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जीने के कला है धर्म - आचार्य महाश्रमण


08.02.2023,  बुधवार, बाकरा गांव, जालौर (राजस्थान), देश के राष्ट्रपति भवन से लेकर गरीब की झोंपड़ी तक नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति का संदेश देने वाले अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जालोर जिले में यात्रायित है। लगभग दस वर्षों पश्चात आचार्यश्री का इस क्षेत्र में पदार्पण हुआ है। जिससे क्षेत्रवासियों में विशेष उत्साह छाया हुआ है। बुधवार प्रातः आचार्यश्री का सायला ग्राम से मंगल विहार हुआ। इस दौरान स्थानीय जैन मंदिर के समक्ष आचार्यश्री ने मंगलपाठ फरमाया। मार्ग में श्रद्धालुओं को पावन आशीष प्रदान करते हुए शांतिदूत रेवतड़ा गांव की ओर गतिमान हुए। पूर्व में आज का प्रवास सीधा बाकरा में निर्धारित था किंतु जैन समाज के आग्रहपूर्ण निवेदन को स्वीकार कर पूर्व निर्धारित यात्रा पथ में परिवर्तन कर आचार्यश्री ने रेवतड़ा पधारना स्वीकार किया। लगभग 07 किमी विहार कर आचार्यश्री रेवतड़ा पधारे तो गुरुदेव के विशेष अनुग्रह से आल्हादित सकल जैन समाज जय जयकारों से शांतिदूत का अभिनंदन कर रहा था। आचार्यश्री के स्वागत में श्रद्धालु बड़ी संख्या में जैन ध्वज हाथों में लेकर प्रतीक्षारत थे। श्रावक समाज के निवेदन पर आचार्यश्री गांव के मध्य स्थित जैन समाज के राजेंद्र भवन एवं जैन मंदिर में पधारे और प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। तत्पश्चात मार्ग में श्रद्धालुओं के निवास स्थानों के समक्ष मंगलपाठ एवं आशीष प्रदान करते हुए पूज्य गुरुदेव श्रीमती नाथीबाई आदर्श राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में दिन के प्रवास हेतु पधारे।

मंगल प्रवचन में शांतिदूत के धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा– इस संसार में चौरासी लाख जीव योनियां होती है जिनमें प्राणी भ्रमण करता रहता है। जब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती यह जन्म-मरण क्रम अविराम चलता है। मनुष्य जन्म हमे मिला है इस मनुष्य जीवन को जीने की एक शैली होनी चाहिए। व्यक्ति चिंतन करें कि जीवन शैली कैसी हो। बहत्तर कलाओं का वर्णन आता है किंतु कोई बहत्तर कलाओं में निष्णात हो जाए और उसे जीने की कला नहीं आई तो सारी कलाएँ विकलाएं हैं व वह पंडित होकर भी अपंडित है। अन्य कलाओं के साथ धर्म की कला को भी जानना चाहिए। लुहार की भौंकनी की तरह आदमी सांस लेता व छोड़ता है, क्योंकि व जीवित है पर यदि धर्म उसके जीवन में नहीं तो धर्म की दृष्टी से वह जीवित नहीं।

गुरुदेव ने आगे कहा कि जब तक आत्म विद्या जीवन में नहीं आयेगी, ज्ञान के संस्कारों का बीजारोपण किए बिना कोरा ज्ञान आधा है। ज्ञान के आभाव में आचरण भी आधा है। अतः ज्ञान और आचरण दोनों का समावेश होने से पूर्णता आती है। हम विशिष्ट के साथ शिष्ट भी बनें व विशिष्टता के साथ शिष्टता भी आये।

*जैन धर्म की दो धाराओं का हुआ मिलन*
जनकल्याण के लिए निरंतर गतिमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने रेवतड़ा से पुनः मध्यान्ह में बाकरा गांव के लिए प्रस्थान किया। लगभग 08 किमी विहार कर शांतिदुत बाकरा पधारे तो श्रद्धालुओं के हर्षोल्लास शतगुणित हो गया। स्थानीय जैन भवन में गुरुदेव का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। जहां मोहनखेड़ा के राजेंद्र श्री परंपरा के जैन मुनि चंद्रयश विजय जी आदि मुनियों ने आचार्य श्री का स्वागत किया एवं कुछ देर चर्चा–वार्ता भी की। रात्रि में बाकरा वासियों को गुरुदेव ने अपने प्रवचन पाथेय से लाभान्वित किया।


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