अहिंसा यात्रा के अंतर्गत की 23 कि.मी. की पदयात्रा
25-12-2019, बुधवार, हार्तिकोटे, कर्नाटक
आदमी की नहीं जीती हुई आत्मा आदमी की शत्रु होती है। आदमी को मन का गुलाम नहीं बनना चाहिए, अपितु उसे गुलाम बनाए। जीतना गौरवास्पद बात हो सकती है, किन्तु उसके लिए सामर्थ्य होना चाहिए--ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को हार्तिकोटे में स्थित श्री पटेल थिप्पया एण्ड कंचम्मा हाई स्कूल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान अपने पावन प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि चार कषायों से युक्त आत्मा स्वयं की शत्रु होती है। जप, अनुप्रेक्षा, स्वाध्याय, ध्यान आदि के द्वारा नहीं जीती हुई आत्मा को जीता जा सकता है। मिट्टी से मिले हुए सोने को प्रक्रिया के द्वारा उससे अलग किया जाए तो वह शुद्ध सोना हो जाता है। उसी प्रकार आत्मा को प्रक्रिया के द्वारा कषायों से पृथक् बनाया जाता है तो वह शुद्ध, पवित्र बन जाती है।
दूसरा कैसा है, उस पर ध्यान देने की अपेक्षा, स्वयं की कमियों को जानकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं का सुधारकर दूसरों को सुधारने का प्रयास उपयुक्त हो सकता है। आचार्यश्री ने प्रसंगवश कहा कि लोकतंत्र हो या राजतंत्र प्रजा दुःखी नहीं रहनी चाहिए। इसलिए कोई किसी व्यक्ति को कष्ट देता है, मारता है तो न्यायपालिका में उसके लिए दण्ड का भी प्रावधान है। किसी अन्य प्रसंग में आचार्यश्री ने कहा कि भीतर से कांटा न निकले और उस पर मलहम लगाकर घाव को भर दिया जाए तो वह कांटा भीतर ही भीतर पीड़ादायक हो सकता है।
इससे पूर्व आचार्यश्री ने हिरियूर के तेरापंथ भवन से प्रस्थान किया और उपाश्रय, जैन भवन में पधारकर श्रद्धालुओं को मंगल आशीर्वाद दिया। कई श्रद्धालुजनों ने अपने-अपने घरों आदि के आसपास आचार्यश्री के दर्शनकर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री लगभग 17 कि.मी. की पदयात्रा कर करीब 12.15 बजे हार्तिकोटे में पहुंचे। हार्तिकोटे में ग्रामीणों ने आचार्यश्री को वन्दन किया तो उन्होंने ग्राम्यजनों का आशीर्वाद दिया। सायंकाल आचार्यश्री हार्तिकोटे से प्रस्थान कर लगभग 6 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए गोल्लाहल्ली में स्थित जेट सी.बी.एस.ई. स्कूल में पहुंचे और यहीं रात्रिकालीन प्रवास किया। इस प्रकार आज की कुल पदयात्रा 23 किलोमीटर हो गई।
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