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संस्कारवान बने बालपीढ़ी - आचार्य महाश्रमण



02.02.2023, गुरुवार, सिणधरी, बाड़मेर (राजस्थान), अपनी पावन ज्ञानमयी वाणी से जनमानस के अज्ञान रूपी अंधकार को हरने वाले महातपस्वी युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज अपनी धवल सेना के साथ सिणधरी में मंगल पदार्पण हुआ। तेरापंथ शिरमौर के सिणधरी पदार्पण से स्थानीय जैन समाज में विशेष उत्साह, उमंग दिखाई दे रहा था। इससे पूर्व प्रातः आचार्यश्री ने कमठाई ग्राम से मंगल विहार किया। गत रात्रि ग्रामवासियों को आचार्यप्रवर का पावन आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। लगभग 09 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री सिणधरी के नवकार विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे।



मंगल प्रवचन में अमृत देशना देते हुए गुरुदेव ने कहा– हमारे जीवन में ज्ञान का बड़ा महत्व है और ज्ञान प्राप्ति का एक उपाय है स्वाध्याय। व्यक्ति जितना स्वाध्याय करता है, ज्ञान की आराधना करता है, उतना ही ज्ञान पुष्ट बनता है। स्वाध्याय ज्ञान प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है। स्वाध्याय करने के बाधक तत्वों में पहली बाधा है – ज्यादा नींद लेना अथवा नींद को बहुमान देना। नींद अपेक्षित हो सकती है पर उसमें ज्यादा रस लेना व आवश्यकता से ज्यादा नींद लेना उचित नहीं। ज्ञान प्राप्ति की दूसरी बाधा है मनोरंजन में अधिक रस लेना। इसी प्रकार तीसरी गपशप में समय बर्बाद करना। अगर मनोरंजन और इधर उधर की बातों में समय लग जायेगा तो स्वाध्याय में बाधक बन सकता है। इन बाधक तत्वों से बचने का प्रयास करना चाहिए।


आचार्य श्री ने आचार्य भद्रबाहु एवं स्थुलिभद्र के दृष्टांत का वर्णन करते हुए कहा की स्वाध्याय के वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा व धर्मकथा के स्वाध्याय के पांच प्रकार है। अध्यापन, पुनरावर्तन से कंठस्थ किया हुआ ज्ञान विस्मृति में नहीं जाता, पुष्ट बन जाता है। वर्तमान में विद्या संस्थानों में विद्यार्थी पढ़ाई करते है। उनमें ज्ञान के साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास हो। बालपीढ़ी संस्कारवान बने य अपेक्षित है। 

प्रसंगवश पूज्यप्रवर ने कहा कि आज हमारा सिणधरी के नवकार विद्यालय में आना हुआ है। यहां के बच्चों में जैनत्व के संस्कार भी आते रहे। जैन समाज में धर्म आराधना का क्रम निरंतर चलता रहे।


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