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विद्वता एवं अर्हता का संगम -कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा


जैन विश्व भारती ज्ञान की खिड़की ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
दुनिया में जितने महापुरष हुए है उन्होंने अपने अपने कल्पना पुरुषो को खड़ा किया है । शिक्षण संस्थान उन सबके केंद्र रहे है । महात्मा गांधी ने गुजरात विधापीठ को अपने कर्म का केंद्र बनाया था । कवीन्द्र रविन्द्र ने शांति निकेतन के रूप में अपने मन की मानव-मूर्ति की गढ़ा था । मदनमोहन मालवीय ने हिन्दू विश्व विधालय के रूप में नये सजृन के दरवाजे पर दस्तक दी थी । जाकिर हुसैन ने जामिया मिलिया के रूप में अपनी कुव्वत को जग जाहिर किया था । आचार्य तुलसी ने जैन विश्व भारती के रूप में अपने सपने को सप्त साकार में प्रतिष्ठित कर मानवता के भविष्य को उज्जवल किया ।

कुलपति
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संस्थान के सम्पूर्ण प्रशासन एवम् संचालन से जुड़ा महत्वपूर्ण पद है कुलपति का। विश्वविद्यालय के प्रारम्भ से आज तक निम्नलिखित कुलपतियों की नियुक्ति हुई है :-
1 डॉ महावीरराज गेलड़ा, जयपुर -25 मई 1991 से 9 अक्टूम्बर 1992, तक
2 प्रो रामजी सिंह, भागलपुर - 10 अक्टूम्बर 1992 से 28 मार्च 1995 तक
3 श्री मोहनसिंह भंडारी जयपुर- 29 मार्च 1995 से 28 मार्च 1997 तक
4 प्रो. भोपाल चंद लोढ़ा जोधपुर- 29 मार्च 1997 से 5 सितम्बर 2001 तक
5 श्री मति सुधामही रधुनाथन - 6 सितम्बर 2001 से 16 जुलाई 2006 तक
6 समणी मनगलप्रज्ञा जी - 17 जुलाई 2006 से
7 समणी चारित्र प्रज्ञाजी - 5 नवम्बर 2010
समण श्रेणी ने पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अनुग्रह से संघ प्रभावना के  अनेक उल्लेखनीय कार्य किये है। श्रद्धा व समर्पण भाव  से कार्य कर देश विदेश में धर्मसंघ की महिमा और गरिमा बढ़ाई है।समण श्रेणी के इतिहास का एक महत्वपूर्ण पृष्ट है समणी मंगल प्रज्ञा जी का जैन विश्वभारती विश्वविधालय की कुलपति के रूप में मनोनयन दिनाक 17 जुलाई 2006 को जैन विश्वभारती संस्थान के प्रबन्ध मण्डल ने समणी मंगल प्रज्ञा जी को कुलपति के रूप में नियुक्त किया। पदग्रहण से पूर्व समणी मनगलप्रज्ञा जी एवम् समणी चेतन्यप्रज्ञा जी ने   आचार्य श्री महाप्रज्ञ के दर्शन किये और उनका मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया एवम् इस गुरुतर दायित्व के सम्यक निर्वाहन हेतु पूज्यप्रवर का मार्गदशन एवं दिशा निर्देश प्राप्त किये। प्रो वाईस चांसलर पद समणी मनगलप्रज्ञा जी के मनोनयन से समण श्रेणी के कर्तव्य को एक नया आयाम मिला।
VC के इसी क्रम में 2010 को समणी चरित्रप्रज्ञाजी की नियुक्ति हुई । आपका यह कार्यकाल संस्थान को एक नई ऊंचाई प्रदान की ।  विश्व विधालय में अनेक नये शिक्षा प्रकल्पों का प्रादूरभाव हुआ । और संस्थान ने दुनिया भर में अपनी एक विशेष अलग पहचान बनाई और मूल्यांकन के तहत अनेक सम्मान पुरस्कार प्राप्त किये
एक वृतांत
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एक दिन पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी जैविभा के प्रांगण में टहल रहे थे । खुशहाल मौसम के प्रसंग में एक भाई ने कहा -" एक प्रचलित दोहा है -"सावण बीकानेर"। परम् पूज्य गुरुदेव ने पूरा पद्य  सुनाने का संकेत किया । भाई ने संकोच के साथ अपनी असमर्थता व्यक्त की । पूज्य प्रवर ने दोहा सुनाते हुए कहा-
