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अनासक्त बने : आचार्य श्री महाश्रमण

05.01.206  बनमनखी। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमणजी आज सुबह जानकीनगर से  महर्षि मेहिदास की जन्म भूमि बनमनखी पधारें।  स्कुली  बच्चों ने एवं समस्त ग्रामवासियों ने पूज्यप्रवर का भव्य रैली के साथ स्वागत किया।
महातपस्वी महामनस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में फरमाया कि आदमी आसक्ति से काम करता है, पदार्थो में  मोह रखता है तो कर्म उसके चिपक जाते है। एक आदमी रहन सहन के व्यवहार में अनासक्ति रखता है,  मोह मुक्त रहता है तो उसके चिकने कर्मों का बन्ध नहीं होता । सर्वज्ञ केवल लज्ञानी पूर्णतया निर्मोह होते हैं। उनमे कषाय, मोह, आसक्ति नहीं है तो उनके कर्म भी नहीं चिपकते। साधु को अनासक्ति की साधना करनी चाहिए।  गृहस्थों को भी अनासक्ति की साधना करनी चाहिए। अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो अनासक्ति की साधना करनी चाहिए। यह आसक्ति एक बन्धन है। विषयों में आसक्त मन बन्धन का कारण है, जबकि विषयों से विमुक्त मन होता  मुक्ति की ओर ले जाने वाला बन जाता हे।
आचार्यश्री के सान्निध्य में सभी ग्रामवासियों ने जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संकल्प लिया। तेरापंथ महिला मण्डल और तेरापंथ कन्या मण्डल ने आचार्यश्री के स्वागत में गीतिका की प्रस्तुति दी। पूज्य प्रवर के स्वागत में जैन श्वेताम्बर सभा के अध्यक्ष चुन्नीलाल जी दुगड़, बनमनखी के विधायक कृष्ण कुमार भारती, पूर्णिया के विधायक विजय कुमार और पूर्व विधायक दिलीप यादव ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यकम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमार जी ने किया।

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