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आचार्य तुलसी का 24वां महाप्रयाण दिवस अवसर पर अणुविभा द्वारा संयमित जीवनशैली पर वेबीनार आयोजित



अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य तुलसी के 24 में महाप्रयाण दिवस के अवसर पर 23 जून को अणुव्रत विश्वभारती द्वारा एक वेबीनार का आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि अणुव्रत विश्व भारती द्वारा प्रतिवर्ष इस अवसर पर ’तुलसी स्मृति’ के नाम से बहु दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस वेबीनार का विषय था - ’नए वैश्विक परिप्रेक्ष्य में संयमित जीवनशैली का महत्व’।

वेबीनार को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आचार्य तुलसी ने 70 वर्ष पूर्व इस विश्व की समस्याओं के समाधान के लिए अणुव्रत का दर्शन हमें दिया था, यह दुनिया उस दर्शन पर चली होती तो शायद आज हम इस संकट के दौर से नहीं गुजर रहे होते। दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद जब आचार्य तुलसी ने अणु बम नहीं, अणुव्रत की बात की तो विश्व प्रसिद्ध मैगजीन टाइम ने इसे प्रमुखता देते हुए आलेख छापा था। श्री मेघवाल ने अपने स्कूल के दिनों की याद करते हुए बताया कि आचार्य तुलसी किस प्रकार स्कूलों में आकर बच्चों और शिक्षकों को संयमित जीवनशैली का पाठ पढ़ाया करते थे। श्री मेघवाल ने आचार्य तुलसी कृत अणुव्रत गीत की कुछ पंक्तियों का संगान करते हुए बताया कि अपने से अपना अनुशासन की अणुव्रत की परिभाषा है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि अणुव्रत के संयम के संदेश को घर घर तक पहुंचाया जाए ताकि विश्व भर में मानव प्रकृति के नियमों को समझ कर सुख और शांति से रहने का मार्ग अपना सके।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रख्यात पत्रकार एवं चिंतक श्री वेद प्रताप वैदिक ने अपने सुदीर्घ अनुभव साझा करते हुए बताया कि मैंने बचपन से संयमित जीवन शैली को अपनाया है। मैं विश्व के अनेक देशों में गया हूं और उनके शीर्ष नेतृत्व से मेरे निकट संपर्क रहे हैं लेकिन मैंने अपनी जीवनशैली से कभी समझौता नहीं किया। मैंने आचार्य तुलसी से कहा था कि मैं अणुव्रत के सभी 11 नियमों का भली-भांति पालन करता हूं। इससे आचार्य तुलसी को बहुत खुशी हुई थी और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया था कि इस संदेश को जन जन तक मैं पहुंचात रहूँ। श्री वैदिक ने शाकाहार और अपनी आवश्यकताओं की सीमा करने की बात कहते हुए अपने स्वयं के उदाहरण से यह बताया कि इस जीवन शैली से मैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तीनों दृष्टि से आत्मसंतोष का अनुभव करता रहा हूं और आज इस उम्र में भी यही जीवन शैली मेरी शक्ति है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रमुख समाज सेवी श्री हीरालाल मालू ने कहा कि ऐसे अनेक उदाहरण है, जहां लोगों ने अपरिग्रह के संकल्प लिए और अपनी आवश्यकताओं का सीमाकरण किया। वर्षों तक उन नियमों को निभाते हुए एक सरल और सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत किया। भले ही वे अपने जीवन में बहुत बड़े धनपति बने लेकिन अपनी सीमाओं को उन्होंने कभी नहीं लांघा। आज के भौतिकतावादी युग में जो समस्याएं हम विश्व भर में देख रहे हैं, अणुव्रत का संयम का नियम इन समस्याओं का एक बहुत बड़ा समाधान है।


कार्यक्रम के प्रारंभ में अणुव्रत विश्वभारती के अध्यक्ष श्री संचय जैन ने अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी के विषय पर कहा कि आज जीवन शैली के महत्व को दुनिया जिस नजदीकी से देख और समझ रही है, यह एक नए भविष्य की संभावनाओं को इंगित करता है। अणुव्रत का दर्शन हमें प्राकृतिक जीवन जीने का संदेश देने वाला दर्शन है। यह भौतिकता से दूर संयमित जीवनशैली को अपनाने का मार्ग है और यही भविष्य का दर्शन है। आचार्य तुलसी दूरदृष्टा थे और आज जिन समस्याओं से हम दो-चार हो रहे हैं उनका समाधान उन्होंने सात दशक पहले ही हमें बता दिया था।

अणुव्रत विश्व भारती के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सोहनलाल गांधी ने संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डालते हुए आचार्य तुलसी एवं अणुव्रत आंदोलन से अपने प्रारंभिक जुड़ाव के संस्मरण सुनाए और बताया कि किस प्रकार अणुव्रत आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता श्री देवेंद्र कुमार कर्णावट एवं श्री मोहन भाई जैन के मार्गदर्शन में वे अणुव्रत के संदेश को विश्व भर में फैलाने में अपना योगदान दे सके।

संगोष्ठी का प्रारंभ नाथद्वारा की नवोदित गायिका सुश्री मनस्वी व्यास द्वारा गाए गए सुमधुर अणुव्रत गीत ’’संयममय जीवन हो’’ के साथ हुआ। कार्यक्रम का संयोजन अणुव्रत विश्व भारती के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने किया एवं अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री अशोक डूंगरवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अंत में अणुविभा के महामंत्री श्री राकेश नौलखा ने आभार ज्ञापन किया। इस वेबीनार में देशभर से अनेक प्रमुख अणुव्रती कार्यकर्ताओं ने जुड़कर इसका लाभ लिया।

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