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माँ ! यह केवल एक शब्द नहीं अहसास है। अहसास ममत्व का सिंचन का शिक्षण का व शक्तित्व का - साध्वी मौलिकयशा

माँ ! यह केवल एक शब्द नहीं अहसास है। अहसास ममत्व का सिंचन का शिक्षण का व शक्तित्व का ।


ममत्व ● उदयपूर चातुर्मास (2007) का प्रसंग है। मैं उस समय पारमार्थिक शिक्षण संस्था में मुमुक्षु के रूप में साधनारत थी। मेरा रीढ़ की हड्‌डी के नीचे एक आपरेशन होना था। मेरे संसारपक्षिय पापा (श्री महेंद्र दुधोडिया) मम्मी (श्रीमती निर्मला दुधोडिया) मुझे लेने आए हुए थे। एक डर का मन में होना स्वाभाविक था। हमारी मनः स्थिती को भांपकर साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने फरमाया, "आपणे भिक्खू स्याम को शरणो है, फेर डर की के बात है, सब ठीक होसी।" दक्षिण हावड़ा (संसार पक्षीय घर) जाने के बाद मेरे ईलाज का सारा कार्य इतनी सहजता व सरलता से हो गया जिसे मैं 'आचार्य श्री महाप्रज्ञजी व साध्वी प्रमुखाश्री जी का पुण्य प्रताप मानती हूं। 17/9/2010, भाद्रव शुक्ला दशमी के दिन मेरी दीक्षा हुई। कुछ दिनों पश्चात हम आठों नवदीक्षित साध्वियों ने उपवास किया। मातृहृदया साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने कम से कम 10-12 बार हमारी साता पूछवाई । आपश्री के ममत्व को पाकर हम आठों साध्वियां गदगद थी।


शिक्षण ● दीक्षा को लगभग 1 - 1 1/2 माह बीते थे। एक बार आपश्री ने अपने उपपात में बैठी हम छोटी साध्वियों को फरमाया, 'तुम सब यहां बैठी किसी एक साध्वी की एक विशेषता के बारे में बताओ, प्रारंभ सबसे छोटी साध्वी से करो । साध्वी कार्तिकयशाजी ने खड़े होकर निवेदन किया कि किसी एक की विशेषता बताना कठीन लगता है, सबके एक-एक गुण बता दूं ? प्रमुखाश्रीजी ने प्रसन्नता के साथ फरमाथा, ठीक है, तुम सबके एक-एक गुण बता दो। इस तरह हम सबने सबकी एक विशेषता के बारे में बताया, यह क्रम लगभग तीन दिन तक चला। अंत में आपश्री ने प्रायोगिक शिक्षण देते हुए कहा- किसी की बुराई या कमी निकालना सरल है किन्तु गुणों को देखना व प्रमोद भावना भाना कठीन । तुम सबने बहुत सहजता व सरलता से एक दूसरे के गुणों का अंकन किया है, ये अच्छी बात है। जो प्रमोद भावना का यह सूत्र जीवन में अपना लेता है वह स्वयं के भीतर भी सद्गुणों का विकास कर सकता है।


सिंचन ● कोलकाता चातुर्मास से पूर्व आपश्री उत्तर हावड़ा पधारे, उस समय आपश्री ने मेरे (मौलिकयशा) व साध्वी भावितयशाजी की ओर इंगित कर साध्वी श्री स्वस्तिकप्रभाजी से कहा, इन दोनों ने इतने कम समय में साध्वाचार के लगभग सारे कार्य सीख लिए । गुप्तिप्रभाजी (अग्रणी) ने भी इनपर अच्छा श्रम किया है। ये दोनो खूब अच्छा विकास कर सकती है। आपश्री के इन शब्दों ने आगे और बढ़ने व विकास के नव वातायण खोलने के लिए प्रेरणा सिंचन का कार्य किया।


शक्तित्व ● बीदासर वृहद दीक्षा महोत्सव के पश्चात् गुरुदेव का पधारना राजलदेसर में केवल 1 दिन के लिए हुआ, जहां हमारी चाकरी थी। दूसरों दिन विहार के समय मैं और साध्वी भावितायशाजी, साध्वी प्रमुखाश्रीजी को पहुंचाने कुछ दूर गये । हम दोनों की आखों से अश्रुधार बह रहे थे। साध्वी श्री सुमतिप्रभाजी ने हमें देखा तो प्रमुखाश्रीजी को निवेदन कर दिया । मातृहृदया साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने अपने पैर थामे व हमें अपने पास बुलाकर मेरे जुड़े हुए हाथों पर अपने हस्त कमलों को रखकर फरमाया, "तुम तो वीर बाला हो और वीर बालाएं रोती नहीं हैं। इसी तरह कोलकाता चातुर्मास (2017) में भी एक बार प्रसंगवश फरमाया, अपनी भुजाओं को मजबूत रखो, अभी संघ का बहुत काम करना है। ये आशीर्वाद भरे शब्द हर क्षण मुझमें शक्ति का संचार करते हैं। आपश्री का यूं अचानक चले जाना, मुझे मेरे जीवन में कभी न भरने वाली एक रिक्तता की अनुभूति करा रहा है। आपश्री की सौम्य मूरत आँखों के सामने आकर उसे नम कर रही है व आपश्री की वाणी से मुखरित शब्द दिल व दिमाग को झंकृत कर रहे है और भी कितने ही संस्मरण स्मृतिपटल पर उभर रहे हैं, जिससे अंतस्थल से एक ही आवाज निकलती है - 

मां तुझे सलाम !!!

शासनमाता तुझे सलाम !!!


- साध्वी मौलिकयशा

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