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आचार्य महाश्रमण से साक्षात्कार

साक्षात्कार: आचार्य महाश्रमण
संत साधुत्व की सीमा में रहकर राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करें: आचार्य महाश्रमण
प्रस्तुति: ललित गर्ग

आचार्य महाश्रमण इन दिनों अध्यात्म साधना केन्द्र, मेहरौली दिल्ली में अपना चातुर्मास कर रहे हैं। इससे पूर्व वे संपूर्ण दिल्ली में पदयात्रा करते हुए जन-जन को अपने आध्यात्मिक उपदेशों से प्रेरित किया। जिसका सार है- ‘रहें भीतर, जीएं बाहर।’ उन्होंने सगुण-साकार भक्ति और जोर दिया है, जिसमें निर्गुण निहित है। हर जाति, वर्ग, क्षेत्र और सम्प्रदाय का सामान्य से सामान्य व्यक्ति हो या कोई विशिष्ट व्यक्ति हो- सभी में विशिष्ट गुण खोज लेने की दृष्टि आचार्य महाश्रमण में है। गुणों में मधु की भांति संचित कर लेते हैं।ं परस्पर एक-दूसरे के गुणों को देखते हुए, खोजते हुए उनको बढ़ाते चले जाना आचार्य महाश्रमण के विश्व मानव या वसुधैव कुटुम्बकम् के दर्शन का द्योतक है। आचार्य महाश्रमण के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व के अनेक आयाम है उनमें मुख्य हैं- नैतिक मूल्यों के विकास एवं अहिंसक चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग प्रहरी, अध्यात्म दर्शन और संस्कृति को जीवंतता देने वाली संजीवनी बूटी, विश्वशांति और अहिंसा के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक। नंगे पांव चलने वाला यह महामानव चलता है- चलता रहा, चरैवेति-चरैवेति के मंत्र को चरितार्थ करते हुए। गांव-गांव घूमता लोगों को अच्छा बनने के लिए कह रहा है।
नंगे पांव चलने से इसने धरती की धड़कन को सुना। धड़कनों के अर्थ और भाव को समझा। धरती की धड़कनों को जितना आत्मसात करता चला, उतना ही उनका जीवन ज्ञान एवं संतता का ग्रंथ बनता गया। यह जीवन ग्रंथ शब्दों और अक्षरों का जमावड़ा मात्र नहीं, बल्कि इसमें उन सच्चाइयों एवं जीवन के लिए नए अर्थों-आयामों का समावेश है, जो जीवन को शांत, सुखी एवं उन्नत बनाने के साथ-साथ जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं। विभिन्न अवसरों पर उनसे हुई वार्तालाप की प्रस्तुति इस दृष्टि से की जा रही है कि इससे पाठकों के जीवन में एक नई दृष्टि और एक नई दिशा प्राप्त हो सके।

पारिवारिक अशांति एक समस्या के रूप में सामने आ रही है। समाधान के रूप में आपके सुझाव?
परिवारों में शांति के लिए परिवारों की व्यवस्था को अच्छा बनाना चाहिए और संभव हो सके तो एक मुखिया का अनुशासन चलना चाहिए। हमारे यहां कभी-कभी एक शिविर लगता है-पारिवारिक सौहार्द शिविर। इसमें परिवारों के सदस्य भाग लेते हैं पारिवारिक सौहार्द और सामंजस्य की दृष्टि से उन्हें प्रशिक्षण देने का प्रयास किया जाता है। परिवार में शांति से रहने के लिए परस्पर सामंजस्य का होना आवश्यक है और सामंजस्य बिठाने के लिए एक-दूसरे को सहन करने का अभ्यास होना चाहिए। परिवार के सदस्यों में स्वार्थ भावना हावी नहीं होनी चाहिए। चार भाइयों का परिवार है और कोई एक भाई सोचे कि परिवार की सारी संपत्ति मेरे अधिकार में आ जाए तो शांति कैसे रहेगी? परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के हित की भावना हो। कोई समस्या आए तो उसे मिल-बैठकर सुलझाने का प्रयास हो। परिवार के किसी सदस्य से जाने या अनजाने में कोई गलती हो जाए तो उसके ध्यान में लाकर उसे सुधारने का प्रयत्न किया जाए। इस प्रकार का फार्मूला अगर काम में लिया जाए तो परिवार में शांति रह सकती है।

क्या संतों को राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करना चाहिए?
करना चाहिए, किन्तु निष्काम भाव से। अगर संत में प्रतिभा हो, अनुभव हो तो अपने साधुत्व की सीमा में रहकर मार्गदर्शन करने में कौन-सी बुराई है?

