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अहिंसा यात्रा का महाराष्ट्र प्रवेश पर समर्पित भावपूर्ण रचना

























महातपस्वी महाश्रमण की, गौरव गाथा गाऊं जी।
नेमानन्दन रे चरणों में, नित उठ शीश झुकाऊँ जी।।

लाल लाडलो झूमर कुल रो, शहर सरदार सुहावणों ।
राम भक्त हनुमान सरीखों, मुनि समेर मनभावणों ।
इंद्रधनुषी-एक मनीषी, सूरज री किरणां पाऊं जी ।।

गुरुवर तुलसी री सेवा में, जीवन अर्पण है सारो ।
आर्य महाप्रज्ञ चरणां में, निष्ठा समर्पण है थांरो।
वहीं दृष्टि हो-वहीं सृष्टि हो, यही कामना चाहूं जी ।।

अहिंसा रो अभिनव उपक्रम, जन आंदोलन हितकारी ।
सुदूर प्रदेशां री पदयात्रा,  नवीन सरंचना उपकारी।
गतिशीलता-कल्याणकारीता, जीवन शुभं बनाऊं जी।।

वर्ग-वर्ण-जाती स्यूं उपरत, धर्म क्रांति रा द्वार खुल्या ।
जटिल समस्या प्रांतवाद री, मुख्य धारा स्यूं लोग जुड़या ।
अप्रतिकारी-जावां बलिहारी,  यहीं "भावना" भाऊं जी ।।

(तर्ज: ब्याव-बीनणी बिलकुंरे म्हे तो.....)
-  राजेन्द्र मुणोत, मुंबई 

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