Top Ads

दुःख का कारण है इच्छा: आचार्य महाश्रमण

उग्र विहारों की श्रृंखला में आज फिर छब्बीस किलोमीटर की पद यात्रा


3.1.2020, शुक्रवार, टेकलकोटे, कर्नाटक
सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जगाते हुए अहिंसा प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज फिर लगभग छब्बीस किलोमीटर की पदयात्रा की। सूरज की तीखी धूप और सड़क का ऊबड़-खाबड़पन भी उनके चरणों को नहीं रोक पाया। पहाड़ों, खेतों से युक्त इस हरे-भरे क्षेत्र का सौन्दर्य आचार्यश्री की उपस्थिति से और भी बढ़ गया। टेकल कोटे गांव में स्थित एस.एच.एम.एस. गवर्नमेंट डिग्री काॅलेज में आयोजित कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने अपने पावन प्रवचन में कहा कि इच्छा आकाश के समान अनंत होती है। सुखी बनने का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है- इच्छाओं का परिसीमन करना। श्रावक के बारहव्रतों में पांचवा है- इच्छा परिमाण। इच्छा दुःख का कारण है और संतोष सुख-शांति का आधार है। जीवन के अंतिम समय अन्य चिन्ताओं को छोड़कर आत्मा पर विशेषतया ध्यान देना चाहिए। आत्मा शाश्वत है और शरीर नश्वर है। जितनी आत्मस्थता रहती हैै, व्यक्ति उतना ही सुखी रहता है। जितनी पदार्थासक्ति रहती है, वह उतना ही दुःखी बनता है। आदमी अपनी इच्छाओं का परिसीमन कर आत्मस्थ रहने का अभ्यास करे, यह काम्य है।


विद्यालय के प्रधनाध्यापक श्री वैद्यनाथ ने कहा- ‘हम बहुत भाग्यशाली हैं कि आचार्यश्री महाश्रमणजी हमारे इस संस्थान में पधारे हैं। हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे महापुरुष, महातपस्वी संत हमारे प्रांगण में आएंगे। हम इस दुर्लभ अवसर को पाकर अभिभूत हैं। मैं आचार्यश्री के चरणों में अपना बार-बार प्रणाम करता हुआ उनका सादर स्वागत करता हूं।’ आचार्यश्री ने उन्हें अहिंसा यात्रा की अवगति देते हुए मंगल प्रेरणा प्रदान की। टेकलकोटे कमिशनर श्रीमती कमलम्मा भी कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित थी। टेकलकोटे के विधायक श्री सोमलगप्पा ने भी आज सपरिवार आचार्यश्री के दर्शन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। पदयात्रा के दौरान मार्गवर्ती गांवों के सैंकड़ों लोग आचार्यश्री के दर्शन और आशीर्वाद से लाभान्वित हुए।

Post a Comment

0 Comments