सियाले खाटू भली, उन्हाले अजमेर ।
नागौर नित की भली, सावण बीकानेर ।।
उक्त पध लिखते समय कवि के सामने बीकानेर के तलाब आदि दर्शनीय स्थल रहे होंगे, आज जैन विश्व भारती की सुषमा देखने वाले कवि का नजरिया दूसरा होगा । तत्काल गुरुदेव का कवि-मानस बोल उठा और पद्य रचना करते हुए उन्होंने फ़रमाया -
शुध्द हवा, शोधित दवा, और दुआ बिन देर ।
भैया ! सावण भादवे विश्व भारती हेर ।
अनुशास्ताओ द्वारा उपमित
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जैन विश्व भारती विधा और साधना से जुड़ा संस्थान है। परम पूज्य गुरूदेव तुलसी के शासनकाल का यह एक महत्वपूर्ण अवदान है। उन्होने इसे कामधेनु के रूप में उपमित किया है। यह ऐसी संस्था है जिस पर काफी अंशो  में गौरव की अनुभूति की जा सकती है। यह जैन समाज की प्रतिष्ठित संस्थाओं में एक महत्वपूर्ण संस्था है। जैन विश्व भारती से संपृक्त संस्था है-  जैन विश्व भारती संस्थान - मान्य विश्वविधालय । यह भी विधा से जुड़ा है।
वर्तमान अनुशास्ता ने जैविभा को
"जयकुंजर" से उपमित किया
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प्राचीन साहित्य में जयकुंजर का वर्णन उपलब्ध होता है। इस जयकुंजर नामक विशालकाय हाथी के सदृश जैन विश्व भारती भी विशाल है, इसका परिसर रमणीय है। इसमें साधना, शिक्षा, सेवा, साहित्य, शोध आदि विविध प्रवृतियां संचालित हैं। वस्तुतः यह जयकुंजर के समान एक विशाल संस्था है। आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ के आशीर्वाद व छत्रछाया में यह संस्था पल्लवित-पुष्पित हुई और वर्तमान अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी के आध्यात्मिक प्रेरणा से विकास के पथ पर अग्रसर हो रही है।
गुरुवाणी हुई फलित : जैविभा संस्था और संस्थान का माँ बेटे के सम्बंधो को कार्यकर्ताओ ने किया वरण और हुआ विकास ।
वर्तमान अध्यक्ष श्री धरमचंदजी लुंकड धुन के धनी व्यक्ति है । उनका कर्तत्व कुछ नया करने की भावना से सदा ओतप्रोत रहा है । वे सहज , सरल और दायित्व दायित्व के प्रति जागरूक है । उनकी संघ निष्ठां, गुरुभक्ति और सहज समर्पण अपने आप में प्रेरणादायीं है । एक शासन भक्त कार्यकर्त्ता श्री लुंकड जी ने संघ की सेवा में अपने आपको समर्पित कर दिया । उन्हें आचार्य तुलसी आचार्य महाप्रज्ञ जी का भी अत्यंत वात्सल्य व् विश्वास प्राप्त था । वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण जी की परम् कृपा का प्रसाद इन्हें प्राप्त है । श्री लुंकड जी का जैन विश्व भारती में अध्यक्षीय कार्यकाल प्रगतिमांन रहा । इस अवधि में जैन विश्व भारती ने विभिन्न दिशाओ में उलेखनीय प्रगति की है । और अनेक नई परियोजनाओं को क्रियान्वित किया । इसके साथ ही उसके सदस्यों में आपसी सोहार्द में अभिवृद्धि हुई, अच्छी टीम बनी जो सृजनधर्मा है । जैविभा के सातो साकार में भौतिक एवं प्रशानिक दोनों ही उलेखनीय विकास किया  जो देश और दुनिया ने महसूस किया । अग्रिम क्रम भी विकास का ही रहे , यह  लुंकडजी की प्रबल मनोभावना है । लुंकड जी ने शिक्षा के क्षेत्र में विकास हेतु पुरे मनोयोग से जुड़े  । और कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा जी के  साथ मिलकर जैन विश्व भारती विश्व विधालय को विश्व शितिज के नक्शे पर ला खड़ा किया ।
