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असांप्रदायिक धर्म के व्याख्याता आचार्य श्री तुलसी - मुनि कमल कुमार

24वें महाप्रयाण दिवस पर विशेष

भारत देश वीर और वीरांगनाओं की जन्मभूमि हैं। इस धरती पर अनेकों वीरों ने जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया हैं। उसी क्रम में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्य श्री तुलसी का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जा सकता हैं।

आचार्य श्री तुलसी का जन्म विक्रम संवत 1971 को राजस्थान के मारवाड़ संभाग में नागौर जिले के प्रसिद्ध शहर लाडनू में पिता झूमरमलजी खटेड़ माता वदनाजी की कुक्षि से कार्तिक शुक्ला 2 को हुआ। आप अपने परिवार में सबसे छोटे थे। बचपन में ही आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। घर की सारी जिम्मेदारी बड़े भाईश्री मोहनलालजी कुशलता पूर्वक वहन करते थे।
   
आपकी आदरणीय माता वदनाजी एक धर्मनिष्ठ श्राविका थी। बचपन में ही माता से धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए। आपके बड़े भाई चंपालालजी आपसे एक वर्ष पूर्व ही पूज्य कालूगणी के कर कमलों से चुरू में दीक्षित हुए। आपका साधु साध्वियों से निरंतर संपर्क था। प्रतिदिन साधु साध्वियों के दर्शन के बाद ही प्रातराश (नाश्ता) किया करते थे। पूज्य कालूगणी का लाडनूं में पावन पदार्पण बालक तूलसी के सौभाग्य का सूचक बना। पूज्य कालूगणी का मनमोहक व्यक्तित्व आपके मन मानस में छा गया। मन में दीक्षा के भाव जगे और भाई-बहन (तुलसी और लाडां) की दीक्षा हो गई। दीक्षा के पश्चात आपने अपना अमूल्य समय अध्ययन और साधना में लगा दिया। मात्र 16 वर्ष की अवस्था में आप एक कुशल अध्यापक बन गए। गुरुकुलवास में संतो को अध्ययन कराते आपकी अप्रमत्त चर्या सभी के लिए प्रेरणा बनती गई। आपके कंठ सुरीले थे, प्रवचन के समय जनता झूम उठती थी। आपकी अनेक विशेषताओं को देखकर अष्टमाचार्य कालूगणी ने मात्र 22 वर्ष की अवस्था में आपको अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।
  
आचार्य श्री तुलसी ने आचार्य बनाने के बाद तेरापंथ समाज को नए-नए आयाम दिए, जिससे व्यक्ति व्यक्ति का उद्धार हो। उन्होंने केवल जैन धर्म और तेरापंथ के लिए ही नहीं जन-जन के कल्याण का अभियान चलाया। उनके द्वारा चलाया गया अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान जैन अजैन सबके लिए ग्राह्य हुआ। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इसकी हृदय से प्रशंसा की और उन्होंने इस आंदोलन को गति प्रदान की। समाज के लिए नया मोड का आंदोलन बहुत कारगर हुआ। बाल विवाह, मृत्यु भोज, घूंघट प्रथा, महिलाओं की शिक्षा ये मुख्य थे। आज जो महिलाओं का विकास नजर आ रहा है उसमें गुरुदेव श्री तुलसी का दूरदर्शी चिंतन का सुश्रम बोल रहा है।
  
तेरापंथ समाज में ज्ञानशाला, किशोर मंडल, कन्या मंडल, युवक परिषद्, महिला मंडल आदि के कारण हम नित नई प्रतिभाओं को देख रहे हैं। साहित्य निर्माण का कार्य संघ प्रभावना का मुख्य कारण हैं। आगम संपादन, अणुव्रत साहित्य, प्रेक्षाध्यान साहित्य, जीवन विज्ञान साहित्य, इतिहास तत्व, कथा गीत आदि आदि अनेक विधाओं से लिखा गया साहित्य जनप्रिय बना।
    
आचार्य श्री तुलसी ने पंजाब से कन्याकुमारी तक की पैदल यात्रा करके इंसान को इंसान बनने का महनीय कार्य किया। उनके अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा। पूर्ण स्वस्थ अवस्था में आपने आचार्य पद का विसर्जन कर अपने सक्षम उत्तराधिकारी युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य महाप्रज्ञ बनाकर श्लाघनीय कार्य किया। जो आज के इस पद लिप्सित युग के लिए बोधपाठ बन गया। आपको सरकार, धर्मसंघ, समाज और संस्थाओं से समय-समय पर सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, भारत ज्योति, युगप्रधान, वागपति गणाधिपति, हकीम खाँ, सूर खाँ आदि आदि।
   
गुरुदेव के 24 वें महाप्रयाण दिवस आषाढ़ वदी तृतीया पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यही मंगल कामना करता हूँ कि आप द्वारा दर्शित पथ का अनुसरण करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी की अनुशासना में अपनी साधना कर अपने संयम जीवन को सफल बना सकूं।

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