अहिंसा यात्रा के अंतर्गत एक दिन में 25 किलोमीटर की पदयात्रा
साधना के क्षेत्र में शक्ति का भी महत्त्व है। भक्ति से शक्ति भी प्रकट हो सकती है। वीतराग आत्म और वीतरागता के प्रति भक्ति अच्छी बात होती है।भक्ति दिखावटी नहीं भीतरी होनी चाहिए। यथार्थ के प्रति भक्ति का होना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है--ये उद्गार अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने अइमंगला में स्थित गवर्नमेंट पी.यू.काॅलेज में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करना भी एक प्रकार की भक्ति है। नमस्कार महामंत्र का प्राण वीतरागता है। अर्हत् और सिद्ध वीतराग होते हैं। इस महामंत्र के पांचों पद वीतरागता से जुड़े हुए हैं। इसका शुद्ध भावना से जप करने से कर्माें की अच्छी निर्जरा हो सकती है। इस महामंत्र में किसी का नाम नहीं हैं। मानों यह एक असाम्प्रदायिक मंत्र है। वयोवृद्ध लोग लेटे-लेटे ही नमस्कार महामंत्र का जप कर सकते हैं। जप वृद्धों के लिए तो मानों टाॅनिक होता है। पवित्र जप से भावना शुद्ध बन सकती है और आगे की गति अच्छी होने की संभावना बन सकती है।
काॅलेज के डायरेक्टर श्री राधाकृष्ण ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा प्रदान की। इससे पूर्व आचार्यश्री चित्रदुर्गा से लगभग सत्रह किलोमीटर की पदयात्रा कर चित्रदुर्गा से अइमंगला में पहुंचे। तीन देशों और देश के बीस राज्यों में करीब 15000 किलोमीटर की पदयात्रा के लक्ष्य के साथ सत्रहवें राज्य के रूप में कर्नाटक के विभिन्न क्षेत्रों में अहिंसा यात्रा करते हुए आचार्यश्री जनता को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्त का संदेश दे रहे हैं। आचार्यश्री ने अपने संन्यासी जीवन में अब तक 47000 किलोमीटर से ज्यादा की पदयात्रा कर ली और उनकी प्रेरणा से एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया है। आचार्यश्री के नेतृत्व में 750 से ज्यादा साधु-साध्वियां देश-विदेश में मावनता के उत्थान के कार्य में संलग्न हैं। सायंकाल आचार्यश्री लगभग 8.4 किलोमीटर की पदयात्रा कर गिद्दोनाहल्ली में स्थित गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में पहुंचे। इस प्रकार आज की कुल पद यात्रा पच्चीस किलोमीटर की हो गई।
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