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स्वयं को जीतने वाला होता है परम विजयी : आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी महाश्रमण का परस पाकर हीरे ज्यों चमका हिरियूर

अहिंसा यात्रा का हिरियूर में भव्य स्वागत


24-12-2019, मंगलवार, हिरियूर, कर्नाटक
अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हिरियूर की धरा पर अपने चरण रखे तो चिरकाल से प्यासे श्रद्धालुओं पर मानों अमृत की वर्षा हो गई। लोग इस दुर्लभ वर्षा की एक-एक बूंद को अपने जीवनघट में अच्छी तरह सहेजना चाहते थे, इसी कारण हजारों लोग आचार्यश्री की राह में पलक पांवड़े बिछाए खडे़ थे। भिन्न-भिन्न समुदायों और वर्गाें के लोगों के परिधान अलग-अलग भले हों, किन्तु सबका उद्देश्य एक ही था-महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का अपनी नगरी में स्वागत। लोगों को उल्लास के बीच सांप्रदायिक भेद मानों विलुप्त प्रायः बना हुआ था। मानों हिरियूर की गलियां आज इस हीरे रूपी अनमोल अवसर पर महाश्रमणमय बनी हुई थीं। कड़ी धूप की परवाह किए बिना सैंकड़ों-सैंकड़ों लोग भव्य स्वागत जुलूस में सोत्साह संभागी बने हुए थे, क्योंकि उनके आराध्य उन पर शीतल छाया करने जो पधारे थे। आचार्यश्री ने 12 कि.मी. का पदयात्रा सम्पन्न कर हिरियूर के तेरापंथ भवन में अपने चरण रखे थे तो मानों हिरियूरवासियों का चिरपालित स्वप्न साकार हो उठा। हिरियूर में राजस्थान के जसोल निवासियों की संख्या अधिक होने के कारण इस मिनी जसोल भी कहा जाता है।

नेहरू मैदान में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को संबोधित करते हुए आचार्यश्री अपने पावन प्रवचन में कहा कि हमारी दुनिया में शांति रहती है और कभी-कभी युद्ध का प्रसंग भी बन जाता है। दो देशों के बीच युद्ध हो सकता है, अनेक-अनेक देशों के बीच युद्ध हो सकता है। दो विरोधियों के बीच युद्ध या लड़ाई हो सकती है। शास्त्रकार ने भी युद्ध की बात की, किन्तु वह बात शांति के लिए है। आदमी को अपने आपसे युद्ध करना चाहिए। अपने आपको जीतने से सुख मिलता है। कोई व्यक्ति दूसरों को जीत लेता है, किन्तु अपने आपको नहीं जीत पाता तो वह परम विजयी नहीं होता, जो अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह परम विजयी होता है। संसारी अवस्था में आत्मा पर मानों दूसरे ने अपना साम्राज्य बना लिया है। आदमी को कषायों से अपनी आत्मा को मुक्त बनाने का प्रयास करना चाहिए। एक साथ क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों से मुक्त होना कठिन हो तो एक-एक कर उनसे मुक्त बनने का प्रयत्न करना चाहिए। अनुप्रेक्षा ध्यान आदि के प्रयोगों के द्वारा कषायों को क्षीण अथवा कृश बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।

आचार्यश्री ने हिरियूर आगमन के संदर्भ में कहा कि यह उत्तरी कर्नाटक का अच्छा क्षेत्र है। यहाँ तो एक दिन ही क्या, कुछ दिनों का प्रवास होना चाहिए। आचार्यश्री का यह कथन सुनकर श्रद्धालुजन झूम उठे उन्होंने आचार्यश्री से प्रवास को बढ़ाने की पुरजोर प्रार्थना की। चित्रदुर्गा मुरगमठ के प्रमुख श्री शिवभूमि मरुधराजेंद्र शरणजी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक मशहूर संगठन है। आचार्यश्री महाश्रमणजी पांव-पांव चलने वाले भगवान हैं। मैं यहां आकर बहुत आनन्दित हूं। श्री शिवभूमि जी के शिष्य श्री बशवकिरण जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आचार्यप्रवर की पावन प्रेरणा से प्रभावित होकर हिरियूरवासियों ने अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार किए।

कार्यक्रम में महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने अपने उद्बोधन में करीब इक्यावन वर्ष पूर्व के आचार्यश्री तुलसी जी के हिरियूर प्रवास से संबंधित प्रसंग सुनाए। साध्वीवर्याजी ने अपने अभिभाषण में गुरु के महत्त्व को विवेचित करते हुए ‘मिनी जसोल’ में आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी। किसी समय हिरियूर में चतुर्मास करने वाली साध्वी लब्धीश्रीजी ने अपने विचार व्यक्त किए। पूर्व विधायक श्री डी.सुधाकर ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ सभा-हिरियूर के अध्यक्ष श्री जयंतीलाल चोपड़ा, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती संतोष सालेचा, स्थानकवासी जैन समाज की ओर से श्री पारसमल लूंकड़, मूर्तिपूजक संघ के श्री बाबूलाल बालड़, सुश्री नेहा चैपड़ा, श्री देवराज चोपड़ा, श्री धनराज तातेड़, श्री विकास बोकड़िया तथा श्री बाबूलाल लूंकड़ ने आचार्यश्री का श्रद्धासिक्त स्वागत किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ युवक परिषद् के सदस्यों ने गीत संगान के द्वारा आचार्यप्रवर की अभिवंदना की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी प्रस्तुति दी।


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