राष्ट्र निर्माण में संतों का क्या योगदान है या क्या योगदान होना चाहिए?
राष्ट्र निर्माण के लिए चार बातें आवश्य होती हैं-राष्ट्र का भौतिक विकास, आर्थिक विकास, नैतिक विकास और आध्यात्मिक विकास। सड़क, बिजली, शिक्षा संस्थान और चिकित्सालयों की व्यवस्था-ये सब भौतिक विकास के अंतर्गत आते हैं। लेकिन इस तरह के भौतिक विकास के लिए आर्थिक विकास भी जरूरी है। उसके बिना भौतिक विकास होगा कैसे? संतों का योगदान मुख्यतया नैतिक और आध्यात्मिक विकास के संदर्भ में होना चाहिए और मेरे खयाल से हो भी रहा है। भारत के पास विशाल ज्ञान संपदा है। हमारे प्राचीन ऋषि-महर्षि अपने पीछे ज्ञान का जो खजाना छोड़ गए हैं, वह अपने आप में भारत की एक बड़ी संपत्ति हैं कृषि भूमि के साथ-साथ ऋषि भूमि भारत में आज भी कितने-कितने संत अपनी साधना में संलग्न हैं। भारतवासियों में धर्म की जो भावना है, धर्म का जो प्रभाव है, उसके प्रति जो आस्था है, उसको स्थायित्व देने में संतों का भी बड़ा योगदान है। उनकी वाणी, उनका उपदेश, उनका मार्गदर्शन व्यक्ति को धर्म की ओर उन्मुख करने में सहायक बनता है। नैतिक और आध्यात्मिक विकास में संतों का योगदान है और अपेक्षानुसार आगे भी रहना चाहिए।

संतों का राजनीति में दखल कहां तक उचित है?
इस विषय में सबका अपना-अपना चिंतन है। कोई राजनीति में आकर काम करना चाहे तो इस पर कोई रोक या पाबंदी तो है नहीं। साधना में सबकी अलग-अलग भूमिकाएं हो सकती हैं। किसी की साधना पद्धति अगर एलाउ करती है तो वह राजनीति में भाग ले सकता है। हमारा तो यह चिंतन है कि संतों को राजनीति में खुले रूप से नहीं आना चाहिए। राजनीति से अलग रहकर समाजहित में, देशहित में राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन यथासंभव किया जा सकता है। अगर सामथ्र्य हो तो राजनीति से अलग रहकर गाइडेंस दिया जा सकता है। लेकिन राजनीति में प्रवेश कर गए तो गाइडेंस देना थोड़ा कठिन हो जाएगा। पार्टी या दल विशेष से अनुबंधित होने के बाद फिर मार्गदर्शक वाली भूमिका प्रभावी कैसे रह सकती है।

समाज की प्रगति में महिलाओं की क्या और कितनी भूमिका हो सकती है?
शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है, इसलिए महिलाएं भी आज शिक्षा प्राप्त कर कितने क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। कितने क्षेत्रों में वे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। पारिवारिक और सामाजिक प्रगति के संदर्भ में महिलाएं एक काम यह करें कि अपने-अपने घरों को सुशिक्षित और संस्कारी बनाएं। समाज तो व्यक्तियों का समूह है। परिवार के एक-एक व्यक्ति के निर्माण में महिला का योगदान रहे। इस क्रम में वे अपने बच्चों को सुशिक्षित और संस्कारी बनाएं तो स्वस्थ समाज और स्वस्थ राष्ट्र का सपना अपने आप साकार हो सकेगा। स्वस्थ परिवार का निर्माण होने से स्वस्थ समाज निर्माण की कल्पना स्वयं आकार लेगी, ऐसा कहा जा सकता है।

