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"अद्वितीय व्यक्तित्व शासन माता का" - साध्वी गुप्तिप्रभा



अध्यात्म की उच्चतम परम्पराओं, संस्कारों और मूल्यवान आदर्शों से जुड़ी एक समर्थ शख्शियत का नाम था शासनमाता। कर्मठता करुणा और कलात्मकता के संगम का नाम था शासनमाता । सहजता, सरलता और सहिष्णुता की अद्भुत प्रतिमूर्ति का नाम था शासन माता। संगम, समता और शांति की त्रिपथगा में अभिस्नात रहने वाली एक पवित्रात्मा का नाम था शासन माता । सृजनशीलता,संवेनशीलता एवं ग्रहणशीलता की महनीयता का नाम था शासन माता । विनय, विवेक और विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती स्वरूपा नारी का नाम था शासन माता।

संकल्प की दृढता, व्यवहार कुशलता और अनुशासनप्रियता का अजब नजारा था उनका जीवन। आपने अपने जीवन में सदा सहजता की साधना की। वैराग्य की परिपुष्टता को बरकरार रखते गुरुदृष्टि की सदा आराधना की। गुरुदृष्टि कड़ी तो आपके लिए जीवित ही मरण था । यह विशेषता जिसमें हो उसका संसार में एक दुर्लभतम ग्रंथ बन सकता है। तेरापंथ की राजधानी पवित्रात्मा का जन्म व राष्ट्र की राजधानी में महाप्रयाण और वह भी होली के पवित्र दिन पर यह उन महनीयता का शुभ सूचक है। असाधारण साध्वी प्रमुखा के पद पर आने के बाद भी उनकी सहजता के प्रति जनजन का एक विशेष आकर्षण था। कर्तृमता जहां होती है वहाँ मौलिकता आवृत हो जाती है। स्थायीत्व अल्प हो जाता है। उनके जीवन हर कार्य में वास्तविकता की पुट थी। सहजता में जो ज्योति होती है व कर्तृमता में नहीं । आपकी प्रशस्ति का श्रेष्ठतम प्रमाणपत्र है सहजता । दूसरों और आपकी अनुशासन प्रवणता में उदारता, मधुरिमा, स्नेहिलता की जड़ी बूटियां थी जो जीवन बदलाव से 64 प्रहरी पीपलवत् आंतरिक स्वस्थता प्रदान करने में पूर्ण कारगर सिद्ध होती थी।

एक गृहस्थ श्रावक अपनी संतान को अच्छी क्वालिटी की कार देकर गौरव का अनुभव करता है, वहाँ वह शासनमाता जिसने सैकड़ों साध्वियों द्रव्यकार नही भाव संस्कार देकर धर्मसंघ के विकास को शिखरों की ऊंचाई दी। आचार विचार की दूरी मापने का सेतु है संस्कार । विचार दीर्घकालिक होता है तो वह होता है संस्कार । आज चारों तरफ आस्था, आनंद और आह्लाद का दरिया बह रहा है उसका एक मात्र कारण है आपने साध्वी समाज के दिमागों पर नहीं दिलों पर राज किया है। आपकी अनौपचारिक समर्पण की शक्ति का सुखद स्रोत है कि आपकी जीवन गंगोत्री में हमेशा संघभक्ति, गुरुभक्ति, आत्मभक्ति के शीतज फवारे उछालते रहे हैं।

आपकी संवेदनशीलता ही हर साध्वी के लिए एक प्रखर और परमप्रेरणा है क्योकि आप हर साध्वी की अपेक्षा को समझती सुनती और अपने मन और मस्तिष्क मे उसे उचित स्थान देती जब उचित मौका आता तो उसके निर्माण एवं चित्त समाधि हेतु ऐसी सुधड़ व्यवस्था करती कि सामने वाली साध्वी गदगद हो जाती । कर्तव्य की परिधि असीम होती है और उसी का परिणाम है आपने अपने जीवन में मान सम्मान की चट्टानों को लांघकर अपनी हर कार्य प्रणाली को कर्तव्य सागर में समाविष्ट कर दिया। तभी तो गणाधिपति गुरुदेव फ़रमाते साध्वीप्रमुखा ने मुझे निश्चिन्त बना दिया है ये इस काबिल बन गई है कि इन्हें आँख बंदकर कोई भी काम सौपा जा सकता है। उसे बेहतरीन तरिके से सुसंपादित कर सकती है।

शासन माता की कषाय मंदता और परम प्रसन्नता परिपार्श्व के वातावरण को आनंदित कर देती है। वहां आपकी सृजनशीलता विद्वतवर्ग के हृदय को छूने वाली थी। कहा जाता अध्ययन व्यक्ति को पूर्ण बनाता, भाषण उसे परिपूर्ण बनाता है और लेखन उसको प्रामाणिक बनाता है हमारे धर्म संघ की शासनमाता में श्रेष्टतम अध्ययन, सारपूर्ण भाषण और उच्च लेखनशैली तीनों का विलक्षण संगम था इसलिए सबको लगता हजारों हाथों की अपेक्षा एक मस्तिष्क की सक्रियता अधिक महत्वपूर्ण होती है। उनके द्वारा सम्पादित और आलेखित साहित्य स्रोतस्विती की हरबूँद संघ और समाज को विविध रूपों में अध्यात्म का संबोध दे रही है संपाषण दे रही है।

शांतिप्रियता आपके लिए एक संजीवनी बूंटी थी आप हर परिस्थिति में गुलाबवत खिलते रहना, घोर व्याधि को समाधि से सहना, कड़ा अनुशासन भी प्रेम पूर्वक करना । इस सुघड़ कला से आपने अपने जीवन को सार्थकता की तलाश दी है। तभी तो युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी ने अपनी व्यवहार बोध कृति में फरमाया है। मूर्तिमंत साम्ययोग को देखना होतो संघ महानिदेशिका महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी को देखो सचमुच -

जीवन में शांति नहीं तो धनवान भी कंगाल है।

जीवन में कांति नहीं तो प्राणवान भी कंकाल है ।

उपरी उपाधियां भले कितनी ही पाले

जीवन में शांति नहीं तो विद्वान भी बेहाल है।।

असाधारण साध्वी प्रमुख श्री जी के जीवन में विलक्षण शांति और कमनीय क्रांति का संगम था अतः श्रद्धेय आचार्यत्रय द्वारा प्रदत्त सारे अलंकरण उनके पास आकर स्वयं अलंकृत हो गए। ऐसी शासन माताजी जहां भी विराजमान है वे अध्यात्म की ऊंचाईयो की और गतिमान रहे यह मेरे अन्तःकरण की भव्य भावना मंगल कामना है।

इंगियागार सम्पन्न हे माँ तूं हमारे जीवन की नाज थी।

तेरी हर किया इस तेरापंच संघ में लाजबाब थी ।।

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