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शुभ भावों में रहने का करे प्रयास – आचार्य महाश्रमण


12.02.2023,  रविवार, पावटी –जसवंतपुरा, जालौर (राजस्थान), पदयात्राएं कर जन-जन में अहिंसा की चेतना का जागरण करने वाले तेरापंथ धर्म संघ के यशस्वी पट्टधर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ जालोर जिले में विचरण करा रहे है। आज प्रातः आचार्य श्री ने बू गांव (जसवंतपुरा) से मंगल प्रस्थान किया। विहार मार्ग में दृष्टिगोचर होती पहाड़ियां, विशालकाय चट्टाने नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मार्ग में श्रद्धालुओं पर अपनी स्नेहादृष्टि करते हुए परम पूज्य प्रवर परमार्थ के लिए निरंतर गतिशील थे। लगभग 9.5 किमी विहार कर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का धवल सेना के साथ पावटी में पावन पदार्पण हुआ। अपने गांव में महापुरुष का पावन प्रवास पा पावटीवासी धन्यता की अनुभूति कर रहे थे। स्थानीय राजकीय विद्यालय में गुरुदेव का प्रवास हुआ।

आज मुंबई, उदयपुर, सूरत, गुजरात, मेवाड़ आदि कई क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आराध्य के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। उदयपुर से भी ग्यारहसौ से भी अधिक श्रावक–श्राविकाओं का संघ पूज्य चरणों में दर्शन सेवा हेतु उपस्थित हुआ। उदयपुर जैन समाज तेरापंथ का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। पूर्व में सन् 2007 में परमपूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का यहां चातुर्मास भी हुआ था। मध्यान्ह में आचार्यप्रवर ने उदयपुर वासियों को उपासना करवा कर प्रेरणा पाथेय से लाभान्वित किया। 


मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने प्रेरणा देते हुए कहा– व्यक्ति के भीतर अनेक प्रकार के भावों का परिवर्तन होता रहता है। सुबह कुछ भाव, दोपहर में अन्य व शाम को अलग तरह के भाव मन में परिवर्तित हो सकते है। यह ध्यान देने योग्य बात है की शुभ भाव सुखों को व अशुभ भाव दुखों को उत्पन्न करने वाले होते हैं। जैन दर्शन के अनुसार मोहनीय कर्म के प्रभाव से दुःख व उसके अभाव से सुख पैदा होता है। मोहनीय कर्म का प्रभाव व अभाव दोनों बड़े प्रभाव डालने वाली होती है। कई बार एक व्यक्ति के भावों का असर दूसरे पर भी पड़ सकता है। भावों का संक्रमण भी हो सकता है। 


आचार्य श्री ने आगे कथा के माध्यम से उपदेश देते हुए कहा कि व्यक्ति के भाव सदा शुद्ध रहे यह अपेक्षा है। छह लेश्याएँ बताई गई है कृष्ण, नील, कापोत, तेजस, पदम और शुक्ल लेश्या। पहली तीन अशुभ भावों की वृद्धि करने वाली होती है और तेजस, पद्म व शुक्ल शुभ भावो को निर्मित करने वाली होती है। शुभ योगों के पुन्य बंध व निर्जरा ये दोनों जुड़े हुए है। हम शुभ लेश्या में रहकर शुभ योग में रहने का प्रयास करे। जितने शुभ भावों में रहने का प्रयास करे तो जीवन अच्छा बन सकेगा। 


कार्यक्रम के पश्चात उदयपुर के समागत श्री लक्ष्मणसिंह कर्णावट एवं विद्यालय की ओर से श्री जीवदान चारण ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी।

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