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जप का है बड़ा महत्व - आचार्य महाश्रमण

फारबिसगंज 18 जुलाई। आचार्य महाश्रमण जी के फारबिसगंज प्रवास के 8वें दिन तेरापंथ कन्यामण्डल के पूर्वांचल प्रभाग की कार्यशाला एवं दो दिवसीय अधिवेशन आरम्भ हुआ। 
परमपूज्य आचार्य महाश्रमण जी ने पावन उद्बोधन देते हुए फरमाया कि- जप का बड़ा महत्त्व होता है। माला तो गिनती की सुविधा के लिए एक साधन मात्र है। जप श्वास के साथ भी कर सकते हैं। गीत और भजन भी भक्ति का एक प्रकार होता है। शरीर साथ न दे तो बैठ कर ही नहीं लेट कर भी जप किया जा सकता है बस भाव शुद्ध होना चाहिए मन धर्म ध्यान में एकाग्र रहे। यदि साधु संगति ना हो सके प्रवचन सत्संग में ना जा सकें तो भी घर बैठे जप तो किया ही जा सकता है।
जप के लिए नवकार या नमस्कार मन्त्र एक बहु उपयोगी महामंत्र है।
अधिवेशन में आई कन्याओं को उन्होंने सचेत रहने की प्रेरणा दी कि बिना नवकार मन्त्र के जप के दिन ना समाप्त हो जाये। स्वाध्याय का भी क्रम चले।
 फारबिसगंज प्रवास चातुर्मास के सामान-
आचार्यश्री ने फारबिसगंज प्रवास की आधे से अधिक अवधि बिता ली है और इतने ही दिनों की अपनी अनुभूति बताते हुए आपने कृपापूर्वक फरमाया कि हालाँकि यहाँ की चातुर्मास की मांग वे स्वीकार नहीं कर पाये थे पर यहाँ का माहौल और व्यवस्था उन्हें चातुर्मास जैसी लग रही है। संतों और साध्वियों के आवास प्रवचन स्थल के निकट एवं अनुकूल हैं। पंडाल में बैठने की सुन्दर व्यवस्था है। भारी भीड़ विशाल पंडाल और प्रायः रोज ही देश के विभिन्न हिस्सों से आ रहे संघ। ये सभी मिल कर काफी कुछ चातुर्मास का सा माहौल बना रहे हैं।

शिक्षा वही सार्थक जो करें संस्कार निर्माण:
साध्वी प्रमुखाजी ने प्रवचन सत्र का आरम्भ करते हुए समाज के सभी अंग के विकास की बात कहते हुए महिलाओं के विकास की भी चर्चा की और इस सन्दर्भ में आचार्य तुलसी के योगदान का स्मरण किया।
सारे देश से समागत कन्याओं को संबोधित करते हुए आप ने कहा कि शिक्षा आवश्यक है पर वही शिक्षा सार्थक है जिससे संस्कार निर्माण भी हो।
गावों में जन्मी और पली बढ़ी लड़कियां प्रायः सरल और सामान्य जीवन और तड़क भड़क से दूर हुआ करती हैं। महानगरों में जन्मी और पली बढ़ी लड़कियां प्रायः अधिक पढ़ी लिखी आत्मविश्वास से भरी तेज रफ़्तार जिंदगी जीने वाली और स्वावलंबी जीवन चाहने वाली हुआ करती हैं। 
जिनका जन्म और आरंभिक जीवन गावों में और बाद का जीवन महानगरों में बीतता है वे असमंजस में पड़ जाती हैं कि दोनों में से किन जीवन मूल्यों को अपनाएं। ऐसे में अभिभावकों का दायित्व बढ़ जाता है। वे अपने बच्चों में दोनों में से अच्छी बातें चुनने और अपनाने की क्षमता विकसित करें।
लड़कियों को पीहर में पराया धन और ससुराल में परजाई कह देते हैं। वह असमंजस में रहती है कि उसका अपना घर कौन सा है। विवाह होते ही नए घर परिवार और परिवेश में रच बस जाने में समय लगता है।
क्यूबा के फिदेल कास्त्रो के प्रसंग से उन्होंने वहां बच्चों द्वारा सारे देश को साक्षर बनाने की बात बताई।
तेरापंथ कन्या मंडल भी कन्याओं को संस्कारित करने की दिशा में सक्रिय है। कन्यायें मिडिया साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें। बुद्धि और ज्ञान दोनों का संगम बनायें। कठिनाइयों और समस्याओं के लिए हौसला चाहिए। ऐसी किसी भी स्थिति में परामर्श लिया करें। आचार्यवर के निर्देशों को नोट बुक में ही नहीं जीवन में उतारें तो जीवन भर नहीं उपहार लगेगा।

कन्या कार्यशालाओं के आयोजन के रूप में यह एक नया प्रयोग था कि एक राष्ट्रीय अधिवेशन की जगह पूरे देश को 5 भागों में बाँट कर 5 अलग अलग जगहों पर कार्यशाला हो। यह प्रयोग सफल रहा क्योंकि ऐसे में प्रतिभागियों की संख्या कई गुनी बढ़ गयी। सर्वाधिक संख्या  पूर्वांचल प्रभाग के आज के कार्यशाला की रही जिसमे  लगभग 250 रजिस्ट्रेशन हुए। 

संवाद साभार : अलोक दुगर्,अमित सेठिया

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