दिल्ली। 08 जून। पूज्य आचार्य महाश्रमणजी के दिल्ली आगमन पर आज तालकटोरा स्टेडियम में अनेक गणमान्यों एवं विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में उनका नागरिक अभिनंदन किया गया एवं दिल्ली नगर निगम द्वारा प्रतीकात्मक रूप से एक चाबी पूज्यप्रवर को भेंट कर यह निवेदन किया गया कि यह दिल्ली की चाबी आपके हाथों में है और आपको इसका निर्माण करना है।
परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी ने इस अवसर पर फ़रमाया कि- हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है और ज्ञान से पवित्र कोई वास्तु दुनिया में नही है। हम प्रदार्थ पर ध्यान देते है पर चेतना पर भी ध्यान देना है। लौकिक विद्या को भी पढ़ना अवश्यक है, किन्तु अलौकिक विद्या का अध्धयन कुछ अंशों में चले तो विद्यार्थियों के लिए कल्याणकारी स्थिति हो सकती है।
शरीर विनाशधर्मा है किन्तु चेतना ऐसा तत्व है जो कभी नष्ट नहीं होता है। चेतना एक स्थायी तत्व है जो हमारे भीतर है। हम शरीर को जाने पर कुछ अंशों में चेतना को न जाने तो चेतना के साथ न्याय कैसे होगा? एक जीवन से दुसरे जीवन में आत्मा परिभ्रमण करती है। तब तक ये परिक्रिया चलती है जब तक मोक्ष को प्राप्त न करे। चेतना को समझने के लिए संयम की आवश्यकता होती है।
अणुव्रत आन्दोलन एक संयम का प्रयोग है। चेतना के निकट ले जाने का प्रयोग है। मनुष्य के जीवन में बड़ी कमी रह जाती है यदि चरित्र में कमी हो। आते समय चेहरे और कपड़ो का सम्मान होता है, जाते समय ज्ञान और चरित्र का सम्मान होता है।
पहाड़ में ऊँचाई होती है गहरायी नहीं, सागर में गहरायी होती है ऊँचाई नहीं। मनस्वी आदमी में गहरायी और ऊँचाई दोनों होती है। ज्ञान की गहराई और आचरण की ऊँचाई। हमारे जीवन में ज्ञान की गहरायी और चरित्र की ऊँचाई बढे यह अभिलाषणीय है।
आर्थिक और भौतिक विकास के साथ नैतिक और अध्यात्मिक विकास हो, धरती पर स्वर्ग तभी हो सकता है।
भारत एक भाग्यशाली देश है। पहला इसलिए की भारत में संत लोग है। यह भारत के लिए भाग्योदय की बात है। संत वह होता है जो शांत होता है। दूसरा इसलिए की भारत के पास ज्ञान का खज़ाना है। ग्रंथो का समूह भारत के पास है। अपेक्षा है भारत में नैतिक मूल्यों की अपेक्षा बढे।
दिल्ली नगर निगम वालो ने चाबी भेंट की है, यह नैतिकता की चाबी बन जाये। दिल्ली के बाजारों में नैतिकता की देवी की फोटो लग जाये। भौतिक रूप से नही दुकानदार के दिलो दिमाग में बैठ जाये। दिल्ली के व्यक्ति व्यक्ति में नैतिकता रहे।
अपना और अपने परिवार का आध्यात्मिक कल्याण करें:
मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी स्वामी ने फ़रमाया कि आचार्यप्रवर का दिल्ली पदार्पण और स्वागत समारोह। लोगों के मन में बड़ी आशाएँ है। हर कोई चाहता है की आचार्यप्रवर की सन्निधि में कुछ राहत मिले। बंधुओं आचार्यप्रवर तो वो शांति देने ही आये है। अपने व्यक्तित्व का निर्माण संयम से करे।
जिसका व्यक्तित्व संयम से बढेगा वह आगे बढेगा। संयम की बात जीवन के आदर्श की बात है। दिल्ली का हर नागरिक आचार्यप्रवर से कुछ प्राप्त करे, ग्रहण करे जो उनके जीवन में काम आ सके। दिल्ली में आचार्य तुलसी का पहला चातुर्मास वि. स. 2008 में हुआ पर आज 2071 चल रहा है आचार्य श्री महाश्रमण जी दिल्ली पधारे है। मेरा सौभाग्य है दोनों बार साथ है। दिल्ली के कार्यक्रमों की श्रृंखला गरिमापूर्ण ढंग से बढ़ रही है। अपना अपने परिवार के लोगों का निर्माण करे। अपने चरित्र को ऊँचा उठा सके। आचार्यप्रवर का पदार्पण आप लोगों के लिए मंगलकारी साबित हो यही कामना है।
संघमाहनिदेशिका साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी ने कविता की कुछ पंक्तिया सुनाते हुए फ़रमाया कि-
'चले चलो मोसम में, कब किसके अनुरूप ?
एक मुसाफिर के लिए, क्या छाया क्या धुप?'
इतनी गर्मी में भी आचार्यप्रवर घूम रहे है। एक ही मिशन लेकर आये है-आचार्य श्री तुलसी की जन्मशताब्दी के लिए। आचार्य तुलसी भगवन महावीर की 2500वी निर्माण शताब्दी पर दिल्ली में थे और आज आचार्यप्रवर उनकी जन्मशताब्दी के लिए आये है।
इन दिनों राजनीति में एक नई लहर आई है। इस समय आचार्यप्रवर का यहाँ आगमन महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री जी आर्थिक विकास कर संकेंगे, परमपूज्य आचार्यप्रवर अधूरेपन को पूर्णता देंगेऔर आध्यात्मिक विकास की ओर आगे ले जाएंगे। मोबाइल, कंप्यूटर और इन्टरनेट की दुनिया में परमपूज्य आचार्यप्रवर भी गणित की भाषा में क्या कहना चाहते है- पुरानी गणित में जोड़, बाकि, गुणा,भाग।
अपने दोस्तों को जोड़ो, दुश्मनों को घटाओ
सुख को बहुगुणित करो, दुःख को विभाजित करो
इस प्रकार गुरुदेव जोड़, बाकि, गुणा, भाग के द्वारा जनता में अनैतिकता के अंधकार को दूर करने पधारे है।
'सूरज के रथ पर बैठे है तन पर आज अँधेरे, इन्ही अंधेरो की छाती पर रच दो नए सवेरे।'
संवाद साभार: सुषमा आंचलिया, प्रस्तुति: मान्या आंचलिया।
जैन तेरापंथ न्यूज दिल्ली।
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