प्रभु आपका विलक्षण वयक्तित्व बुद्ध की याद दिला रहा है,
तुलसी, महाप्रज्ञ और महाश्रमण का कृतित्त्व मिट्टी में चमन खिला रहा है ।
मिली जै.वि.भा को बी.ए. ,बीएड की मान्यता समणी चारित्रप्रज्ञा के कुशल नेतृत्व में,
धरमचंद लुंकड ने सौरभ महकाई जैन विश्व भारती में।
विद्वता एवं अर्हता का संगम-
कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञाजी
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जैन विश्व भारती विश्व विधालय की कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा जी ने विश्व के अनेक देशो की यात्राये कर शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में उलेखनीय कार्य किया ।
6 जुलाई 1964 को चेन्नई में जन्मी समणी चारित्रप्रज्ञाजी प्रारम्भ से मेघावी छात्रा रही है । धर्म और दर्शन के प्रति झुकाव के कारण वैराग्य के मार्ग पर प्रवृत हुई । आचार्य श्री तुलसी द्वारा 1990 में समण श्रेणी  में दीक्षित समणी चारित्रप्रज्ञाजी स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के बाद जैन दर्शन, अंहिसा, शांति एवं नैतिक मूल्यों के प्रसार-प्रचार के क्षेत्र में समर्पित हो गई । सहज, सरल व्यक्तित्व व मृदुभाषिता आपकी विशिष्ठ पहचान है ।आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी, आचार्य श्री महाश्रमण जी सरीखे महान संतो के निर्देशन में विभिन्न दर्शनों का अध्ययन कर समणी चारित्र प्रज्ञा जी ने विदेश में विभिन्न शैक्षिणक संस्थाओ में कार्य किया है ।
जैन विश्व भारती संस्थान की कुलपति नियुक्त होने से पूर्व समणी चारित्रप्रज्ञाजी इस विश्व विधालय में वर्ष 2006 से 2010 तक अध्यापन कार्य से जुडी रही ।
दर्शन जगत में अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त समणी चारित्रप्रज्ञाजी ने विश्व के 30 से अधिक देशो की यात्राये कर विभिन्न विश्व विधालयो में जैन धर्म व दर्शन , अंहिसा शांति, प्रेक्षाध्यान, व मानवीय मूल्यों पर विवेचनात्मक व्यख्यान दिए है । आपने 2002 में लायोला मेरिमोट यूनिवर्सिटी (लांस एंजिल्स) में आयोजित 6 सप्ताह के वर्ल्ड रिलिजन समर स्कुल में मुख्य भूमिका निभाई । 2003 में न्यूयार्क के अग्रणी विश्वविधालय में आयोजित ग्रीष्मकालीन कार्यक्रम में भी आपकी महत्ती भूमिका रही । 2008 में कॉल पॉली पामोला यूनिवर्सिटी (लॉच एजिल्स) में आयोजित चार सप्ताह के अंहिसा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का नेतृत्व किया  । इसके अलावा करीब 85 राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय मायामी में लम्बे समय तक विजिटिंग फैकल्टी के रूप में धर्म व दर्शन के अध्यापन से जुडी रही है ।
हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, तमिल सहित विदेशी भाषाओ की ज्ञाता समणी चारित्रप्रज्ञाजी के देश विदेश की सैकड़ो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओ में धर्म एवं दर्शन पर शोधपरक आलेख प्रकाशित हुए है । आप द्वारा सम्पादित अनुदित 'व्हाई मेडिटेशन' हैपी एंड हार्मोनियस फैमेली, जर्नी इंटू जैनिज्म, अनेकांत द थर्ड आई, फाइंडिंग युअर सिरिचुअल सेंटर, इंट्रोडक्शन आफ जेनिज्म,  जैन पारिभाषिक शब्द कोश आदि चर्चित पुस्तके है । ऑरलैंडो एवं न्यूजर्सी में जैन विश्व भारती की स्थापना करने में आपकी महत्वपूर्ण भागीदारी रही । न्यूजर्सी में शिक्षा में जीवन विज्ञान विषय लागू करने के लिए कार्ययोजना प्रस्तुत की ।
