ॐ अ .भी .रा .शि. को .नमः
तपस्वी मुनिश्री अमीचंद जी स्वामी जीवन परिचय
श्रृंखला ( 6 ) दिनांक 7 अप्रैल 2020
तपस्वी अमीचंद जी ने ई. 1816 से 1830 तक के चौदह वर्षीय साधना काल में चोविहार ( निर्जल) 1 से लेकर 10 तक उपवास- तप की लड़ी की । उनके अभिग्रहों का विस्तृत- क्रमबद्ध- विवरण तो उपलब्ध नहीं होता पर सुना है चौदह वर्षों में उन्होंने बिना अभिग्रह कभी आहार ही नहीं लिया । जिस दिन अभिग्रह पूरा नहीं होता ,उस दिन निर्जल उपवास कर लिया करते । बहुत बार तो उनके संकल्प, ध्यान- स्वाध्याय मूलक होते अथवा हेम मुनि या जीत मुनि के शब्दों पर होते । उन्होंने एक बार अभिग्रह लिया जो तीन दिन बाद पूरा हुआ। अभिग्रह भी विचित्र था, कल्पना से परे कहिए । जीत मुनि मुझे आ कर कहे - ' 'तपसी ! यह कैसी मूर्खता ?' तो ही मैं आहार पानी मुंह में लूँगा । यह कैसे संभव था कि जीत मुनि ऐसे शब्द फरमायें और तपस्वी का संकल्प- अभिग्रह पूरा हो ।
महातपस्वी मुनि श्री अमीचंद जी स्वामी के बारे में श्रीमद् जयाचार्य श्री क्या लिखते हैं जानने के लिए अगली पोस्ट में.........
क्रमश...
👉🏻मुनि श्री सागरमल जी स्वामी द्वारा लिखित पुस्तक
"जय जय जय महाराज" से साभार
लिखने में किसी भी प्रकार की त्रुटि रही हो तो मिच्छामि दुक्कड़म🙏🏻
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प्रसारक : अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज
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