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सहनशीलता अपना कर क्रोध से बचे - आचार्य महाश्रमण



10.02.2023,  शुक्रवार, सिकवाड़ा, जालौर (राजस्थान),नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश देते हुए अब तक एक करोड़ से भी अधिक लोगों को नशामुक्ति का संकल्प करवाने वाले मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज सिकवाडा़ के राजकीय विद्यालय में मंगल पदार्पण हुआ। इस दौरान विद्यालय के शिक्षकों सहित छात्र–छात्राओं ने अपने विद्यालय प्रांगण में आचार्यश्री के आगमन पर भावभीना स्वागत किया। इससे पूर्व आज प्रभात काल में नून गांव से आचार्यश्री प्रस्थित हुए। आज का विहार मार्ग शुरुआती कई किलोमीटर का कच्ची सड़क द्वारा तय किया गया। पथरीले पहाड़ी पथ पर भी युगप्रधान गुरुदेव निश्चलता के साथ गतिमान थे। लगभग 15.1 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री का सिकवाड़ा में पदार्पण हुआ। 


मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा– धार्मिक शास्त्रों में मोक्ष की बात आती है। इस मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य या कहे परम लक्ष्य मोक्ष होता है। हम कुछ ऐसा करें जिससे जल्दी मोक्ष मिल जाये। मोक्ष प्राप्ति में कुछ बाधाएं भी है। जिनमें एक बाधा है – चंडस्वभावी व गुसैल होना। गुस्सा हमारी कमजोरी भी है और शत्रु भी। आलस्य को इस शरीर का शत्रु कहा गया तो गुस्सा भी एक बहुत बड़ा मनुष्य का शत्रु है। बात कहनी हो तो कहनी चाहिए। कड़ी व बड़ी बात भी कहनी पड़ सकती है किन्तु शांति के साथ कहे। किसी को दो चार अपशब्द कह देना बड़ी बात नहीं होती, गुस्सा न करना बड़ापन होता है।


शांतिदूत ने एक कथा के माध्यम से आगे प्रेरणा देते हुए कहा कि 'क्षमा वीरस्य भूषणं' क्षमा तो वीर मनुष्य का भूषण है। गुस्से से मन व चेहरा दोनों प्रभावित होते हैं। भीतर में शांति होती है तो चेहरे से भी सौम्यता झलकती है। कोई कुछ कह दे तो भी शांति रखे। समता धर्म है, सहनशीलता धर्म है। दो प्रकार के अस्त्र बताए गए – आयष शस्त्र अर्थात लोहे के अस्त्र व मार्दव अस्त्र यानी मैत्री, नम्रता, मृदुता। हम जीवन में मैत्री का प्रयोग करना सीखे तो जीवन सफल बन सकता है।


तत्पश्चात आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित विद्यार्थियों ने नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री जगाराम देवासी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपने विचार रखे।

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