स्वस्थ समाज निर्माण में संतों का भी बड़ा दायित्व है, लेकिन आज उन पर भी अंगुली उठ रही है। संत भी आरोपित हुए हैं और कुछ को जेल भी जाना पड़ा है। इस संदर्भ में आपका क्या कहना है?
गलती किसी से भी हो सकती है। संत से कोई गलती न हो, यह अच्छी बात है और अपेक्षा भी यही की जाती है। अभी हाल में जो विवादित प्रसंग सामने आया है, उस पर मुझे ज्यादा कुछ नहीं बोलना, नामोल्लेख करना भी उचित नहीं। जब तक कोर्ट का फैसला न आ जाए, आरोप साबित न हो जाए, तब तक गलती की है अथवा नहीं, निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। सिर्फ यही कहा जा सकता है कि किसी संत ने गलती की है तो यह चिंतनीय बात है। इससे और कुछ हो न हो, साधु-संतों पर आस्था और विश्वास रखने वाली आमजनता के विश्वास का हनन और क्षरण जरूर हो सकता है। संत से अगर गलती होती है और वह गलती प्रचारित-प्रसारित हो गई है तो संबंधित साधु को क्षमायाचना कर लेनी चाहिए। प्रचारित हो जाने के बाद उसका धर्म है कि सार्वजनिक रूप से वह उसके लिए क्षमायाचना करे। यह उसके शुद्धिकरण का मार्ग है। साधु हो या गृहस्थ चलते-चलते कभी कोई गिर भी सकता है, किन्तु गिरने के बाद संभलने और फिर उठ खड़े होने की संभावना समाप्त नहीं हो जाती।

नशामुक्ति अभियान बहुत अच्छा है, लेकिन यह प्रभावी कैसे बनेगा?
हमारा मानना है कि नशा अपने आप में एक आसक्ति है और यह अपराधों का भी कारण बन सकता है। यह आदमी को कुमार्ग पर भी धकेल सकता है, अपराध की दिशा में भी ले जा सकता है। शराब पीने के बाद पारिवारिक सदस्यों पर अत्याचार, महिलाओं का उत्पीड़न, दूसरों से झगड़ा-लड़ाई ये सब स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। देश को अपराधमुक्त बनाने की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए शराब जैसे नशीले पदार्थों से मुक्त करना आवश्यक है। इसके लिए दो तरीके हो सकते हैं। एक तरीका तो यह हो सकता है कि सरकारी स्तर पर अध्यादेश लाकर शराब के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। यह तरीका थोड़ा जर्बदस्ती का है। वर्षों पहले हरियाणा में ऐसा प्रयत्न वहां की तत्कालीन सरकार द्वारा किया गया था, लेकिन वह स्थायी नहीं पाया।
दूसरा तरीका है लोगों का हृदय परिवर्तन कर नशीले पदार्थों से उन्हें विरत करना। बलात् किसी बात को किसी पर एक बार भले ही थोप दें, हृदय परिवर्तन हुए बिना उसका असर ज्यादा समय तक रहना कुछ कठिन है। नशामुक्ति के संदर्भ में हम जो तरीका अपना रहे हैं, वह हृदय परिवर्तन का है। हमारे पास सरकारी डंडा तो है नहीं, मात्र धर्म का तत्व है। हम उसी का प्रयोग करते हैं, लोगों को प्रेम से बताते और समझाते हैं, उनका मानस बदलने का प्रयत्न करते हैं और भविष्य में नशे से बचने का संकल्प दिलाते हैं। यह आत्मोत्थान के लिए अच्छा है और समाज को स्वस्थ रखने के लिए भी उपयोगी है।

आज समाज के जो हालात हैंे, चारों ओर छीना-झपटी, लूट-खसोट मची है, ऐसे माहौल में सुख से जीने की आकांक्षा वाले लोग इस तरह की आपाधापी से स्वयं को कैसे बचाएं?
आदमी का मनोबल और संकल्पबल दृढ़ होना चाहिए। अणुव्रत अगर एक-एक आदमी के जीवन में उतर जाए यानी संयम जीवन में आ जाए तो किसी भी तरह की आपाधापी से बचाव हो सकता है, सुख से जीया जा सकता है। आदमी को खाने की रोटी, रहने को आवास और शिक्षा-चिकित्सा की समुचित व्यवस्था अगर सुलभ हो जाती है और बड़ी लालसा वह न पाले तो उसका जीवन अच्छा चल सकता है, मन में शांति रह सकती है और धर्म की दृष्टि से भी लाभ हो सकता है।
प्रेषकः

(ललित गर्ग)