कुछ लोग ज्ञान सम्पन्न होते हैं, किंतु शील सम्पन्न नहीं होते। कुछ लोग शील सम्पन्न होते हैं, किंतु, ज्ञान सम्पन्न नहीं होते। कुछ लोग ज्ञान सम्पन्न भी होते हैं और शील सम्पन्न भी होते हैं। कुछ लोग न ज्ञान सम्पन्न होते है और न ही शीत सम्पन्न होते हैं। जैन तेरापंथ धर्मसंघ की शासनमाता, महाश्रमणी संघ महानिर्देशिका, असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ज्ञान सम्पन्न भी थे और शील सम्पन्न भी थे। वे तेरापंथ धर्मसंध की आठवी साध्वी प्रमुखा थी।
असाधारण साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का जन्म एक साधारण बालिका की तरह वि. सं. 1998 श्रावण कृष्णा त्रयोदशी के दिन कोलकाता में हुआ। उनकी माता का नाम छोटी देवी व पिताजी का नाम सूरजमल जी बैद था। उन्होंने मात्र 15 वर्ष की उम्र अध्ययन हेतु पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश किया । चार वर्ष अध्ययन के पश्चात् अणुव्रत अनुशास्ता राष्ट्रसंत आचार्य श्री तुलसी के मुख कमल से राजस्थान के केलवा में 19 वर्ष की उम्र में मुमुक्षु कला ने वि.स. 2017 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा के दिन जैन साध्वी दीक्षा स्वीकार की। साध्वी बनने के बाद आचार्य श्री तुलसी ने उनका नाम कनकप्रभा रखा ।
साध्वी दीक्षा के पश्चात अपने आचार में सजग रहती हुई आचार्य तुलसी के निर्देशन में चहुंमुखी विकास किया। उनकी योग्यताओं का अंकन करते हुए वि.सं. 2028, माघ कृष्ण त्रयोदशी के दिन गंगाशहर (राजस्थान) में आचार्य श्री तुलसी ने साध्वी कनकप्रभाजी को तेरापंथ की आठवी साध्वी प्रमुखा पद पर प्रतिष्ठित किया।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने अपने कर्तृत्व और व्यक्तित्व से धर्मसंघ की व मानव जाति की महनीय सेवा की वे साहित्य कार थी। उन्होंने अपने जीवन में गद्य, पद्य, काव्य यात्रा संस्मरण आदि 51 पुस्तकों का आलेखन व 80 से अधिक ग्रंथों पुस्तकों का संपादन कर साहित्य भंडार को समृद्ध किया। वे कुशल संपादिका, कुशल लेखिका, कवियत्री, थी। वे प्रभावी प्रवचकार भी थी। उनके वक्तृत्व में नित्य नवीनता के दर्शन होते थे। उनका उदबोधन सुनने के लिए जनता उत्कंठित रहती थी।
वे विदुषी साध्वी थी । उनका अध्ययन गहरा व गंभीर था । उनकी विद्वता की धर्मसंघ में गहरी छाप थी।
वे कुशल प्रशासिका थी। वे आचार्य श्री के नेतृत्व में 500 से अधिक साध्वियों की मुखिया थी। उन्होंने साध्वी समाज के आध्यात्मिक व शैक्षणिक विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे अब तक हजारों साध्वियों की सार-संभाल में सहयोगी बनी है।
वे नारी जाति की उन्नायक थी उन्होंने नारी समाज के उत्थान के लिए, उन्हें अन्धरुढियों से मुक्त करने के लिए भरसक प्रयत्न किये।
वे गुरु इंगित के प्रति पूर्ण समर्पित थी। वे गुरू दृष्टि की आराधना में सदैव सजग रही। उन्होंने पचास वर्ष तक साध्वियों की व्यवस्था का दायित्व संभालकर गुरुओं के भार को हल्का किया वे अप्रमनत्त साधिका थी। उनका खाद्य संयम वाणी संयम विशिष्ट था। वे निरंतर स्वाध्याय में रत रहती थी। उनका कोमल, स्वभाव शातं व मृदु था । वे मिलनसार, दयालु, अनुशासन प्रिय, वात्सल्यमूर्ति थी। उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो जाता था। उन्होंने तेरापंथ के तीन आचार्यो - आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ, आचार्य महाश्रमण के नेतृत्व में 50 वर्ष से अधिक समय तक साध्वी प्रमुखा के पद को गौरवान्वित किया। उन्होंने अपने दायित्व को गरिमामय ढंग से निर्वहन किया। तेरापंथ धर्मसंघ के 250 वर्षों के इतिहास में 50 वर्ष तक इस पद को सुशोभित करने वाली यह पहली साध्वी प्रमुखा थी ।
30 जनवरी 2022 को लाडनू में आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में साध्वी प्रमुखा पद के 50 वर्ष की सम्पन्नता पर अमृत महोत्सव चतुर्विध धर्मसंघ के मध्य आयोजित हुआ। आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत महोत्सव के अवसर पर उनको शासन माता के अलंकरण से अलंकृत किया। पूर्व में उन्हें महाश्रमणी संघ महानिदेशिका असाधारण साध्वी प्रमुखा के अलंकरणो से अलंकृत किया जा चुका है।
पिछले कुछ दिनों से साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा जी कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से ग्रसित हो गई। उन्हें चिकित्सा के लिए दिल्ली ले जाया गया। बीमारी की असाध्यता को देखकर उन्होंने शारीरिक चिकित्सा न करवाकर आध्यात्मिक चिकित्सा करने की इच्छा व्यक्त की।
उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी राजस्थान से तीव्र गति से पदयात्रा करते हुए दिल्ली पधारे। 6 मार्च से प्रतिदिन उन्हें आध्यात्मिक संबोध व सहयोग प्रदान करवा रहे थे । 17 मार्च को गिरते स्वास्थ्य को देखकर प्रातः 7 बजकर 27 मिनिट पर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने तिविहार संधारा व 8.37 पर चौविहार संथारा का प्रत्याख्यान करवाया व 17 मार्च को ही प्रात: 8. 45 बजे साध्वी प्रमुख श्री का संथारा सम्पन्न हो गया। आचार्य श्री महाश्रमण जी ने होने 8.45 बजे साध्वी प्रमुखा श्री के महाप्रयाण होने की सूचना अधिकृत तौर पर घोषित की।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी के महाप्रयाण से प्रमुखा पद के एक महत्वपूर्ण अध्याय का समापन हो गया। उनके जाने से धर्मसंघ को एक अपूरणीय क्षति हुई है। लाखों श्रद्धालुगणों ने उन्हें दिल्ली में नम आँखों से विदाई दी।
हम सभी आज उनको भावांजलि अर्पित करते हुए उनको शत शत नमन करते हैं।
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