समणी चारित्रप्रज्ञाजी अपने व्यस्त जीवन में भी अपने दैनिक साधना क्रम को नियमित जारी रखती है । आप कुशल प्रशासक, प्रखर वक्ता, तथा आदर्श शिक्षिका है । समता, सहजता, सादगी व सरलता व सौम्यता जैसे गुण आपके व्यक्तित्व को नई गरिमा तथा ऊंचाई देते है । आज से 5.5 वर्ष पूर्व आपने संस्थान के कुलपति पद को ग्रहण किया, तब से लेकर अब तक आप निरन्तर गतिशील है । तेरापंथ धर्म संघ के 11वे अधिशास्ता परम श्रद्धेय आचार्य श्री महाश्रमण जी के आध्यात्मिक अनुशासन एवं कुशल प्रशासनिक नेतृत्व में विभिन्न मुकाम हासिल किये है । आपके प्रयासों से भारत सरकार ने मानव संसाधन मंत्रालय ने इस संस्थान की गुणवत्ता को देखते हुए A ग्रेड प्रदान किया । वहीँ राष्ट्रीय मूल्यांकन प्रत्यायन परिषद ने भी A ग्रेड प्रदान कर संस्थान का मूल्यांकन किया । यह उपलब्धि विश्वविधालय का गौरव है । समणी चारित्र प्रज्ञाजी  विश्व विधालय के सर्वागींण विकास के प्रति समर्पित रहते हुए अनेक नवीन उपलब्धियों से संस्थान को सराबोर किया । आप संस्थान के चहुमुखी विकास के लिए सदैव सजग एवं जागरूक रही । जैन इंटरनेशनल ट्रेड संस्थान के एक दल ने विश्व विधालय का अवलोकन कर इस विश्वविधालय को जैन जगत का यूनिक विश्वविधालय बताया ।
कुलपतिजी के इसी कार्यकाल में जैन विश्व भारती विश्व विधालय को एक और उपलब्धि हासिल हुई - राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद जयपुर द्वारा जैन विश्वभारती संस्थान को चार वर्षीय बीए, बीएड एवं बीएसी बीएड की मान्यता प्रदान की ।।
कुलपति समणी चारित्रप्रज्ञा जी को भारतीय विश्वविद्यालय परिसंघ के तत्वाधान में सयुक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा घोषित लाईफ टाइम अचीवमेंट से सम्मानित किया गया ।
जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री धरमचंदजी लुंकड ने विश्वविधालय के विकास में टीम के साथ समाज के सहयोग से तन मन धन से योगभूत सोहार्द पूर्ण वातावरण का निर्माण किया और कुलपति एवं विश्व विधालय की टीम को प्रत्साहित करते रहे । संस्थान के मूल्य परक शिक्षा का 25वे वर्ष का उत्सव सारे देश एवं विदेश में मनाया गया । भारत के विभिन्न हिस्सों में 13 चरणों को सफलता पूर्वक आयोजित कर लाखो लोगो के दिलो तक संस्थान को पंहुचाया ।
जैन विश्व भारती विश्वविधालय को 2016 को बेस्ट डीम्ड यूनिवर्सिटी इन राजस्थान के अवार्ड से नवाज गया ।
भारत सरकार के इंडियन काउंसलिंग आफ सोसियल साइंस नई दिल्ली द्वारा "अनेकांत एंड वेस्टर्न फिलोसोफी प्रोजेक्ट " को स्वीकृत किया ।
राजस्थान सरकार ने योग एवं नैचुरोपैथी के लिए 6 करोड़ का प्रोजेक्ट स्वीकृत किया ।
कुलपति के प्रति हार्दिक कृतज्ञता
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यथा नाम तथा गुण समणी चारित्रप्रज्ञाजी ने स्वयं के ज्ञान, दर्शन, चरित्र का विकास करते हुए न केवल स्वयं की प्रज्ञा को जागृत किया बल्कि कुलपति के तौर पर अनेकों की प्रज्ञा जागृति में सहभागी बनी है। आपके भावी आध्यात्मिक जीवन के प्रति अनेकानेक मंगलकामनाएं !!
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महावीर सेमलानी
राष्ट्रीय संयोजक
प्रसार प्रचार एवं मिडिया विभाग
जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.)

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