Top Ads

आदमी को धन में ज्यादा आसक्ति नहीं रखना चाहिए आचार्यश्री महाश्रमणजी

महातपस्वी के मंगल चरण से पावन होने लगी आंध्रप्रदेश की धरती
05.04.2018 सीतानगरम, विजयनगरम् (आंध्रप्रदेश), JTN, अपनी अहिंसा यात्रा के साथ उत्तरप्रदेश, बिहार आदि के गंगा के मैदानी भागों की यात्रा, हिमालय के गोद में बसे नेपाल और भूटान की यात्रा, उसके उपरान्त पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, नागालैंड आदि के रूप में भारत सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों की विषम यात्रा को सुसम्पन्न बनाने के बाद आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ दक्षिण की धरा पर अपनी धवल सेना के साथ गतिमान हैं तो ऐसा लग रहा है मानों कोई भारत के मस्तक के रूप में स्थापित हिमालय की ऊचंाइयों से सागर की गहराइयों को मापने के लिए अपनी धवल धारा के साथ बहती हुई नदी हो। गंगा, जमुना, सरस्वती (अदृश्य), कोशी, ब्रह्मपुत्र, महानदी जैसी प्रमुख और भारत की पूजनीय नदियों को भी अपने चरणरज से पावन बनाकर आचार्यश्री के ज्योतिचरण अब ऐतिहासिक गोदावरी नदी की ओर बढ़ रहे हैं। 
आंध्रप्रदेश के विजयनगरम जिले के गांवों में गतिमान अहिंसा यात्रा निरंतर गतिमान हैं। अब तक की यात्रा में स्थानीय भाषा के बावजूद भी हिन्दी भाषा आमजन के समझ आती तो स्थानीय लोग आसानी से अहिंसा यात्रा के साथ जुड़ जाते थे। आंध्रप्रदेश में स्थानीय लोगों को हिन्दी समझने के कारण थोड़ी मुश्किले हो रही हैं। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन का सार समझाने के लिए दुभाषिए का सहारा लिया जा रहा है। आचार्यश्री के व्यक्तित्व के बारे में लोगों को जानकारी हो रही है तो उनके भीतर जागृत होने वाली श्रद्धा की भावना उनके मुखाकृति पर दिखाई देने लगती है। उनके जुड़े हुए हाथ और श्रद्धा से नत सिर उनकी आस्था के द्योतक बनते हैं। इसी क्रम में गुरुवार को आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा के साथ नरसिंहपुरम से प्रातः मंगल प्रस्थान किया। रात्रि में हुई बरसात के कारण मौसम सुहावना बना हुआ था। चलने वाली हवा लोगों को ठंडक प्रदान कर रही थी। आचार्यश्री लगभग नौ किलोमीटर की दूरी तय सीतानगरम स्थित जिला पार्षद हाइस्कूल में पधारे। 
विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को धन के प्रति आसक्ति नहीं रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी खाली हाथ आया है और खाली हाथ जाने वाला है। इसलिए आदमी को धन में ज्यादा आसक्ति नहीं रखना चाहिए। आदमी के साथ पैसा नहीं जाता। आगे प्राप्त होने वाला सुख-दुःख कर्मों के आधार पर मिलने वाला है। इसलिए आदमी को संयम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने लोगों को तीन मनोरथ बताए और लोगों अपने जीवन में मोह और ज्यादा आसक्ति की भावना को छोड़ने और संयम की साधना करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। स्थानीय लोगों को आचार्यश्री ने दुभाषिए के माध्यम से अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार कराया। 

Post a Comment

0 Comments