पड़वा नवटोल, 2 जन.
महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्मय के सूत्र को उद्घृत करते हुए फरमाया कि धन आदमी के लिए अन्तिम प्राण नहीं होता है न इस दुनिया में अन्तिम प्राण है और न परलोक में अन्तिम प्राण बन सकता है। गृहस्थ जीवन में पैसे की आवश्यकता भी होती है। और पैसा कमाने के लिए आदमी विविध उपायों को काम भी लेता है। धन को संस्कृत में वित्त कहा गया है।
आचार्य प्रवर ने फरमाते हुए कहा कि दो शब्द है- एक वित्त और दुसरा वृत। वित्त का अर्थ धन है। वृत्त का अर्थ है चरित्र। आदमी चरित्र की वृत्ति की प्रयत्न पूर्वक सुरक्षा करे। धन तो आता है, चला जाता है। चरित्र की जीवन के लिए बहुत महत्ता होती है। आदमी कई बार पैसे के लिए चरित्र को खो देता है। पैसे के लिए हत्या तक कर देता है। आदमी ईमानदारी रखने का प्रयास करे, जीवन में मानवता रहे।
इस अवसर पर ग्रामवासियों ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।
महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्मय के सूत्र को उद्घृत करते हुए फरमाया कि धन आदमी के लिए अन्तिम प्राण नहीं होता है न इस दुनिया में अन्तिम प्राण है और न परलोक में अन्तिम प्राण बन सकता है। गृहस्थ जीवन में पैसे की आवश्यकता भी होती है। और पैसा कमाने के लिए आदमी विविध उपायों को काम भी लेता है। धन को संस्कृत में वित्त कहा गया है।
आचार्य प्रवर ने फरमाते हुए कहा कि दो शब्द है- एक वित्त और दुसरा वृत। वित्त का अर्थ धन है। वृत्त का अर्थ है चरित्र। आदमी चरित्र की वृत्ति की प्रयत्न पूर्वक सुरक्षा करे। धन तो आता है, चला जाता है। चरित्र की जीवन के लिए बहुत महत्ता होती है। आदमी कई बार पैसे के लिए चरित्र को खो देता है। पैसे के लिए हत्या तक कर देता है। आदमी ईमानदारी रखने का प्रयास करे, जीवन में मानवता रहे।
इस अवसर पर ग्रामवासियों ने अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।
2 Comments
Om arham
ReplyDeleteOm arham
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