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अपने ज्ञान का ना हो अहंकार - आचार्य महाश्रमण

 

09.02.2023,  गुरुवार, नून गांव, जालौर (राजस्थान)जैन धर्म के प्रभावक आचार्य, महान परिव्राजक, शांतिदूत युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी साधु–साध्वियों के श्वेत काफिले के साथ जालोर जिले में धर्म गंगा बहाते हुए गतिमान है। गुरुदेव का आज नून गांव में मंगल पदार्पण हुआ। इससे पूर्व प्रातः सूर्योदय की वेला में आचार्यश्री ने अपनी धवल सेना के साथ बाकरा गांव से मंगल विहार किया। मार्ग में स्थान–स्थान पर श्रद्धालु आचार्यश्री से अपने निवास स्थानों पर मंगलपाठ सुनाने की अर्ज कर रहे थे। सभी को अपने आशीष से लाभान्वित करते हुए पूज्यप्रवर गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए। इस दौरान गांव के ठाकुर भवानीसिंह आदि ग्रामवासियों ने आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यात्रा के प्रति मंगलकामना की। कुछ किलोमीटर पश्चात बाकरा रोड पर स्थित श्री चमत्कारी पार्श्वनाथ तीर्थ से संबंधित पदाधिकारी गुरुदेव के सान्निध्य में पहुंचे और तीर्थ में चल रहे उपधान तप आराधना में आशीर्वाद प्रदान करने हेतु निवेदन किया। उनके निवेदन को स्वीकार कर आचार्यप्रवर तीर्थ स्थल पर पधारे जहां तपागच्छ के आचार्य आदित्यानंद सूरीश्वर जी से शांतिदूत का आध्यात्मिक मिलन हुआ। कुछ देर चर्चा एवं परिसर अवलोकन पश्चात गुरुदेव पुनः यात्रायित हुए।

मार्गवर्ती अमरसर में सैंकड़ों श्रद्धालु सड़क के दोनों ओर जय नारे लगाते हुए प्रतीक्षारत खड़े थे। आचार्यश्री के पदार्पण पर उन्होंने धवल सेना का भावभीना स्वागत किया। स्थानीय उपाश्रय में पधार कर गुरुदेव ने सभी को प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। सड़क निर्माण कार्य प्रगति पर होने से विहार मार्ग काफी दूरी तक पथरीला रहा। किंतु प्रतिकूलताओं में भी जनकल्याण के परम लक्ष्य के साथ गतिमान आचार्यश्री लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर नून गांव में पधारे। आचार्यश्री के आगम से गांववासियों की खुशी मानों द्विगुणित हो गई। ज्ञात हुआ की गांव के पहाड़ी पर स्थित धारनेश्वर महादेव मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव चल रहा है। स्थानीय ठाकुर भगवत सिंह जी सहित गांव वासियों के निवेदन पर गुरुदेव मंदिर के समक्ष पधारे एवं कुछ पंक्ति सोपानों पर चढ़कर मंगलपाठ प्रदान किया। स्थानीय राजकीय माध्यमिक विद्यालय में गुरुदेव का प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।

प्रवचन सभा में श्रद्धालुओं को देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – समाधि प्राप्त करने के चार हेतु होते हैं जिनके द्वारा समाधि व सुख मिल सकता है। चार में पहला है विनय। अविनीत शिष्य दुखी व विनीत शिष्य सदा सुखी रहता है। अविनय दुःख को आमंत्रित करने का एक कारण है। हमारा सबके साथ विनयपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। पूर्वकृत कर्मों के कारण आपदा, संपदा व सुख दुःख व्यक्ति के जीवन में होता रहता है। आपदा और संपदा दो ऐसी बहनें हैं जो क्रम से आती–जाती रहती है। विनय के साथ संपदा का वास व समस्या का समाधान होता है। दूसरा समाधि का हेतु है श्रुत। ज्ञान की प्राप्ति व ज्ञानी के सम्मान से भी सुख, समाधि व समाधान मिल जाता है। तीसरा समाधि का मार्ग है तप। तप से कर्मों का निर्जरण होता है व शुभ योगों में प्रवृति भी होती है। चौथा वा अंतिम समाधि का हेतु है आचार व संयम की साधना।

गुरुदेव ने आगे कहा कि आचार का पालन सिर्फ मोक्ष की कामना से ही होना चाहिए इसके साथ कोई अन्य प्रयोजन या प्रलोभन मन में नहीं होना चाहिए। साधना निष्काम भाव से हो तो सिद्धि मिल सकती है। व्यक्ति को अपने ज्ञान का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। ज्ञान दाता के प्रति भी सम्मान की, आदर की भावना रहनी चाहिए। विनय से विद्या सुशोभित होती है।

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