महापुरुषों के लिए कुछ लोग कष्ट पैदा करने का प्रयास करते हैं। आचार्यश्री ने आगे कहा कि शत्रुता और मित्रता के संबंध कई जन्मों तक चल सकते हैं। द्वेष और राग दोनों के संबंध आगे से आगे परिपुष्ट हो सकते हैं। कोई विरोध करे, कष्ट दे तो भी उनके प्रति द्वेषभाव नहीं लाना महापुरुष का एक लक्षण होता है। प्रकृति से अड़ियल लोगों के प्रति द्वेष नहीं रखने और उनके प्रति भी मैत्री भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आज हम श्रद्धा के साथ भगवान पार्श्व का स्मरण करते हैं और उनके स्मरण से हम कल्याण की दिशा में आगे बढें, यह कमनीय है। आचार्यश्री ने भगवान पार्श्व की स्तुति में ‘प्रभु पार्श्वदेव चरणों में’ गीत का संगान तथा उवसग्गहर स्तोत्र का पाठ किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुरेश तथा विद्यालय समिति से सेक्रेट्री श्री वीरन्ना को परमाराध्य आचार्यप्रवर ने पावन प्रेरणा प्रदान की।

सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संदेशों के साथ गतिमान आचार्यश्री इससे से पूर्व होललकेरे से लगभग साढे़ तेरह किलोमीटर की पदयात्रा कर टी.नूलेनूर गेट पधारे। आचार्यश्री के स्वागत में उपस्थित श्री वीरभद्रस्वामी हायर प्रायमरी विद्यालय के प्रिंसिपल श्री सुरेश तथा विद्यालय समिति के सेक्रेट्री श्री वीरन्ना को भी मंगल प्रेरणा प्रदान की। सायंकाल आचार्यश्री लगभग 7 किलोमीटर की पदयात्रा कर जानकुंडा में स्थित नरसिम्हा स्वामी हाई स्कूल में पहुंचे। इस प्रकार आज का कुल विहार लगभग 21 किलोमीटर का हो गया।

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